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Prakash Shukla
"मैं और मेरी तन्हाई" तीसरा भाग अब तक की उसकी शरारतें मेरे मन को छू चुकीं थी पर ये सब मुझे सचेत रहने का अंदेशा भी दे रही थीं उसकी हरकतें तो वीराने में खुशहाली लाने जैसी थी उसकी मुस्कान ही उसकी सबसे बडी़ ताकत थी मानो यूँ लगता था कि सारा संसार बौना है उसकी तरह जिन्दगी को देखना और उसे जीना बहुत कम लोगों को नसीब होता है और मै अपनी बात करूँ तो मात्र दो दिनों में ही मुझमें बदलाव आने शुरू हो गए मैने भी खुले आसमान मे उड़ते पंक्षियों की तरह अपने पंख फैलाने शुरू कर दिए थे और सोंच केवल उसकी तरह जीने मे सिमट कर रह गई थी उसका और मेरा सामना करीब दस दिनों तक नहीं हुआ हालाकि हम साथ मे एक क्लास मे बैठते थे पर उसने कभी मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया पर मेरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ उसकी ओर रहता थामै अन्दर से चाहता था कि मेरा उससे सामना हो और बात हो मै उसे करीब से जानना चाहता था पर वह मुझे भाव तो छोडो़ घास भी नहीं डालती थी पर एक बात तो थी कि उसने कभी मुझे निशाना नहीं बनाया था उसका क्या कारण था मैं नहीं जानता पर उसने कभी मेरी तरफ ध्यान भी नहीं दिया यह बात मुझे कचोट रही थी उसने सबको उल्लू बनाया था बारी बारी से उसने सबसे बात किया पहले तो उसकी गैरमौजूदगी सताती थी अब तो उसकी मौजूदगी खलने लगी थी पता नहीं संकोच से मैं इतना ग्रसित था कि मुझे बात तो करना था पर हिम्मत नहीं जुटा पाता था खैर लगभग जब दस दिन बीते तो वह मेरे पास आई और मुझसे कहा कि *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई"तीसरा भाग
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
tushar pandit(foji)
part(3) शाम होते ही ऑफिस से मैं घर के लिए निकल गई थी। पूरे रास्ते में यही सोचती जा रही थी आखिर क्या बात थी मुझे बहुत चिंता सता रही थी। अब मैं घर पहुंची और खाना खाकर अपने रूम में चली गई अभी थोड़ी देर बाद मुझे एक अननोन नंबर से कॉल आया मैंने जैसे रिसीव किया उधर से कोई बोला हेलो सोनिया सॉरी अर्जेंट काम था इसलिए बिना बताए चला गया था। अरे यह तो रघु है मैं मन ही मन दिल को तसल्ली देते हुए थैंक गॉड मैंने थोड़ा गुस्सा जताते हुए नहीं मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी मैंने पूरा दिन तुम्हारा इंतजार किया तुम बिना बताए चले गए थे। रघु-अरे मेरी बात तो सुनो मुझे पता है तुम मुझसे गुस्सा हो कल ऑफिस आना सब बता दूंगा बहुत जरूरी बात है और खुशखबरी भी है इतने में फोन कट गया पता नहीं क्यों मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। कि उसका फोन आया मतलब उसे मेरी फिक्र है मैं मन ही मन यह उल्टी सीधी बातें सोचे जा रही थी। अबे बेबी ठान लिया था कि कल उसे सब बता दूंगी कि मैं उससे कितना प्यार करती हूं उसका पास होना मुझे बहुत अच्छा लगता है। पूरी रात उसी के बारे में सोचती नहीं कैसे बताऊं कि कैसे बताऊं वह मान तो जाएगा ना कहीं गुस्सा ना हो जाए चलो जो होगा देखा जाएगा अब मैंने तो ठान लिया है। आज मैं सुबह थोड़ा जल्दी उठी और उसके लिए गाजर का हलवा बनाया उसे बहुत पसंद है अपनी सबसे फेवरेट ड्रेस पहनी ऑफिस के लिए निकल गई। ऑफिस पहुंची तो मेरी टेबल पर एक पैकिंग टाइप गिफ्ट रखा था। मैंने उसको बैग भी रख लिया और मेरी निगाहें तो रघु को ढूंढ रही थी। अब बस वो मेरे सामने आ जाए और मैं अपने दिल की सारी बात बता दू मुझे कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। तो सोचा क्यों ना इतने इस गिफ्ट को देख लिया जाए मैंने उसे खोल कर दिखा उसमें एक मिठाई का डब्बा था और एक चिट्ठी थी। मैंने उस चिट्ठी को खोला और पड़ने लगी मेरी आंखें भर आई अब जब मैंने पूरी चिट्ठी पड़ी जैसे मेरे सारे सपने बिखरती से नजर आ रहे थे। उस चिट्ठी में जो लिखा था वह मैंने कभी सोचा नहीं था। कि ऐसा भी होगा अब मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। चिट्ठी में लिखा था। सॉरी सोनिया माफी चाहता हूं मैं तुम्हें ...........................................part(4) तीसरा भाग मेरी कहानी का (मेरी कलम से......) sakक्षी avaस्थी Inner Voice Universe❤ Shikha Sharma #alfaz_e_shayra Khushbu verma priya
सुधा जोशी #रूहानी#
Manak desai
maddylines
थोड़ी सी ज़मीन, कुछ गज़ आसमान भी थोड़ी सी आवाज पर समझो बेजुबां ही चला हु नापने आसमां थोड़े से हौसले से आज निकला हूँ पहली बार अकेला घोंसले से सहारा मात्र दिल की तसल्ली को है जाने ज़माने को मुझे उड़ना सिखाने की जल्दी क्यों है दो पल और बीत जाते यूँ ही सहारे से जिसपे भरोसा सबसे ज्यादा था दे दिया धक्का उसने चौबारे से खौफ मौत का सीखने सिखाने को काफी था थोड़े फड़फड़ाये पंख तो उड़ जाने को हल्का हवा का झौंका काफी था संभाला खुद को बादलों में गर्व से तो देखा जो घोसले में खिलाता था खुद भूखा रहके वो बूढ़ी हड्डीयों का बेवाक शरीर, मेरे नंन्हे आसमां का साथी था तुम जो ना दिखाते राह, तो भटक जाना मुमकिन था मंजिल तो दूर रही, चार कदम चल पाना भी मुश्किल था इस काबिल बना दिया मुझे, की फैसले मुश्किल भी ले सकूँ बसर आज भी तेरे आशीर्वाद का मोहताज हु मुझपर तेरे कर्मों का ये हरदम कर्ज़ रहेगा जान देकर भी कर सकूं तुम्हारी हिफाज़त, तो ये मेरा फ़र्ज़ रहेगा ये पंक्तियां गुरु, माता और पिताः को समर्पित है इसका पहला भाग वो है जब बच्चा चलना सीखता है दूसरा भाग जब गुरु बच्चे को कुछ बनाने की मशक्कत करत
भाग्य श्री बैरागी
"मेरी पोटली कहानी का, यह तीसरा अंश है, कृपया अनुशीर्षक में कहानी पढ़ें" सुप्रभात,,, यह कहानी का तीसरा भाग है पहला एवं दूसरा भाग पढ़ने के लिए #मेरी_पोटली_कहानी पर जाएं। प्रतिक्रिया अवश्य दें। पोटली के बारे में ज