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    PopularLatestVideo

HARSH369

#कबूतरो के बीच बाज #प्रेरक

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इन कबुतरो के बीच हम बाज़ क्या कर रहे है,
सायद हमे आसमान नही मिल रहा,
या कहि किसी ने बेड़े से बान्धा हुआ है हमे,
या हम अपनी उड़ान भूल चुके है सायद,
ये सायद ने सायद हमारी सोच को धीमा कर दिया,
या सायद हमारे पंख हि नही उगे अभी तक..!!

©Shreehari Adhikari369 #कबूतरो के बीच बाज

कृष्ण आर्दड

कवी. कृष्णा बी आर्दड जालना #poem

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🌺 ||  नुसती आशा  ||🌺

पाऊस नाही पाणी नाही
नुसती आशा करणे आहे |

दोन महिने गेल्यावरही,
रिती रिती ही धरणे आहे ||१||


व्यथा कुणाला सांगू अमुची,
उगा कुणाच्या मागे लागू |

बखाडीतही तहान अमुची,
अर्ध्या पेल्यावरही भागू ||

वरवर नुसती आशा ठेवून
आतून आतून मरणे आहे ||२||

दोन महिने गेल्यावरही,
रिती रिती ही धरणे आहे.....


पाऊस हजेरी लावत नाही,
मदतीला अमुच्या धावत नाही |

पिके सुकूनी गेल्यावरही,
का आम्हाला पावत नाही ||

नशिबच सालं खोटं अमुचं,
का त्याच्यावर रडणे आहे ||३||

दोन महिने गेल्यावरही,
रिती रिती ही धरणे आहे.

     
(आगामी "आक्रोश स्पंदनांचा" या काव्यसंग्रहातून )

कवी-. कृष्णा बी. आर्दड
जालना
मो. न. ७४१०१२०३३५ कवी. कृष्णा बी आर्दड
जालना

Guri

मिट्टी  में  धबे  एक  बीज  सा  हूं, 
आसमान देखना हसरत है मेरी, 
किसी की उम्मीद पर नहीं जीता,
 अपनी   मेहनत   पर  जीता  हूं,

GURI #बीज

-Kumar Kishan Krishan Kr. Gautam

❤️हृदय के मरुस्थल मे
ये कैसा बीज बोया है
कुछ तो उमड़ रहा,
इस जलती तपती रेत में
कुछ तो कल्प रहा,
भवरें इसपे आ रहे
पुष्प कोई तो खिल रहा
हृदय के मरुस्थल में
ये कैसा बीज बोया है।
माली बन रहे हो तो
तोड़ बेच आना मत,
तेज़ चलती धूप में
मुझको मुरझाना मत,
तोड़ना गर कभी तो
तोड़ निज रख लेना,
लेकर गर जाना तो
छोड़ के न आना मत,
हृदय के मरुस्थल में
ये कैसा बीज बोया है।

#कुमार किशन #बीज

मलंग

mute video

Avinash Jha

बीज #कविता

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हम तो ख़ुश है, अक़्सर लोगों को,                                                       सपने सुहाने सजोए थे हमने
एक दुसरे का क़त्ल करते देखा है,                                                      संव जीने के कसमें हमने भी थे खाए,
कोई किसी के जीवन का कत्ल करता,                                                सपनें अभी थे कच्चे, मैंनें कहाँ अभी जाना था,  
तो फ़िर कोई किसी के विश्वास का,                                                     बीच मँझदार, रौंद कर मेरे ख़्वाबों को,
क़त्ले-ऐ-आम रोज है होता                                                                रोने- कहराने को छोड़ गया वो मुझकों

क़त्ल करके मेरे विश्वास का,                                                              डर था मुझको ये बड़ा,
एक बीज दिया, मुझमें दिया बो,                                                          जमाना क्या कहेगा सारा,
खुश हूं कि मैं आज,                                                                             सोच के मन ही मन,
क़त्ल जहां रोज़ सरे आम होते,                                                             सिहर सी गए थी मैं
मैं एक जीवन दे रही                                                                           मंजर काल की जब ख़ुद देख पाई

है दुख तो बस एक बात का,                                                                  कर के यत्न, मनन में दृढ़ निश्चल
गुनहगारों के सभा में,                                                                         क़त्ल जो हुआ सो हुआ,
मैं भी निर्लज सी खड़ी हुँ,                                                                     अब जीवन मुझको है देना
हाँ ये एक सच भी है,                                                                            बीज जो अंदर अपने,
क़त्ल करके आज मैं आई हुँ                                                                   बस सृष्टि सृजन उसका है करना।

एक विश्वास, एक भरोशे का क़त्ल,
जो मुझपर ज़माने ने किया,
भरोसा जो मेरे परिवार,
मुझपर था किया,
घोंट कर गला निर्लज सी खड़ी हूँ


                   

                                                                                ©avinashjha बीज
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