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Zeeshan khan
जब एक अरसे बाद लोग मिलते हैं, तो हर मुलाकात में एक छोटी सी कहानी होती हैं...!! ज़ीशान खान💞
Zeeshan Ansari
जो भी वादे हैं किए सारे निभाऊंगा मैं आप जो चाहेंगे वो करके दिखाऊंगा मैं दर्दो आलाम की तारीफ़ अगर पूछोगे अपने दिल की तुम्हे आवाज़ सुनाऊंगा मैं मैं हूं इक आम बशर कोई मुफ़स्सिर तो नहीं जो तेरे ख़्वाबों की ताबीर बताऊंगा मैं करदे मजबूर ज़माने को जो बोसे के लिए ऐसा किरदार हसीं अपना बनाऊंगा मैं खा नहीं पाएंगे जब खाना ज़ईफी के सबब बूढ़े मां बाप को हाथों से खिलाऊंगा मैं ऐसे बेगानों की बस्ती में कोई कैसे जिए छोड़िए दुनियां अलग जाके बसाऊंगा मैं इश्क़ है, इश्क़ है ज़ीशान सुनो इश्क़ है ये इसके हर नाज़ मुहब्बत से उठाऊंगा मैं ज़ीशान बरकाती इलाहाबादी ज़ीशान बरकाती इलाहाबादी
Zeeshan Ansari
ग़ज़ल हमारी ज़िन्दगानी में जो इतनी शादमानी है। ये अपनों की इनायत है, ख़ुदा की मेहरबानी है। महेज़ क़तरा समझिए मत इसे दो बूंद पानी का, बयां जो कर नहीं सकते उसी की तरजुमानी है। उजड़ता जा रहा है धीरे-धीरे बागबां अपना, ये कैसी हुक्मरानी है, ये कैसी निगहबानी है। ये दुनियां चार दिन की है बहुत उम्मीद ना रखना, सुनाई जा रहीं हैं जो फकत झूठी कहानी है। मसर्रत बढ़ती जाती है कभी जब सोचते हैं हम, वरासत में मिली हमको बुज़ुर्गों की निशानी है। चलो सिक्का उछालो जो भी होगा देखा जायेगा, हमें फूटी हुई क़िस्मत मुक़र्रर आज़मानी है। ये कैस रहनुमां हैं जो हमें पहचान ना पाए, अरे पहचान तो ज़ीशान अपनी ख़ानदानी है। ज़ीशान अंसारी बरकाती
Zeeshan Ansari
कता जो मैंने कल कहा था तुम्हे आई लव यू सुनते हैं ख़बर फ़ैल गई है वो चार सू कर्ता हूं सिद्क दिल से दुआयें मैं सुबह शाम जो भी है तेरे दिल में वो पूरी हो आरज़ू ज़ीशान बरकाती इलाहाबादी मुहब्बत के हवाले से चार मिश्रे ज़ीशान बरकाती
Mehfil-e-Mohabbat
समझदारी उदासी की वजह है हमें पागल ही होना चाहिए था ©राहुल रौशन ✍️♥️ज़ीशान अंसारी भाई♥️✍️
Muawiya Zafar Ghazali Mustafai
“ नाम तॆरा मॆरी जुबान पर खुद ही आ जाता हैं , जब कॊई मुझसॆ पूछता हैं पहली ख्वाइश मॆरी ” #ग़ज़ाली!!. —@फ़कीर मुआविया ज़फ़र ग़ज़ाली “रज़वि नूरी क़ादरी अमरोहिवी”
Muawiya Zafar Ghazali Mustafai
“ मंज़िलो से अपनी डर ना जाना रास्ते की परेशानियों से टूट ना जाना, जब भी ज़रूरत हो ज़िंदगी मे किसी अपने की, हम आपके अपने है ये भूल ना जाना ” #•gazali!.. —@फ़कीर मुआविया ज़फ़र ग़ज़ाली “रज़वि नूरी क़ादरी अमरोहिवी”