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Parasram Arora

विकास vs अविकास #कविता

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नदी
नदी  बनने से पहले  एक कुंड के रूप में होती हैऔर कुंड से
रिसते रिसते  एक दिन वो नदी  बन जाती है
और कालांतर में वो नदी   बहते बहते  सागर  में गिर कर  
सागर भी बन जाती है
.
इसी तरह विकास का पथ  पहले पगडंडी  के रूप मे.होता है फिर सड़क का  आकार लेता है. इसके बाद वो सड़क 
 राजपथ  बन जाती है  और वो हमारी सूद्रड 
यात्राओं का मार्ग प्रशस्त करता है

लेकिन हमारा जीवन  विकास की तरफ न जाकर
अविकास की ओर गति करने लगता है...
जैसे  पहले प्रेम   प्रेम और  प्रेमिका 
के रूप में होता है ज़ो बाद में
विकसित  हो कर  पति पत्नी में तब्दील हो जाता है
और ततपश्चात्. माता पिता बन कर एक आदर्श  दम्पती
का  आकार ले लेता है...... लेकिन ज़ब वो दम्पति  प्रौड़  हो जाता
है तो   उन्हे  किसी वृद्धाआश्रम   की शरण में  भेज दिया जाता है

©Parasram Arora विकास vs अविकास

बबलू सिंह "बेदर्दी "

#Art ये विकास है . ये बिकास है.....

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चर्चा है आज...........विकास का दौर मेंहुआ सहायक सात निश्चय साथधन कमाने का जरिया बनाजल नल गली नाली आज.खूब कमाए साहिब सॉन्ग,मुखिया वार्ड और सरपंच.पानी बिन प्यासा रहाआम जनता है तंग।नीतीश जी की छवि निराली,बन गई बाला अब नारी,धन कमाने क्या सीखे गुर,मूल मंत्र से हुए हजूर।जीविका बनके दीदी कहलाई,आशा बन के घर पैसा लाई।छुपा कहां सब कमाने का जरिया,मानदेय मिलता है बढ़िया,कॉस्मेटिक दुकानदार भी है खुशभाभी अब ना मांगती छूट।पान खाए भैया की बारी,प्रेस कराने ली जाती साड़ी,कहे बेदर्दी ई क्या भाई,बड़े साहब के घर पार्टी है भाई ।.... #Art ये विकास है . ये बिकास है.....

पंकज कुम्हार

दिल-मरुस्थल #शायरी

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दिल मरुस्थल हो रहा
कुछ हरियाली दिखा
नब्ज़ों से
 connection
 दिल का
नब्ज़ों में बांध ना बना
खारा ही सही 
पर इन्हें
कुछ पानी तो दिखा दिल-मरुस्थल

vikash meena

हम मोहताज नहीं किस्मत के हम अपने दम पर बहुत कुछ करना जानते हैं

©vikash meena #किस्मत
#सफलता 
#विकाश 
#विकास 
#Motivation 
#Lines 
#sad

'मनु' poetry -ek-khayaal

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Parasram Arora

मरुस्थल की व्यथा #कविता

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क्या कभी लौट पायेगा  वो  प्रवासी जल
मरुस्थलो मे?
कैसे विस्मृत कर सकता है आज वो मरुस्थल कि.
वो  भी कभी समुन्द्र का अंश था  और उसमे भी.
लहरे कभी ठाठे मारा करती थी
लेकिन वक़्त ने करवट ली और उसके जल क़ो
सूरज ने वाशपिकृत करके उसे मरुस्थल मे बदल दिया
आज वो  सन्नाटो मे चीख चीख कर अपनी व्यथा प्रकट करता है. और  आज भी वो  तरलता के स्वप्न उन वीरान रातो मे देखा करता है

©Parasram Arora मरुस्थल की व्यथा
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