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Bhupendra Singh Solanki
रास्ते पर चलना शुरू कर दिया है, मंजिल मिलने पर तुम्हे भी बताऊंगा। ©Bhupendra Singh Solanki #मंजिल की ओर
Dinesh 001
जिन्दगी मैं मुसकिलो से भरे रास्ते आसान हो जाते है जब कोई कहता है डर मत इन रास्तों से वस बढते चलो ये रास्ते ही मंजिल तक जाते हैं मंजिल की ओर
Prince Raj
Alone काफी सुनसान होता है, सुनहरे मंजिल का रास्ता,, इसीलिए कभी मत घबराना, " और " मंजिल की ओर चलते ही जाना, "मंजिल" आपका! बेसब्री से इंतजार कर रही है, मंजिल,,की ओर,,
कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद
मंजिल की ओर चल पड़े ; उड़ते , जमीं से ; आसमां की ओर कर रहे , कोशिश ; आज लगाकर , पुरजोर हासिल हो , अगर कुछ ; तो मजा ,आये कदम तो बढ़ा दिये हमनें;अपनी मंजिल की ओर कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद मंजिल की ओर.....कीर्तिप्रद
@pushpa
Safar जब राहों में मुश्किलें बढ़ने लगे और लोग भी तुम से जलने लगे.. तो घबराना मत , समझ लेना कि सच में तुम्हारे कदम मंजिल की ओर बढ़ने लगे.. @pushpa कदम मंजिल की ओर बढ़ने लगे....
ÑARPAT RAZ VANAL
मंजिल इंसान के हौंसले आजमाती है, सपनो के परदे आंखों से हटाती है, किसी भी बात से हिम्मत मत हारना,, क्योंकि ठोकर ही इंसान को, चलना सिखाती हैं। ©ÑARPAT RAZ VANAL मंजिल की ओर रुख ✍️✍️
Abhi
मंजिल की ओर बढ़ चला हूँ मैं , लौ जो ठंडी थी अब-तक , उनमें ज्वाला भर चला हूँ मैं । आये तूफान गर मंजिल तेरे रस्ते में, कह दूं मैं उसको आँख मिलाये जा अब तेरा भय नही मुझको, अब तो आगे ही बढ़ते जाना है । मंजिल की ओर बढ़ चला हूँ मैं... नींद नही अब आँखों मे , सुकून नही अब सांसो में, बातें करता दिन-रात मैं किताबों से, मंजिल तेरे बारे में । बैठे-बैठे दिन बीत जाते जाने कब, आराम नही फिर भी रात के अंधियारे में । मंजिल की ओर बढ़ चला हूँ मैं , जिक्र नही करता हूँ अब खुद की किसी से मैं , लगता है जैसे थोड़ा दूर हो चला हूँ यारों से मैं, बातें खुद से ही अब करता हूँ मंजिल तेरे बारे में , तुझको पाना ख्याब है मेरा एक सुंदर सा, इसीलिये ख्याबों में भी तुमको ही बुनता हूँ मैं । मंजिल की ओर बढ़ चला हूँ मैं .... बहुत हुई अब आँख-मिचौली , भूल सब आगे जाना है , मैं रातों को सोने नही देता हूँ या रातें मुझे जगाती है , घबरा सा जाता हूँ कभी-कभी मैं पर फिर सोचता हूँ , कठिन है रास्ते पर कोई गम नही मंजिल तक तो जाना है । मंजिल की ओर बढ़ चला हूँ मैं .... माँ-बाबू जी ,भैया-भाभी के बलिदानों को मैं कैसे भूल सकता हूँ , उनसे किये वादों को सोच ,हर सुबह जल्दी ही उठ जाता हूँ चाहतें , जरूरतें कुछ कम ही रखता हूँ , सोना ,खाना, बातें करना जाने कब मैं करता हूँ , मंजिल की ओर बढ़ चला हूँ मैं , लौ जो ठंडी थी अब तक,उनमें ज्वाला भर चला हूँ मैं। मंजिल की ओर बढ़ चला हूँ मैं ..... Abhinay kr. मंजिल की ओर बढ़ चला हूँ मैं ...
Pari
राहें अनजाने सफर पर, अनजाने मुसाफिर की, अनजानी सी मंजिल की, अनजान कहानी सुनाती ये अनजान सी राहें । खूबसूरत मंजिल की ओर जाती हुई मुश्किल राहें ।