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dhiraj pandey
मुस्कुरने पे सुरु और रुलाने ख़तम हो ,ये वही जुल्म है जिसे लोग मोहब्बत कहते है मुश्कुराने पे सुरु
आयुष सिंह
अब उनकी बाहों से तो बाहर आगया हूँ कोई हम भी सम्हाल लेना । क्या पता उन फरीब बातो में फिर न फास जाओ उन्हें तो लाज नही पर हम कही बिगड़े अल्फ़ाज़ न बन जाएं... अल्फ़ाज़ का सिलसिला सुरु
ARVIND SINGH URETY(अज़ीम)
अँधेरे में बैठे हो, यूँ रौसनी की चाह लिए फिर दिया जला कर तेरा वो तूफ़ान बुलाना...! तुझसे सुरु-तुझपे ख़तम।
ARVIND SINGH URETY(अज़ीम)
तुझे पाना है तो तुझे बा-जबाब रहने दूँ, तुझमे गर सुकून तलासूं तो खो दूँ तुम्हें। ये और बात है, चाहत अब भी है दोनों में, वो और बात थी चाहत तब भी थी दोनों मे। तुम क्यों समझो कि क्या तालीफ़ है मुझे? तुम मिल रही हो मुझे,यही जबाब है तेरा।। तुमने दफन कर लिए हैं जबाब अपने सीने में मुझे भी अपने सीने में सवाल दफन करने होंगे।। तुझसे सुरु-तुझपर ख़तम
ARVIND SINGH URETY(अज़ीम)
ख़ाक में शिर्फ़ ज़िस्म ही नही मिलता, तेरी दी हुई जख्म-ओ-जाँ भी मिलती है। कोई जल रहा है तेरी लगाई आग में, उसकी चीख तुझे संगीत सी लगती है। बस कर!ठहर जा,अब किसी दहलीज पर तू कि ये यौवन बर्फ सी उम्र-दर-उम्र पिघलती है। मैं न सही,कोई और सही,कहीं,कोई तो सही, तू बहती नदी सी है तो बता,तू कहाँ गिरती है।। तुझसे सुरु-तुझपे खतम
ARVIND SINGH URETY(अज़ीम)
सिकन रहने दूँ ,तुझमे तेरा सबाब रहने दूँ, खयानत भी रहने दूँ और नकाब रहने दूँ। तुझमे गर सुकून तलासूं तो खो दूँ तुम्हें, तुझे पाना गर चाहूँ,तो बा-जबाब रहने दूँ। तेरी नींद का खलल हूं,मुझे दूर ही रखना, अपने ख्वाबों को फिर से मैं ख्वाब रहने दूँ। कुछ तुम खो दो मुझे,कुछ मैं खो दू तुझे, बचा है कुछ सीने में जो,आजाब रहने दू। मत रोक मुझे,समां जाने दे गर्त में आज, गर यही है सुकूँ तेरा,तो तुझे आजाद रहने दूं।। तुझसे सुरु-तुझपे ख़तम
Vickram
निगाहों ने रहकर खामोश अपनी हर बात कह दी,, जो सुन ली गई दिल के जरिए खामोश रहके,, घंटो तक चली बातें और कोई भी क्या समझता,, पूछ रहा था दिल अब तक कहा क्यों नहीं हमसे,, मौका ना मिला कभी आज मिले तो अंजान थे,, बातें तो शुरू करनी थी पर मालूम ही नहीं कैसे ,, पता तो था हमें पर सुनना जरूरी हो गया काफी हमें कैसे मालूम होता कि तुम्हें भी प्यार था हमसे,, ©Vickram बातें तो निगाहों से सुरु हुई,,