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Vandana
यह जीवन की धारा ले चली है किस ओर, कभी भोर में कभी शाम के शोर में, अपने होने के मुकम्मल निशां ढूंढती हूं मैं, जाने किस ओर चल पड़ी हूं मैं,, अनजानी सी राहें है जहां से उत्पन्न हुई थी, ये जिंदगी,आज वहां आ खड़ी हूं मैं, कभी खूबसूरती के पलों से भीग जाती हूं, कभी रिश्तो के आवेश में घिर जाती हूं, क्या निभा पाऊंगी, तूफानी आवेग से आते जीवन को, या खुद को खो दूंगी यहीं कहीं, खुद का होना मुकम्मल ढूंढती हूं मैं,, दूर कहीं वीराने में पहाड़ियों की ठंडी ठंडी पुरवाई,, नदियों के कल कल करते झरनों में,, हिमालय के शांत से खड़े उन्मुक्त वेग से बहती नदियों म
Shalvi Singh
#काव्यार्पण
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
Maa MY FIRST poetry on MOM HOPE YOU LIKE माँ क्या है? माँ नूर है,हूर है माँ बेटे का गुरूर है। माँ दीप है,रूप है,धूप है। माँ नदी है,रती है सती है। माँ मन है,धून है, जूनून है। माँ दूर है,पास है,एहसास है। माँ अस्ल है,नस्ल है,वस्ल है। माँ प्यार है,व्यवहार है,संसार है। माँ सागर है,साहिल है,सैलाब है। माँ मंजिल है,रास्ता है,वास्ता है। माँ दौलत है,हसरत है,इनायत है। माँ चाहत है,आदत है,मोहब्बत है। माँ इबादत है,इज्ज़त है,इजाजत है। माँ सजदा है,मेहताब है,आफताब है। माँ अभेद्य है,अखंड है,प्रचंड है। माँ शब्द का अंत नही, माँ तो अनंत है। ~अंकुर (Dear Comrade) माँ क्या है? माँ नूर है,हूर है माँ बेटे का गुरूर है। माँ दीप है,रूप है,धूप है। माँ नदी है,रती है सती है। माँ मन है,धून है, जूनून है। माँ द
राकेश मनावत"राज"
कही पीर की मजार तो कहि बालाजी की डेरी। कहि रामदेव जी का स्थान तो कहि मामाजी तेजाजी भोमियाजी के घुड़ले। बिठा रखते थे पुराने जमाने में पेड़ो के
Raj_Basti