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SK Poetic
न हाथ एक शस्त्र हो न हाथ एक अस्त्र हो न अन्न वीर वस्त्र हो हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। रहे समक्ष हिम-शिखर तुम्हारा प्रण उठे निखर भले ही जाए जन बिखर रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। घटा घिरी अटूट हो अधर में कालकूट हो वही सुधा का घूंट हो जिये चलो, मरे चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। गगन उगलता आग हो छिड़ा मरण का राग हो लहू का अपने फाग हो अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। चलो नई मिसाल हो जलो नई मिसाल हो बढो़ नया कमाल हो झुको नहीं, रूको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। अशेष रक्त तोल दो स्वतंत्रता का मोल दो कड़ी युगों की खोल दो डरो नहीं, मरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। ©S Talks with Shubham Kumar बढ़े चलो बढ़े चलो – सोहनलाल द्विवेदी #achievement
UTKARSH DWIVEDI
Dr. PRAMILA TAK
ओंस की बूँद चेहरे पर पड़ रही थी। आंसूओं की बूदें पलको से छलक रही थी वो भी नादान आंसू के बदले ओस की बूंदें पोछ रही थी ओस की बूंदे....
Deepak Kumar 'Deep'
सुबह की ओस ने बयान की है तुम्हारी रात को कहानी कि कैसेे मेरे बगैर तुम भी गमगीन रहते हो... Deepak Kumar 'Deep' #सुबह की ओस
Parasram Arora
रात्रि क़े अंतिम प्रहर क़े सन्नाटे मे कुछ ओस की बूँदे लज़ाती हुई कमल क़े पत्तों पर उतर आई थीं किन्तु सूरज की पहली किरण का स्पर्श पाते ही वे वाष्पीभूत हो हवाओं पर बैठ गई और फिर बादलों की पीठ तक पहुंच कर उन्होंने अपनी आगे की यात्रा स्थगित करने की घोषणा. कर दी ©Parasram Arora ओस की बूँदे....