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CalmKazi
इक शहर की कहानी खोजते हैं लोग राहगीरों से दो टूक पूछें कभी। मोहल्ले को साफ़ करने जुटे हैं लोग बाल्कनी का शोर सहें कभी। हैं हर गली में चर्चे अलग उस शहर की व्यथा समझें कभी। YourQuote Baba के “Word of the day” चैलेंज को सम्बोधित करते चंद पंक्तियाँ “City” उर्फ़ शहर पर ये पंक्तियों में थोड़ी “futility” दर्शायी है
दि कु पां
विवाह:.... जो प्रेम विवाह न था... जहां देह का देह के साथ बंधन हुआ था.. जहा बसेरा था शंका का.. भविष्य को ले असमंजस था... इन्हीं सब को बयां करती कुछ पंक्तियां... कृपया अनुशीर्षक में पढ़े.. अच्छा लगे तो प्रोत्साहित करे ... सजा धजा बैठा दी गई थी वो पावन परिणय सूत्र में बधने के लिए.. संस्कार और समाज की दुहाई दे उसके जज़्बातों को विवाह वेदी पर सदा के लिए ख़ामोश कर
राजेश गुप्ता'बादल'
The Guest कण कण में इस हिन्द की सोच आगंतुक जो भी वो देव है, वक्त है चाल निराली बंद कर दरवाजा दर पै आया कोरोना कुदेव है! अतिथि है किन्तु इससे पूछो आखिर जाना तुझको मगर कब है? देने को देते सबको मान यहां बिन बुलाए आ धमका जो गांव मेरे ने आखिर मेहमान तुझको कहा ही कब है? पापी नीच कमीन अधम निरा ही निपान, लाशों के हैं अम्बार लगे जहां भी पहुंचा तू जब है। दूर हटो हाथ छुड़ाओ कारण इसके अश्क बिरहा के क्या कम है, भूखी आंतें सूनी सड़कें घर जैसे बे मियादी कारावास, कैसे कहूं तू रूप खुदा का हरकत से तू हैवानों से क्या कम है। राजेश गुप्ता'बादल'मुरैना मध्यप्रदेश #अतिथि #मेहमान #शैतान #हैवान #कोरोना #nojoto #all The Guest कण कण में इस हिन्द की सोच आगंतुक जो भी वो देव है, वक्त है चाल निराली बंद कर दर
Dr Jayanti Pandey
जिंदगी का फ़लसफ़ा आसानी से कहां समझ आता है हर दिन,कुछ नया कायदा सीखने को रह ही जाता है।। (कृपया पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) जिंदगी..... जिंदगी ओसारे में जमा कर रखी जांत सी है वैसे तो एकाकीपन है पर उसकी गति के अपने नियम हैं कभी तेज कभी धीरे धीरे नेह का गेहूं पीस
Utkrisht Kalakaari
Divyanshu Pathak
तेरे बर्फ़ीले एहसासों की बानगी काजू की बर्फ़ी है ! सूखी शख़्त भुरभुरी पर मीठी बहुत मीठी ! तेरी बातों की तरी को मैंने चख कर देखा ओहो ! गुड़ शहद गुलकंद मकरंद से भी मीठी बहुत मीठी ! :💕🍨🍧💕👨🙋☕☕☕☕☕☕☕🙋💕🐒😊🍉🍉🍧🍨🍨 Good evening ji .... तेरी तलाश की है मैंने मन्दिर मैदान पहाड़ो में ढूढ रहा था तुझको यारा मैं खण्डर और खदानों में ! चा
Sarita Shreyasi
विवाह-संस्कार के समय,कुछ वचन उच्चारण किये थे तुमने, हाँ,उच्चारण ही,मनन नहीं कह सकती, क्यूंकि मुझे तो आत्मसात थे,उस दिन नहीं,बहुत छुटपन से, जब सही अर्थों में ब्याह का अर्थ नहीं जानती थी, तब से गौरी को शिव की और स्वयं को किसीकी अर्द्धांगिनी ही मानती थी। Read in caption विवाह की वेदी पर संस्कार के नाम पर, कुछ वचन उच्चारण किये थे तुमने, हाँ, उच्चारण ही, मनन नहीं कह सकती, क्यूंकि मुझे तो आत्मसात थे, उस दिन नही