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Rudra Pratap Singh
जो कुबूल नहीं इश्क़, तो नामंज़ूर ही कर दो। छोड़ दो मुझे, मेरे हाल पर, अब बदस्तूर ही कर दो। -रूद्र प्रताप सिंह (Plz Refer To Caption For Meaning) बदस्तूर*: पहले की स्थिति में, पहले की तरह
Ek villain
इस बात पर यकीन नहीं होता कि वर्तमान समय में पृथ्वी अंतरिक्ष से आने वाली किसी साल्लाह का संबंध हमारे सौरमंडल के अतीत से भी हो सकता है वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि 9 साल पहले रूस के चेले स्टीयरिंग शहर में पढ़ने वाले उल्कापिंड का संबंध अंतरिक्ष में से एक बड़ी बड़ौदा से था जिसके बल पर चंद्रमा का जन्म हुआ ध्यान रहे कि 19 मीटर चौड़ी इस उल्कापिंड के फटने से व्यापक क्षति हुई थी और 16 से अधिक लोग घायल हो गए थे वैज्ञानिकों के चेंज बैंक अकाउंट के बारे में नया अंतरिक्ष में चट्टानों की टक्कर के सामने धारण विधि के आधार पर किया इस उल्का पिंडों के अंदर मौजूद खनिज आधारित है हमारे सौरमंडल का गठन कब हुआ था वैज्ञानिकों का गठन किया इस दौरान निर्माण में इतिहास का पता लगाना मुश्किल है क्योंकि भौगोलिक और मौसमी परी के देव ने सारे सबूत मिटा दिए इस तरह पर बड़े-बड़े पर हार के निशाने भी छुप सकते थे बुध ग्रह नीच का रेप एंड और अंतरिक्ष की सुनने सतावे बिछड़ जाते हैं या परिवर्तित होते पृथ्वी की घूर्णन की गिरफ्त में आने के बाद में उल्का पिंडों के वैज्ञानिकों के आधार पर गठित करने की विधियां हैं इसमें से एक विधि और शीशा की आयु निर्धारण की गई है ©Ek villain #उल्का पिंड में छिपा सौरमंडल का अतीत #Moon
Shravan Goud
कभी कभी दुसरो के व्दारा किए कार्य मन को भटका देते हैं। इस समय संयम बनाए रखना और अपने कार्य के प्रति श्रद्धा रखना जरूरी होता है। भटकाव की स्थिति में आत्मसंयम जरूरी होता है।
Archana Basera
बड़ा चंचल है मन समझता ही नहीं, भीड़ में तन्हाई तन्हाई में भीड़ ढुंढता है। वर्तमान की स्थिति
Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है फूल होकर भी शूलों में होती गिनती है बाहर से पत्थर,भीतर से फूलो का शहर, फिऱ भी सब कहते वो तो कठोर मति है वो अपने सीने का दर्द हँसकर छिपाता है ज़मानेवाले समझते वो हंसती जिंदगी है इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है पुरुष दरिया में होकर भी सूखी लकड़ी है कोई भी शख्स उसको समझ न पाता है वो उजाले में रहकर भी अंधेरा ही पाता है वो अपनों के लिये पत्थर सा होकर भी, जलता और पिघलता बनकर मोमबती है इस जग में पुरुषों की अजीब स्थिति है आंख में नीर होकर भी सूखी जिंदगी है कब तलक यूँ जीवन भूखा चलता रहेगा, वो सबकुछ करके भी भूखा सोता रहेगा माना सब कर चुप रहना उसकी प्रकृति है पर बिन दिखावे न दिखती आज रोशनी है पत्थर हृदय है वो पत्थर ही बना रहेगा, अब न वो छिप-छिप अक्षु बहाता रहेगा, वो पुरुष है,वो एक शमशीर है जुगनू की, वो अब तम की निशा को मिटाता रहेगा जो कोई भी अब उसका अपमान करेंगे, अब सबसे वो गिन-गिन बदला रहेगा पुरुष ख़ुदा की दी हुई एक मजबूत कड़ी है वो नही कोई समय की एक टूटी घड़ी है दिल से विजय पुरुषों की स्थिति