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PRAKASH SHARMA
anil meena
नित्य क़दम ब क़दम चल रहीं कुकाल की लहर मुसलसल वक्ष मै बढ़ रहा विभीषिका का क़हर मानुष के अन्तःकरण मै ख़्याल यंत्रणा का खेप-लदान उमड़ पड़ा है विलिनता के त्रास से मनुज भी आकस्मिक रंजोग़म हो पड़ा है अब तो उरस्थल का पाषाण भी इस संताप के दुर्भिक्ष मै भग्नावशेष के रूप मै ध्वस्त हो पड़ा है आलय की प्राचीर मै से क़ैद देखों हयात के सम्मुख कौन खड़ा है माना मन की इप्साओं का नेत्रजल भरा पड़ा है। अनिल मीणा (बोड़ाणा) रफ़्ता-रफ़्ता बढ़ चुका कुकाल का क़हर नगरों मै रंग ना रहा,, बंद पड़े वो शहर
anil meena
नित्य क़दम ब क़दम चल रहीं कुकाल की लहर मुसलसल वक्ष मै बढ़ रहा विभीषिका का क़हर मानुष के अन्तःकरण मै ख़्याल यंत्रणा का खेप-लदान उमड़ पड़ा है विलिनता के त्रास से मनुज भी आकस्मिक रंजोग़म हो पड़ा है अब तो उरस्थल का पाषाण भी इस संताप के दुर्भिक्ष मै भग्नावशेष के रूप मै ध्वस्त हो पड़ा है आलय की प्राचीर मै से क़ैद देखों हयात के सम्मुख कौन खड़ा है माना मन की इप्साओं का नेत्रजल भरा पड़ा है। अनिल मीणा (बोड़ाणा) रफ़्ता-रफ़्ता बढ़ चुका कुकाल का क़हर नगरों मै रंग ना रहा,, बंद पड़े वो शहर
Veer Keh Raha
Anand vishnushali
Ravendra
कवि राहुल पाल 🔵
शहर की भीड़ शहर की भीड़ से अलग है ,हम सुन्दर उपवन जैसे गांव से है , जहां हम रिश्तों की डोर बधी ,हम एक नदी में बहती नावँ से है ! आज शहरों की सड़को की मायाजाल उम्र से लम्बी लगती है, भावनाये और रिश्ते की रसधार जहाँ नालों में सस्ते में बहती है !! जब बदल गया इंसान जहाँ आधुनिकता के व्यापक दावँ से है , अच्छा है आडम्बर के शहरों से नही ,हम आज भी गावँ से है .!! शहर की सुबह शाम दोपहर का कुछ आज गया ज्ञात नही , जिंदगी में आज भीड़ बहुत है ,पर यथार्थ में कोई साथ नही ! सुख सुविधाओं की धमाचौकड़ी पर सच के सुख का ज्ञान नही , इंसान बहुत है परन्तु यहाँ ,सुख दुख भांप सके ऐसा इंसान नही !! नगरों में वृक्षों की बिम्ब से ज़्यादा,उच्च मंजिल की छांव से है , अच्छा है आडम्बर के शहरों से नही ,हम आज भी गांव से है !! शहर आदमी की पहचान नही ,यहाँ पहचान तो रुपया -पैसा है , कोई किसी का जहाँ सगा नही है ,जहाँ फ़िक्र नही कौन कैसा है !! शोर शराबों की गलियों में आज जहाँ सोने का भी वक़्त नही.. , सैकड़ो मरते है रोज यहाँ पर ,पर दो आंसू भी रोने का वक़्त नही !! निर्मम ,निर्दयी और घृणा से पतन पथ पर निकले जिनके पावँ से है, राहुलअच्छा है आडम्बर के शहरों से नही ,हम आज भी गांव से है.. #Bheed शहर की भीड़ से अलग है ,हम सुन्दर उपवन जैसे गांव से है , जहां हम रिश्तों की डोर बधी ,हम एक नदी में बहती नावँ से है ! आज शहरों की सड़को
Aprasil mishra
अब न्यायालय में न्याय नहीं अन्याय सुरक्षित होता है। अब पुलिस नियन्त्रण में भी तो हर प्राय सुरक्षित होता है।। बहु साक्ष्य जुटा अपराध मिटाना संभव नहीं मिल्कियत में। सर हैवानों का कलम करो अब न्याय भी लज्जित होता है।। (अनुशीर्षक "नारी अस्मिता संरक्षण एवं स्वतन्त्र भारत में हैवानियत") ********************** तुम आद्यशक्ति जगदम्बा थी रणचण्डी की अवतारी थी, दामन को कैसे लजा दिया जब सिंहों की अधिकारी थी। मैं प्रश्न करूँ यह उचित
lalitha sai
भारतीय संस्कृति में बहुत सारे कला ऐसे होते है जिसे देखते थे ही.. मन को शांति और आँखों को सुकून दे जाते है! भारतीय संस्कृति में कुछ ऐसे रंग है जिसे देखकर मन को ख़ुशी इन आँखों को सौ पल के याद दे जाते है! #kalamkaari #prints #lalithasai #myworld #myfevoriteprints कलमकारी आंध्र प्रदेश की अत्यंत प्राचीन लोक कला है और जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह