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डॉ जेपीएस चौहान
पीड़ित अतिथि विद्वान की यशस्वी मुख्यमंत्री से गुहार सपना यूँ देखा था कि पढ़ेंगे पढ़ाएंगे उच्च शिक्षा में अपना कैरियर बनाएंगे। ज्ञान जय प्रकाश हो अज्ञान का विनाश हो समग्र विकास हो ये अलख जगायेंगे। भनक तनक न थी कि भटकेंगे दर दर नेट और पीएचडी लेकर ठोकरें खाएंगे । नंगा कर डाला है पीएससी घोटाले ने कोई बतलाए क्या निचोड़ेंगे नहाएंगे? छात्रों की जिंदगी में प्रकाश करते ही रहे अपना ही जीवन अंधकार में बिताएंगे? 'नाथ'से है आस अतिथि नियमितीकरण की और पीएससी फर्जीवाड़े की जाँच कराएंगे। दो दसक व्यतीत किये विद्वानी कर कर के आप वचन निभाकर हजारों जान बचाएंगे पीएससी घोटालेबाज प्रोफेसर बन जाएंगे कब तक आखिर हम ‘अतिथि’ कहलाएंगे। शोषण का हरण करें नियमितीकरण करे, हम न्याय की गुहार और किससे लगाएंगे ?? #अतिथिविद्वान
डॉ जेपीएस चौहान
माननीय मुख्यमंत्री जी,माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए निवेदन है कि वर्षों से शोषित,पीड़ित और गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए अतिथि विद्वानों को भी संवैधानिक अधिकार देने की कृपा करें ।नियमितीकरण कर उन्हें भी भारत के स्वतंत्र नागरिक के रूप में अधिकार दें,उच्च शिक्षा में उनके योगदान को सम्मान दें। मध्य प्रदेश के सभी अतिथि विद्वान उनके प्रियजन और उनके परिजन आपके आजीवन ऋणी रहेंगे #अतिथिविद्वान
डॉ जेपीएस चौहान
मैं अतिथिविद्वान हूँ मैं भी जीना चाहता हूं मैं रोज सुबह कॉलेज जाता हूँ शाम को लौट कर घर आता हूँ मैं नौकरी करता हूँ ऐसा खुद को भरमाता हूँ पूरी लगन से बच्चों को पढ़ाता हूँ भूखे पेट जीने का साहस जुटाता हूँ मैं अतिथिविद्वान हूँ,कहाँ जी पाता हूँ। भारत का संविधान बच्चों को पढ़ाता हूँ पर अपने अधिकार कहाँ ले पाता हूँ जिंदगी जीने का हुनर सिखाता हूँ मैं भी जीने की कोशिश करता हूँ पर मैं अतिथि विद्वान हूँ ,कहाँ जी पाता हूँ। मकान के किराए को ,किराने की उधारी को हांथ जोड़कर सिर्फ आगे बढ़ाता हूँ पेरेंट्स मीटिंग में मैं शर्म से झुक जाता हूँ बच्चे की फीस कब जमा होगी नही बता पाता हूँ मैं भी जीना चाहता हूं पर अतिथिविद्वान हूं कहाँ जी पाता हूँ राखी में बहन को सिर्फ दुआ दे पाता हूँ दुआएं ही उपहार है झूठे आदर्श गाता हूँ इंसान की पहचान कपड़े नही आचरण से होती है संतोष में ही सुख का पाठ पत्नी को पढ़ाता हूँ बाबूजी की दवाई भी जब नही ला पाता हूँ कसम से साहब जीते जी मर जाता हूँ जीना मैं भी चाहता हूँ पर मैं अतिथिविद्वान हूँ,कहाँ जी पाता हूँ। गोल सूरज चाँद में सिर्फ रोटी देख पाता हूँ खाली पेट जब मैं भूगोल पढ़ाता हूँ। कभी भूख तो कभी इलाज के अभाव से मर जाता हूँ कफ़न के पैसे भी अपने खाते में नही छोड़ जाता हूँ जीना चाहता हूं पर अतिथि विद्वान हूँ, कहाँ जी पाता हूँ डॉ जेपीएस चौहान #अतिथिविद्वान
डॉ जेपीएस चौहान
आंधी को है आमंत्रण विकराल रूप में आने का दीपक फिर कैसा आश्वासन तेरे न बुझ जाने का आंधी -सहायक प्राध्यापक भर्ती घोटाला दीपक -अतिथि विद्वान #अतिथिविद्वान
डॉ जेपीएस चौहान
India quotes स्वतन्त्रता- गणतंत्र दिवस पर कैदी भी लड्डू पाते हैं, बमुश्किल जो मिलते थे ,इसके, मानदेय कट जाते हैं। भूखे पेट जो गाता है " मेरा भारत देश महान", पूछो कौन है वो इंसान? महाविद्यालयीन अतिथि विद्वान। जो तन-मन से हिंदुस्तान का है,क्या हिंदुस्तान न उसका है? जो संविधान की शिक्षा देता वो संविधान न उसका है ? 'समान काम समान वेतन' का जिस पर लागू नही विधान, बूझो कौन है वो इंसान?? महाविद्यालयीन अतिथि विद्वान। #अतिथिविद्वान
डॉ जेपीएस चौहान
प्यार उसे भी मुझसे था इश्क तुम्हे भी मुझसे है उसने तो ठुकराया था तुमने क्या अपनाया है? ए कुर्सी पर बैठे मेरे सनम रोजी को मेरी आंखें नम 💔अतिथि विद्वान😓 #अतिथिविद्वान
डॉ जेपीएस चौहान
माननीय मंत्री जी स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए निवेदन है कि वर्षों से शोषित,पीड़ित और गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए अतिथि विद्वानों को भी संवैधानिक अधिकार देने की कृपा करें।नियमितीकरण कर उन्हें भी भारत के स्वतंत्र नागरिक के रूप में अधिकार दें,उच्च शिक्षा में उनके योगदान को सम्मान दें। मध्य प्रदेश के सभी अतिथि विद्वान उनके प्रियजन और उनके परिजन आपके आजीवन ऋणी रहेंगे #अतिथिविद्वान
डॉ जेपीएस चौहान
स्वतन्त्रता व गणतंत्र दिवस पर कैदी भी लड्डू पाते हैं, बमुश्किल जो मिलते थे ,इसके, मानदेय कट जाते हैं। भूखे पेट जो गाता है " मेरा भारत देश महान", पूछो कौन है वो इंसान? महाविद्यालयीन अतिथि विद्वान। जो तन-मन से हिंदुस्तान का है,क्या हिंदुस्तान न उसका है ? जो संविधान की शिक्षा देता ,वो संविधान न उसका है ? 'समान काम समान वेतन 'का जिस पर लागू नही विधान, बूझो कौन है वो इंसान? महाविद्यालयीन अतिथि विद्वान। #independenceday #अतिथिविद्वान
डॉ जेपीएस चौहान
अतिथि विद्वानों की व्यथा दुनिया में चहुंओर नए साल का जश्न है हर कोई झूम रहा, मुस्कुराता मगन है अतिथि विद्वानों के जीवन में रुदन है ठंड है ,बारिश है और खुला गगन है शाहजहानी में झेलता जानलेवा गलन है पीड़ा,परेशानी, पदयात्रा की थकन है विकल सकल नर- नारी दिव्य जन है चीख, चीत्कार और शिशु क्रंदन है मृत्यु के वरण तक जारी अनशन है आंखों में आसूं और जीते जी कफ़न है ' बाहर न'कि जीतू की झूठी रटन है नाथ ने बताया गीता कुरान सा वचन है अनुभव व शिक्षा का मान रख प्रूफ करें लोक तंत्र जिंदा और जिंदा सदन है फालेनआउट के खंजर से जख्मी बदन है जीवन बचाने को सिर्फ नियमितीकरण है #HappyNewYear2020 #अतिथिविद्वान #atithividwan