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Ayush Arya

#रामधारी सिंह दिनकर की कविता।

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Anirudh Tiwary

# रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता #poem

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Anokhi

# दिनकर जी की कविता हिमालय...! #Vow #nojotovideo

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felling india

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता #kavita

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आशीष रॉय 🇮🇳

कविता - रामधारी सिंह दिनकर। #reading

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कविता - रामधारी सिंह दिनकर।

दिनकर की रचनाओं ने स्वाभिमान जगाया है।
दबी बुझी सी चिंगारी में फिर ज्वाला भड़काया है।
कलमों को हथियार बना अंग्रेजों को भगाया है।
कविताओं के बल पर आजादी हमें दिलाया है। 

कविताओं में हुंकार जब दिनकर ने लगाया है।
दुश्मन के सीने को दिनकर ने खूब जलाया है।
दुश्मन हो या अपने सभी को आईना दिखलाया है।
लड़खड़ाती राजनीति को साहित्य से संभाला है।

कोरे कागज सा जीवन में साहित्य का दीप जलाया है।
उर्वशी में स्त्री का क्या कोमल ह्रदय दर्शाया है।
जो देश के लिए तन मन सब अर्पित कर जाता है।
वही राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर कहलाता है।

                                           - आशीष रॉय। कविता - रामधारी सिंह दिनकर।

#reading

Vimlesh Miledar Saroj

#कविता अहिंसा की पुकार

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Sachin Singh Golu

#SpeakOutLoud राष्ट्र कबि रामधारी सिंह दिनकर जी की कबिता #कविता

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Anirudh Tiwary

# रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता रह जाता कोई अर्थ नहीं #poem

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Harisingh Goliya

मेरी कविता- किसान की पुकार

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👳💦 किसान की पुकार

स्वरचित पंक्तियाँ- हरिसिंह गोलिया

रोज
आसमान को ताकता
सुदूर नज़र फैलाकर
कभी एक आंख से देखता
कभी दोनों आंखे बंद कर
हाथ जोड़कर, 
प्रभु का स्मरण कर
अर्जी लगाता द्वार पर, 

देखा मैंने बागानों के झुरमुट से
कोयल की बोली से प्रेरित होकर
अन्न से बातें करता
आज नहीं तो कल 
तुझे खेत में बोना है
पर तेरी मेरी उम्मीदों को
जरूर सुनेगा भगवान है


ज़रूर सुनेगा
दिल तो उसका भी करता होगा
कि भू लोक पर जाऊँ
खेतों को लहलाऊं
प्राणी की उम्मीदों को
नये मोड़ पर लाऊँ


तपा रही है  धूप हृदय को
आषाढ़ में भी
अब तो सुनो पुकार
इन प्राणों की
ए! बदरा
बदरा ए! 

बरसो बदरा 
वादियों की सर्पीली कंदराओं से
कर दो धूमिल वृक्षों और घाटियों को
भर जाएं तालाब 
और  परैला भी

जला रही है घाम
नन्हें 'बालों' को
रुई भी जल जाए
ऐसा ताप आ रहा
  
टेर लगाते
हेला देते
गला रुंध सा गया है
देखते  देखते आंखों से भी
आंसू बहने लगे हैं
हर दिशा की ओर देखकर
सिर भी कंपकपाने लगा है

देखकर कोई बदरिया
पास मेरे आई नहीं
देखा उसे बार बार 
गीली आंखों से
जो हालात देख रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी उसने नहीं 
जो थी एक झंकार
खेतिहर मजदूर की

एक क्षण के बाद 
गिरी एक बूंद माथे पर
और
वह काँपी सुघर
ढुलकर माथे से 
गिरी सीकर
और कहने लगी एक बात
आज ही बरसूंगी तेरे द्वार
और कर दूंगी धरा को 
तरबतर
अब तो मुझे आना पड़ेगा
 तेरे दर

© Harisingh Goliya मेरी कविता-
किसान की पुकार
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