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Dr. Govind dhar Dwivedi
वह नाराज है मुझसे तो नाराज ही रहने दो। यूं ही उनको मुझसे एतराज ही रहने दो।।किस कदर बेगुनाही की उन्हे सबूत दें।ऊपर मुझसे उन्ही के आवाज रहने दो।। वह मुझको समझते हैं इंसान गलत है । बात गलत है मगर यह राज ही रहने दो।।सत्य सदा परेशान होता पर हारता नही।खुदा के सामने झूठ का अलफाज ही रहने दो। मुद्दतों मांगेंगे रब से उनके लिए खुशियां। जो आता है इल्जाम हम पर तो इल्जाम ही रहने दो।। उनकी शर्ते हैं मैं बदनाम रहूं। अगर खुशी मिले उनको तो मुझे बदनाम ही रहने दो।। ©Govind dhar Dwivedi सत्यता। लेखक- जी डी द्विवेदी
Dr. Govind dhar Dwivedi
My Bicycle पांचवी तक चपरासी लेकर आता जाता था। छठवीं से आठवीं तक मैं अपना कदम बढ़ाता था।। एक दिन बोला हे मैया चलते चलते हम थक जाते हैं। सात किलोमीटर्स आना जाना दर्द बहुत दे जाते हैं।। इकलौता होने के कारण मैया मुझ पर स्नेह करती थीं करती हैं। मेरा तिल भर दुख दर्द पीड़ा बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं।। बनिया को बुलवाकर मैया गेहूं को बेच दिया। 24 सौ का नई साइकिल मुझे खरीद एक दिया।। मां की ली हुई साइकिल नहीं वह मेरी जान थी। अंतरात्मा में खुश थे सभी बच्चों में बन गई पहचान थी।। कुछ दिन बीते ही थे तभी घर में मेरे चोरी हो गई। सभी वस्तुओं के साथ प्राणों से प्यारी साइकिल खो गई।। इंटर तक कॉलेज व कोचिंग पैदल आते जाते थे। अपने पहली साइकिल के बारे में सोच कर बहुत उदास हो जाते थे।। नोजोटो पर मैंने पहली साइकिल के बारे में लिखा सत्य कहानी है। मानव जीवन होता है संघर्ष मय शायद हर जीव की अपनी अपनी अलग कहानी है।। ©Govind dhar Dwivedi लेखक-जी डी द्विवेदी #WorldBicycleDay2021
Dr. Govind dhar Dwivedi
कुछ दर्द हमारे भी हैं, कुछ दर्द आप के भी हैं। मेरा कोई हमदर्द नहीं, अनेकों हमदर्द आप के हैं।। कुछ भूल हमारी है, कुछ भूल आप के हैं। गुनाहगार हमें बना दिए, यह सलूक आप के हैं।। मानव प्रेम धर्म है मेरा, यही इंसानियत आपके हैं। आप हमें गलत समझ बैठे, यही खासियत आप के हैं।। पवित्रता मुझ में भी समाहित है, बहुत अच्छे संस्कार आप के हैं। सरेआम बदनाम कर दिये, यह परोपकार आप के हैं।। ©Govind dhar Dwivedi एक पीड़ा । लेखक- जी डी द्विवेदी
Dr. Govind dhar Dwivedi
कोई कैसे किसी को समझाता,ए दिखा दो मुझे। हम कैसे उनको समझाएं, कोई बता दो मुझे।। किसी की एहसान जीवन भर, भूल पाते नही । कैसे उनकी गलतफहमी दूर करें, मुझे आते नहीं।। वह थोड़ा सा झुके मेरे लिए ,यह उनकी अच्छाई है। हम सदैव नमन वंदन करते रहे, यह भी एक सच्चाई है।। ©Govind dhar Dwivedi ग़लत -सन्देह! लेखक- जी डी द्विवेदी
Parasram Arora
आखिर मैंने एकदिन पथ्हर.युग के अवशेशो क़ो ढूंढ़ने मे सफलता प्राप्त कर ही ली उन अवशेशो के खंडहर मे पुरातन हड्डीयो के बींच मै अपनी अस्थियो क़ो पहचान कर बेहद ख़ुश हुआ . जबकि उन पर ज़र्दिली गर्द की परत जमी हुई थी... ज़ो कह रही थी की मै उस युग मे भी इतना ही खूंखार था जितना खूखार मै आज हूँ..... फर्क बस इतना है कि पथ्हर युग मे मै चार पैरो से चला करता था और पंजों पर बड़े बड़े नाखून हुआ करते थे आज मै दो पैरो से. चलता हूँ. और पज़ो से नाखून गायब है ©Parasram Arora पथ्हर युग के अवशेष