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वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। दिव्यो ह्यमूर्तः पुरुषः स बाह्याभ्यन्तरो ह्यजः। अप्राणो ह्यमनाः शुभ्रो ह्यक्षरात् परतः परः ॥ वह दिव्य अमूर्त 'पुरुष', वही बाह्य तथा आन्तर (सत्य) है एवं वह 'अज' है; वह प्राणों से परे (अप्राण) एवं मन से परे (अमन) है, वह शुभ्र ज्योतिर्मय एवं अक्षर से भी परे 'परमात्मतत्त्व' है। He, the divine, the formless Spirit, even he is the outward and the inward and he the Unborn; he is beyond life, beyond mind, luminous, Supreme beyond the immutable. ( मुंडकोपनिषद १.३.२ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #अमूर्त
Dharm Chand Paliwal
वजह कुछ और थी और हि कुछ बताते रहे सब अपने हि थे इस लिए कुछ ज्यादा ही सताते रहे । चिंतन
ehsanphilosopher
ऋषि मुनियों की धरती ने भी चिंतन को प्रवेटाइज कर दिया है। सारा भार Google पर है और वैज्ञानिक बनने का ख्वाब संजोए बैठे हैं। चिंतन
Manmohan Dheer
चिंतन की कोख से ही विचारों के स्वस्थ शिशुओं का जन्म होता है ,यही शिशु संस्कारों की छांव में पुष्ट होते हैं, आकार ग्रहण करते हैं जो आपके व्यक्तित्व के आधार को विस्तार और मलिन सूर्य को ओज प्रदान करते हैं। चिंतन
Pushpendra Pankaj
चिंतन वही जिसमें चिता ना हो बल्कि अपने या पराये किसी भी विषय से संबंधित गुण/दोषों पर रचनात्मक समीक्षा हो । ©Pushpendra Pankaj चिंतन
VAISHNAVI SAMRAT
चित में चेतन चिंतन की, तप संताप को अविरल की| चिता समाहे चिंतित को, जब चिंता नाशे चिंतन को|| #चिंतन
Govardhan patel
Alone and You जिस्म की चाहत इंसान को अंधा बना देती है लूट किसी बच्ची की आबरू खुद की मर्दानगी, बताते हो किसी की फूल, जैसी बच्ची को तुम अपना शिकार बनाते हो लूट किसी बच्चे की आबरू खुद को अच्छा इंसान बताते हो चिंतन