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Vrishali G
Bharat Bhushan pathak
सादर क्षमासहित आज का व्यंग्यात्मक प्रयत्नस्वरूपी आलेख:- पोशाक आदिमानव काल से जीवन के स्तर में धीरे-धीरे सुधार प्रारम्भ हुआ।पहले लोग पत्तों से अपने देह को ढँका करते थे,उसके पश्चात वन्य पशुओं के खालों से। उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि आदिमानव को आदिमानव कहना अनुचित है क्योंकि आदि का अर्थ है प्रारम्भिक,उनके इस व्यवहार से यह तो कभी भी स्पष्ट नहीं होता कि वो प्रारम्भिक स्तर पर थे वरन् यह स्पष्ट हो रहा है कि वो हमसे अधिक संस्कारी व सुशिक्षित थे।कारण उनका कुछ भी पहन लो का मूल उद्देश्य यही था कि अपनी सुरक्षा कर लो,अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखो। ©Bharat Bhushan pathak #पोशाक भाग-१
slni
बात उन दिनों की है जब सालवी ने घर में अपनी कॉम्पटीशन की कोचिंग करने की बात कही, किसी को कोई आपत्ति नहीं थी सो तय रहा कि कोचिंग करनी है सालवी के साथ उसकी एक सहेली भी थी सहेली कम बहन जिसको कह सकते हैं, नाम था पूनम। दोनों ने तय किया कि अगली सुबह दोनों अपनी अपनी स्कूटी से सुबह नौ बजे की क्लास लेंगी....... क्रमशः #प्रेमांकुर #भाग#१
somnath gawade
माणसाने माणसा सारखं वागणं सोपं नसतं. जे वागले ते देवत्वाला मिळाले. मी मी म्हणता आयुष्य शेवटी शून्यावरच येते. शून्य मी! उद्धविघन मी,अस्वस्थ मी असह्य मी,निशब्द मी व्यवस्थेचा गुलाम मी भ्रष्टतेला सलाम मी. खाबुगिरीवर लक्ष मी बाबूगिरीवर रुक्ष मी टिकाकारातील निष्पक्ष मी संवेदनेची आर्त हाक मी बुडत्याला आधार मी गरिबांचा वाली मी गर्वाने खाली मी भ्रष्टानवर भारी मी मित्रांशी एकनिष्ठ मी अनीतीवर रुष्ठ मी अनाथांचा नाथ मी शोधीतांचा शोध मी शोषितांचा आधार मी लढणाऱ्याची ढाल मी विजेत्यांचा निर्धार मी लेखणीची धार मी #शून्य मी भाग-१
मुरखनादान
...बचपन. भाग-१. ..संग.R.J..!✍🏻 *********************** वो बचपन भी बड़ा सुहाना था.. एक-दूसरे के साथ लड़ना-झगड़ना फिर उसी को मनाना था.. रहकर सब गमो से दुर. होकर मस्ती मै चुर.. पुरा दिन यारो संग बिताना था.. वो बचपन भी बड़ा सुहाना था.. मारकर स्कूल🎒📚 से बंक.. मचाते थे यारो संग हुडदंग.. घर भी डरते-डरते जाना था.. वो बचपन भी बड़ा सुहाना था.. पड़े ना डाट पापा की.. लेकर भोला पन. और आँखों मे प्यार.. फिर माँ के पास जाना था. वो बचपन भी बड़ा सुहाना था..R.J...! ©Rahul R.J..!♥️ बचपन भाग-१..संग.R.J..!
Dharmendra Gopatwar
कविता :: सच भाग - १ _कठिन शब्दों का खेल बढ़ता नमक का कारोबार मीठे शब्दों का भूखा , प्रेम का प्यासा । ... वो दौर नयनों की परिभाषा का दिल में बैठे मीठे अरमानों का , ये दौर कुछ और फूलों के आशियाने में कांटो के बिस्तर । यो का बोलबाला बूढ़ा सप्तसुर , कर्कश संगीत , काम की बात । सप्तरसो का जागता शैतान , प्रत्येक भीतर बैठा हैवान ! नयनों की परिभाषा और संस्कारो का भीख मांगे संसार । जीभ की परख झूटी झूठा स्वाद गुनवान की कीमत चवन्नी , धनवान की अट्ठनी । झूठे संसार का झूठा हिसाब - किताब । झुटो सच के झमेले में इंसानियत हुआ घायल , एक तरफ नमक सस्ता दूजी तरफ में महंगा मरहम l मीठे शब्दों का भूखा प्रेम का प्यासा ..., शब्दतिर से मुर्छित पड़ा तन हनी को जा ले आय स्वाद चखाय रे मन । _कवि - ध . वि . गोपतवार AUTHOR 📖 YT/ कवि -मन _मनातलं ओझं पानावर ©Dharmendra Gopatwar सच- भाग- १ #IFPWriting