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Ashi Singh
मन रूपी सागर में हर रोज लहर सी उठती है ,, कभी सागर सी में ,अथाह हूं कभी लहरों से उद्विग्न हुई,, कभी गैरों को समझाती हूं ,कभी खुद में डूबी रहती हूं ,, यह वक्त बड़ा तूफानी है,,,चारों ओर तबाही फैली है , पर!!इतने में भी उम्मीद यही ,,यह मौसम का मंजर बदलेगा,,इस जीवन की है ,, ,रीत यही हर रात के बाद सवेरा है ,, मत सोच के पगले इतना भी ,, ,खुशियों का रेला आना जाना है... (Ashi Singh) ©ashi singh मनोव्यथा... #PrideMonth
Khilendra Kumar
हां मैं एक शिक्षक पर . यें मत सोचो की मैं पढ़ानें बैठा हूँ । मैं कहां पढ़ाने बैठा हूँ ?मै तों डाक बनाने बैठा हूँ। कितनें st कितने obs कितनेGen दाखिल हुए . कितनों के बनें आधार कितने कें खाते हुए खुलें । बस इन्हीं कागजों में उल्झा निज साख बचाने बैठा हूँ मैं कहां पढ़ाने बैठा हूँ ? कभी smc कभी PTA की मीटिंग बुलाया करता हूँ ' 100 - 100 बातों की फाइलें मेरी मैं उन्हें बनाया करता हूँ । अभियानों में मैं डयूटी निभाने बैठा हूँ मैं कहां पढ़ाने बैठा हूँ ? ©Khilendra Kumar शिक्षक की मनोव्यथा
शून्य(ब्राह्मण)
मन की व्यथा:मन ही जाने मन की बात तो जाने मन ...... इस मन का खेल विचित्र ! भेद करें कैसे सबमें....... जाने कौन शत्रु कौन मित्र! #मन_व्यथा
Author Sanjay Kaushik (YouTuber)
कल रात के ख़्वाब में जब उनसे मुलाकात हुई कल रात ख्वाब में जब उनसे मुलाकात हुई वो फिर दिल तोड़ कर चल दिये और कोई नई नही बात हुई #ड्रीम#मीटिंग#लव: मीटिंग इन ड्रीम
Khilendra Kumar
लोगों की सर्वें करने मैं घर - घर जाया करता हूँ ' जब जब चुनाव के दिन आते मैं मतदान कराता हूँ । कभी जनगणना कभी मतगणना कभी वोट बनानें बैठा हूँ ' मैं कहां पढ़ाने बैठा हूँ? रोज ना जानें कितनी यूँ डांक बनाना पड़ता हैं, बच्चों को पढ़ाने की इच्छा मन में दबाना पड़ता है , केवल शिक्षण छोड़ हर फर्ज निभाना पड़ता हैं । मैं कहां पढ़ाने ... इतने पर भी दुनिया वालें मेरी कमी बताते हैं परिणाम ना आने पर मुझे ही दोषी ठहराते हैं । बहरें हैं यहां लोग ,मैं किसे सुनाने बैठा हूँ । मैं नही पढ़ाने बैठा हूँ , मैं मतदान कराने बैठा हूँ ।। मैं कहां पढ़ाने बैठा हूँ ॥. ©Khilendra Kumar शिक्षक की मगेव्यथा भाग 2
पूर्वार्थ
मनोव्यथा...⊙ एक ऐसा क्षण भी नहीं होता,जब मैं तुम्हारे बारे में नहीं सोचता... सोचने के अलावा,तुमने मुझे और किसी काम का नहीं छोड़ा... पर सोच के साथ ये तुम्हारी_यादें... मन के पहाड़ को और भारी कर देती... अचानक से बैठे हुए तुम्हारी यादें... जैसे पानी का एक सैलाब लेकर आईं हो... लवण-जल के इस सैलाब में,एक दिन मेरी स्थिरता का... ये बाँद चकनाचूर हो जायेगा,उस दिन तुम्हें ये सब देखकर... कदाचित पछतावा होगा,लेकिन उस सैलाब में बहे गये... उस व्यक्ति का शेष कुछ भी न बचेगा,बचेगा तो केवल उसकी पीड़ाओं में,लथपथ_उसका_मन ॥ वियोग की इसी गतिविधि का,आत्मसात् होना... विश्व एक महान,काव्य को जन्म देगा... काव्य जिसमें मन के साथ,पीड़ाओं की गाथा होगी... और प्रेम का एक अनोखा संसार,जिसमें इँटों का मात्र ढाँचा ही नहीं... अपितु मन की वेदनाओं का,एक स्तब्ध कर देने वाला... पीड़ित_ढाँचा_होगा... जिसे आनेवाली पीढ़ियाँ प्रेम का महल कहेंगी ॥ # ©purvarth पीड़ित_ढाँचा_होगा... जिसे आनेवाली पीढ़ियाँ प्रेम का महल कहेंगी #मनोव्यथा🥺✍️🧔🏻
Kalpesh Ghelani
रूह थे तेरे मन के विचार मैं तो बस उसका बेजां तन था, रोक लेता ना मुझको ए मन, ख़ामोश रहने का ही तो मेरा बस मन था.. नहीं रही एहमियत अब पहले सी ये खाली जहाँ मे मेरी, बोल उठी उस वक़्त भी थी ख़ामोशी और नाम मेरे वो समन था.. बस "बस" मे होता कहीं थमना और रुक जाना कहीं कहीं, रिश्ते हो जाते गुलज़ार और पूरा हो जाता मेरा वो मक़सद-ए-चमन था.. पर चीखती रही वो ख़ामोशी और सब्र भी अब हार चुका था, नज़दीक था वो बीमार रिश्ते का अंत और ख़तम अब ख़ामोशी का वो दमन था.. वो एक "शब्द" की मनोव्यथा.. #घुटते_शब्द_का_दर्द #yqbaba #yqdidi #yqquotes #yqtales #yqhindi #yqdada