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Neena Jha
नखरीला चाँद चाँद ही तो है इतना भाव क्यों, सूरज तो नहीं करता नखरे, फ़िर उधारी की आभा लिए भी, ए चाँद तू इतनी अना में क्यों? हर करवाचौथ मेरी माँ को तरसाते हो तुम, तब भी मेरी माँ मुस्कुरा कर तुझे नमन करती है, तेरे आवभगत में जाने क्या क्या पकवान बनते हैं, मग़र तू निर्लज्ज इतने नखरे करता है क्यों? नीना झा #संजोगिनी ©Neena Jha #kinaara #Neverendingoverthinking #नीना_झा #जय_श्री_नारायण #संजोगिनी जय माँ ज्ञानदात्री 🙏 विषय... नखरीला चाँद चाँद ही तो है इतना भाव क्यो
Anamika Nautiyal
दहेज की आग अनुशीर्षक में पढ़ें छोड़ बाबुल का घर अँगना चल दी वह संग सजना आँखों में संजोए एक सुखद भविष्य का सपना बनाने पराए घर को अपना दो दिन ससुराल में खूब आवभगत हुई फिर
Vedantika
मैं सुनाऊँ आज आपको अपने मन की बात कैसे हुई होगी दादा दादी की पहली मुलाकात शादी के प्रस्ताव को हुए जो दादाजी तैयार लेकर के रिश्ता चले दादाजी पहुंचे दादीजी के द्वार हुई आवभगत खूब दादाजी के मन के फूल खिले होगा अब साक्षात्कार उनसे यह सोचकर चैन मिले लेकिन थीं बंदिश परम्पराओं की उंस विवाह के मार्ग में नहीं था वह ज़माना उदार जो दे हाथों को हाथ मे (मुलाकात होगी अनुशीर्षक में) मैं सुनाऊँ आज आपको अपने मन की बात कैसे हुई होगी दादा दादी की पहली मुलाकात शादी के प्रस्ताव को हुए जो दादाजी तैयार लेकर के रिश्ता चले दादाजी
Anamika Nautiyal
कल्लू जी (अनुशीर्षक में पढ़ें) कल्लू जी को था खुद पर अभिमान मानो ब्रह्माजी से पा लिया हो वरदान अपनी शक्तियों पर खूब इतराते थे चाचा विधायक हैं ऐसा सब को बताते थे कहने लगे
Dr Jayanti Pandey
भ्रष्टाचार विरोधी दिवस...... (कृपया पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) भ्रष्टाचार विरोधी दिवस मनाने को चिट्ठी पहुंची हर दफ्तर हर थाने को। प्रधानाचार्य जी भी अति उत्साहित थे उच्च आदर्श सिखाने को बड़े समर्पित थ
रजनीश "स्वच्छंद"
एक बार जरा जो तू कह दे।। एक बार जरा जो तू कह दे, मैं शाम की लाली बन जाऊं। तू प्रतिमा बन मेरे मन की, मैं पूजा की थाली बन जाऊं। मैं बन जाऊं जोगी रमता, तू मेरी प्रेम प्रतिज्ञा बन। मुझे बसा नयनों में अपने, तू जग से अनभिज्ञा बन। मेरी कविता के शब्द छंद, तू मेरे कलम की स्याही बन। मैं प्रेमपाश में जकड़ा रहूँ, तू आ कर मेरी गवाही बन। ये नयननक्स विरले तेरे, मैं दर्पण तुझे निहार रहा। तू यौवन की महारानी, मैं करता तेरा श्रृंगार रहा। घटा घनेरी जुल्फें तेरी, मैं गालों पे मचलता लट तेरा। तू स्वप्नलोक की सुंदर बाला, मैं दुपट्टे में पड़ा सिलवट तेरा। तू आहट जीवन की मेरे, सांस मेरी धड़कन मेरी। मैं तुझे लपेटे फिरता हूँ, तू ही लिबास अचकन मेरी। तू स्वप्न मेरा सच भी मेरा, शब्दों से तुमको बुनता हूँ। अधरों की मादकता ऐसी, बंद जुबां सब सुनता हूँ। मैं शब्दों का सौदागर, तू मेरी काव्य की माला है। मैं प्यासा दर पे खड़ा, तू पूरी मधुशाला है। जो शब्द उकेरा कागज़ पर, धुन कानों में बजता है। तेरी ग्रीवा का बखान करूँ, शब्द माला में सजता है। प्रेमौषधि लिए चला मैं, जाने कब धड़कन मन्द पड़े। तेरी कल्पित काया में मगन, मैंने कविता और छंद गढ़े। तेरी आवभगत करने को, मैं फूलों की डाली बन जाऊं। एक बार जरा जो तू कह दे, मैं शाम की लाली बन जाऊं। ©रजनीश "स्वछंद" एक बार जरा जो तू कह दे।। एक बार जरा जो तू कह दे, मैं शाम की लाली बन जाऊं। तू प्रतिमा बन मेरे मन की, मैं पूजा की थाली बन जाऊं। मैं बन जाऊं
vishnu prabhakar singh
हे भगवान कबूल करो ये नमन नन्हा सा दीप हूँ भोले स्वीकार करो ये भजन हे भगवान कबूल करो ये नमन तेरी महिमा अपार तेरा भक्तों से प्यार तेरा अद्भुत व्यवहार तेरा औघड़ विचार तू है पापियों का नाशी अच्छे कर्मों का तू जिज्ञासी फिर क्यूँ है ये उदासी कर दे दूर भोले अपशकुन स्वीकार करो ये भजन तेरा नन्हा सा दीप इसके बातों में गीत इसके तन मन में भोले कल्पित भजन में भोले तीनों लोकों के स्वामी तू तो है अन्तर्यामी भोले कैसी ये हानि क्यूँ भेजे यहाँ अभिमानी मेरी श्रद्धा का ये नमन तेरे कलयुग का ये ढंग इसकी रक्षा करो भगवन बचा लो भक्तों का ये चमन तेरे भक्तों की है ये इच्छा भोले लो ना यूँ परीक्षा दिखा तेरा भक्तों से प्यार भोले नयन खोलो एक बार हो जाये इस दुनियां का उद्धार। जय भोलेनाथ' 🙏 यह भजन मैंने 27,28/7/1995 को लिखा था। मैं शिवरात्रि में अपने गाँव में था।हमारे ग्रामीण परिवेश में भोलेनाथ के लोकगीत व भजन को
अज्ञात
पेज-59 कथाकार ने देखा हैरान परेशान सा राकेश अपनी बाइक में रत्नाकर कालोनी की सड़को पर घूम रहा है.. कथाकार ने उसके चित्त में झांक कर देखा तो समझ आया कि वो विशाल जी से कुछ कहने आया है... फोन लगाया मगर उठाया नही.. नौसाद साहब का मोबाइल आउट ऑफ़ कवरेज.. सोचा क्यूँ ना एक बार इसी बहाने मानक के घर की तैयारियों का भी जायज़ा ले लिया जाये.. कोई भी मिले तो उसे ही बताकर लौट आऊंगा...! शेष भाग केप्शन में.. 🙏 ©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी पेज-59 आगे - कथाकार ने फिर उसके मन को टटोला, आखिर राकेश क्या बताकर आने की बात सोच रहा है... तब कथाकार को भान हुआ कि कल कल म
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
Dr Upama Singh
“कृतज्ञता” अनुशीर्षक में कृतज्ञ हूंँ मैं जिनकी आज मिला है मौका सबके लिए कुछ शब्दों में पिरो बयांँ करने का कृतज्ञ हूंँ मैं अपने जन्मभूमि और सारे अमर बलिदानियों के जि