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Mansee Chaurasia
"मन की स्वस्थ्यता शरीर की स्वस्थ्यता से दुगुनी अच्छी होती हैं।" क्यों कि मन से ही सब कुछ होता है 👍💯🙏🙏 ©Mansee Chaurasia मन की स्वस्थ्यता शरीर की स्वस्थ्यता से अच्छी है
Vhora Muskan
लोग सिर्फ शरीर को ही गुलाम बना सकते है l आत्मा और मन को नहीं आत्मा अमर है शरीर नही जिस दिन आत्मा ने शरीर का साथ छोड़ दिया उस दिन से कोई शरीर नामक इंसान को बंदी नही बना सकता l ©Vhora Muskan आत्मा मन और शरीर #standAlone
जीtendra
मेरे हृदय और मन-मस्तिष्क पर तुम्हारी स्मृतियों के मौन निमंत्रण ने कई बार मुझे विक्षिप्त किया है, मन व शरीर सहम जाता है, मुख से निकलने वाले सभी स्वर, कंपन की मुद्रा में होते हैं, मैं असमर्थ होता हूं, अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में, और जब इन मौन रूपी शब्दों को समझने वाला कोई न हो, तब, मैं अपने हर शब्द को गूंगा कर देना चाहता हूं ताक़ि उन शब्दों की पुकार को कोई भी सुन न सके... #हृदय #मन #मस्तिष्क #शरीर #कम्पन #निमंत्रण
Dr.Dinesh sonkar
शरीर की हिफाजत धन से भी अधिक करनी चाहिए क्योंकि शरीर बिगड़ने के बाद धन भी उसकी हिफाजत नहीं करता...! ©Dr.Dinesh sonkar #शरीर की हिफाजत
Sunita Sharma
आपके लिए यह ©Sunita Sharma # मन # पीर #फकीर #छिपाते #रूह # बिन शरीर
vibrant.writer
रूह की तलब जागेगी तब जब शरीर से मन और मन से एहसास तक तृप्ति की एक यात्रा होगी। #रूह की #तलब जागेगी तब जब #शरीर से मन और #मन से #एहसास तक तृप्ति की एक यात्रा होगी। #vibrant_writer #yqdidi
SK Poetic
स्वदेहमरणिं कृत्वा प्रणवं चोत्तरराणिम्। ध्याननिर्मथनाभ्यासद्दिवं पश्येन्निगूढवत्।। ऐसे कहा जा रहा है कि जैसे दूध को मथो तो मक्खन निकलता है न, तो कहा जा रहा है कि दो तरीके से मथो तुम संसार रूपी दूध को: अपनी देह को उपकरण बनाकर के, और अपने मन को उपकरण बनाकर के। नीचे का, माने पहला और निम्नतर योग्यता का उपकरण होगी—तुम्हारी देह, और उच्चतर योग्यता का उपकरण होगा—तुम्हारा मन। पर इन्हीं दोनों के साधन से तुमको सत्य की प्राप्ति होगी। देह का तरीका हुआ: श्रम का तरीका। जो श्रम करने को तैयार नहीं है, उसको सत्य की प्राप्ति कभी नहीं होगी। और मन का तरीका; ॐकार की अरणि क्या हुई? ज्ञान का और संकल्प का तरीका। शारीरिक रूप से श्रम की पूरी तैयारी होनी चाहिए और मानसिक रूप से त्याग की। ज्ञान माने अज्ञान का त्याग, संकल्प माने संस्कारों का त्याग। शरीर से तुम्हें होना चाहिए श्रमी और मन से तुम्हें होना चाहिए त्यागी। शरीर ऐसा हो जो मेहनत करे ही जाए, करे ही जाए और मन ऐसा हो जो त्यागे ही जाए, त्यागे ही जाए। श्रम करे ही जाओ, करे ही जाओ और उसके फल को त्यागे ही जाओ, त्यागे ही जाओ। यही दोनों साधन उपनिषद् बता रहा है। शरीर, जो कर्म करने से कभी रुके नहीं और मन जिसने चूँकि अब अपने आपको जान लिया है, इसीलिए उसकी किसी तरह के भोग में रुचि नहीं रही है। जिसने ये दोनों पा लिए, उसे परमात्म-तत्त्व मिल गया। ©S Talks with Shubham Kumar शरीर से श्रमी और मन से त्यागी #BooksBestFriends
Bhakti Kalptaru
शरीर, वाणी और मन से होने वाले पाप।
Vishw Shanti Sanatan Seva Trust
मानव शरीर की असली पहचान ©Vishw Shanti Sanatan Seva Trust मानव शरीर की असली पहचान