Find the Latest Status about मिचौनी from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, मिचौनी.
HP
आँखें एक सीधी लड़की जल में टेड़ी मालूम होती है। रात्रि में मार्ग में पड़ी हुई रस्सी काला सर्प प्रतीत होती है। तेज धूप में दूर पर चमकीली रेत पानी से भरा हुआ तालाब मालूम होती है। अत्यन्त दूरी पर स्थित पर्वत श्रेणियाँ बिल्कुल निकट दिखती हैं। डरा हुआ व्यक्ति छाया को भूत समझता है। सिनेमा के पर्दे पर तसवीरें चलती फिरती मालूम होती हैं। सुन्दर पुरुष के साथ खड़ा हुआ कुरूप आदमी और भी बदसूरत मालूम होता है। चावल बेचने वाले ज्यादातर चावल काले कम्बल पर डाल कर उनकी खराबी को दबा देते हैं, यह सब नेत्रों का भ्रम है। दृष्टि आँख मिचौनी खेलती है।
Kiran Bala
#Collab with #swetapadma इस चित्र के लिए कुछ पंक्तियां क्यों हो इतने नटखट, तुम कान्हा! वो दबे पाँव से आना हौले से माखन चुराना खुद को अनजान
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
सीखा है मैने कैसे मुस्कराया जाता है आओ कुछ साझा करें मन की बात कैसे ग़म के आँगन में बैठ मुस्कराया जाता है।। मुझ को रिशतों के तानाकशीं ने सीखा दिया है बेजुबान लोगों के कडवे शब्दों ने सिखा दिया है बिखरे सपनों के मलबे ने सिखा दिया है कैसे ग़म के आँगन में बैठ मुस्कराया जाता है।। खेलता है समय हर दम आँख मिचौनी समय ने खूब सिखा दिया है भले करते ग़लत कर्म हम हैं और इल्ज़ाम समय को देते हैं ऐसी ग़लतियों ने ही मुझको मुस्कराना सिखा दिया है।। खामोश है जुबाँ, लबों पर मौन है आंखे देखता हुआ नहीं देखता हु गम के अलाव मैं किसी को नहीं दिखाता अपनी घुटन, अपनी तन्हाई से लिपटी अपने पैरों में बिना घुँघरू बांधे मैं थिरकता हुआ बेसुध नृत्य करता हूँ संगीत के सुरों ने मुझ को मुस्कराना सीखा दिया ¡ अंकुर ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) सीखा है मैने कैसे मुस्कराया जाता है आओ कुछ साझा करें मन की बात कैसे ग़म के आँगन में बैठ मुस्कराया जाता है।। मुझ को रिशतों के तानाकशीं ने सी
ranjita jena
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो हैं फूल रोकते, काटें मुझे चलाते मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते सच कहता हूँ जब मुश्किलें ना होती हैं मेरे पग तब चलने में भी शर्माते मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूँ मैं मरघट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूँ हूँ आँख-मिचौनी खेल चला किस्मत से सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूँ है नहीं स्वीकार दया अपनी भी.. तुम मत मुझ पर न कोई एहसान करो फूलों से जग आसान नहीं होता है रुकने से पग गतिवान नहीं होता है अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी है नाश जहाँ निर्माण वहीं होता है मैं बसा सकूं नव-स्वर्ग "धरा" पर जिससे तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो मैं पंथी तूफ़ानों में राह बनाता मेरा दुनिया से केवल इतना नाता वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर मैं ठोकर उसे लगा कर बढ़ता जाता मैं ठुकरा सकूँ तुम्हें भी हँसकर जिससे तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो। मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो हैं फूल रोकते, काटें मुझे चलाते मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते सच कहता हूँ ज