Nojoto: Largest Storytelling Platform

New मुख्य पृष्ठ Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about मुख्य पृष्ठ from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, मुख्य पृष्ठ.

    PopularLatestVideo

Bhupendra Rawat

बन जाती अखबारों के मुख्य पृष्ठ की खबर और न्यूज़ चैनलों की हेड लाइन्स अगर मरता कोई नेता कभी भूख की तड़प से लेकिन नजाने कितनो को ही खा जाती #feellove

read more
बन जाती अखबारों के 
मुख्य पृष्ठ की खबर और 
न्यूज़ चैनलों की हेड लाइन्स
अगर मरता कोई नेता 
कभी भूख की तड़प से
लेकिन नजाने कितनो को 
ही खा जाती है पेट की आग 
लेकिन फिर भी नही बनती 
वो कभी हेड लाइन्स और 
उन बड़े अखबारों के 
मुख्य पृष्ठ की खबर
जिनपर चलती रहती थी
दिन भर ये चर्चाएं
उन सभी महारथियों के
नेतृत्व में जिन्होंने कभी
देखी ही नहीं थी पेट की आग,
न ही महसूस की थी 
कभी भूख की तड़प
वही तड़प जिसे शांत
करने के लिए एक मुसाफिर
ने किया था, मिलों लंबा सफर 
लेकिन नहीं दे पाया झूठा दिलासा
अपने भूखे पेट को और
त्याग दिए अपने प्राण
कर दिया समर्पित
अपना मृत शरीर 
उन छोटे जीवों व पंछियो को
जो कई दिनों से तड़प को शांत करने 
के लिए तलाश रहे थे भोजन।

भूपेंद्र रावत
30।04।2021

©Bhupendra Rawat बन जाती अखबारों के 
मुख्य पृष्ठ की खबर और 
न्यूज़ चैनलों की हेड लाइन्स
अगर मरता कोई नेता 
कभी भूख की तड़प से
लेकिन नजाने कितनो को 
ही खा जाती

Bhupendra Rawat

एक अदने से अखबार के मुख्य पृष्ठ की खबर ने मचा दिया था हाहाकार जब बीती रात घटित हुई घटना में मरे हुए कुछ नौजवानों के शवों को बांट दिया था #Mic

read more
एक अदने से अखबार के 
मुख्य पृष्ठ की खबर ने 
मचा दिया था हाहाकार

जब बीती रात घटित हुई घटना में
मरे हुए कुछ नौजवानों के शवों को
बांट दिया था मज़हबों में
अब बीते रात की घटना ने ले
लिया था एक नया रूप

नया रूप देने में सबसे आगे थे अनुभवी
नेतागण,मीडिया और तमाम वो सब
जो साध रहे थे अपना स्वार्थ

अब यह छोटी सी घटना 
पूर्ण रूप से ले चुकी थी रूप
मज़हबी जंग का,सबके लिए 
जंग थी अपने मज़हब को 
जीवित रखकर
सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की

लेकिन इन सबकी अदनी सी
जिद के पीछे खत्म हो रही थी 
इंसानियत ओर जान की भीख
मांगता हुआ मर रहा था इंसान
दूसरी ओर तोड़े जा रहे थे सारे
दैर-ओ-हरम और लगाए जा रहे
थे नारे,

भूपेंद्र रावत
12।07।2021

©Bhupendra Rawat एक अदने से अखबार के 
मुख्य पृष्ठ की खबर ने 
मचा दिया था हाहाकार

जब बीती रात घटित हुई घटना में
मरे हुए कुछ नौजवानों के शवों को
बांट दिया था

ᴀᴍɪᴛ ᴋᴏᴛʜᴀʀɪ

बदलता वक्त बदलता दौर बदलता आदमी। सुना है इन्सान भी कभी जानवर था और फिर समय के साथ आये बदलाव से इन्सान बना मगर आज इन्सान इतना गिर चुका है क

read more
वक्त के सफ़र में आदमी कहाँ से कहाँ आ गया
जिस गर्त से उभरा था आज उसी में समा गया

किसी की  खुशी देखकर  परेशाँ  रहता है  मगर
देखकर दर्द दूसरों का  कहता है मजा आ गया

जिसको भी  मौका मिला उसने छोड़ा ही कहाँ 
यहाँ  हर मजबूरी  का कोई  फायदा  उठा गया

नफ़रतों की बहने लगी हैं हर तरफ़ नदियाँ यहाँ
मज़हब के नाम पर जाने कौन ज़हर फैला गया

अब तो मुर्दों का भी सौदा करने लगा है आदमी
इस कदर भूखा है आदमीयत को ही खा गया ।

©Amit kothari बदलता वक्त बदलता दौर बदलता आदमी।


सुना है इन्सान भी कभी जानवर था और फिर समय के साथ आये बदलाव से इन्सान बना मगर आज इन्सान इतना गिर चुका है क

yogesh atmaram ambawale

सुप्रभात सुप्रभात माझ्या मित्र आणि मैत्रिणीनों कसे आहात? #प्रियमाझंपुस्तकं नवीन महिना सुरु होत आहे,या महिन्यात आपण पत्रलेखन आणि कविता दोन्ही #letters #Collab #YourQuoteAndMine #yqtaai #yolewrimoमराठी

read more
मी लिहिलेलं पाहिलं पुस्तक तू मला खूप खूप प्रिय राहणार आहेस साहजिकच असणारच कारण नुसतेच एक पुस्तक असे छापले आहे ज्यात माझ्या दोन कविता आहेत.
जर फक्त दोन कविता छापल्यावर इतका आनंद झाला तर स्वतःचे एक पुस्तक छापल्यावर किती आनंद होईल शब्दात सांगणे कठीण राहील.
तसे तुझ्यासाठी मी title ही जपून ठेवले आहे,"मनातले काही तुमच्या काही माझ्या" ह्या पुस्तकात चारोळी,कविता,लेख असे प्रकार राहणार आहेत,ज्यात सांस्कृतिक,सामाजिक,कौटुंबिक तसेच धार्मिक आणि देशभक्ती वर देखील लेखन केलेलं असेल.
सध्या तरी तू फक्त माझी एक कल्पना आहेस जी मी लवकरच प्रत्यक्षात उतरवणार आहे.
【कॅपशन मध्ये वाचावे लेख मोठा आहे】 सुप्रभात सुप्रभात माझ्या मित्र आणि मैत्रिणीनों
कसे आहात?
#प्रियमाझंपुस्तकं
नवीन महिना सुरु होत आहे,या महिन्यात आपण पत्रलेखन आणि कविता दोन्ही

Deep Poetry - Breath of Poem

wod #मेरी_कलम_से_दोस्ती मेरी कलम से दोस्ती शायद तृतीय वर्ग में हुई थी।काफी खुश था मन उल्लास से झूम रहा था,की अब पेंसिल से जान छुट्टी, अब

read more
कलम #मेरी_कलम_से_दोस्ती

मेरी  कलम से दोस्ती शायद तृतीय वर्ग में हुई थी।काफी खुश था मन उल्लास से झूम रहा था,की अब पेंसिल से जान छुट्टी, अब मुझे पेंसिल को बार बार नहीं छिलना होगा,ना ही उसके लाव- लश्कर को साथ लेजाना होगा,अब बात कलम तक आ पहुंची थी, उम्र उस वक़्त शायद 6 वर्ष की रही होगी,बिल्कुल अबोध बालक,चंचल मन ,स्फूर्ति से भरा सब का समावेश था मेरा बालपन
इस बात जी अब खुशी थी कि मेरी लिखी हुई चीजें अब आमिट रहेगी ,उसे बारिश की बूंदे या अन्य कोई भी चीज मिटा नहीं सकेगी,,,ये मेरी पहली दोस्ती रही कक्षा 6 तक चली।,,
         दूसरी दोस्ती मेरी कलम से कक्षा 7 में हुई जब मै अपने बल्यपन को त्याग कर युवावस्था में कदम रख चुका था,तब मुझे एक छोटी सी डायरी मिली जो कि मैंने अपने मामू जी से लिया था,मैंने उससे मांगते ही उसके मुख्य पृष्ठ पर कुछ तस्वीरें चिपका दी थी,,,अब यहां से शुरू हुई थी मेरे रचनाओं का दौड़,,यूं तो सच कहूं तो मेरे अंदर लिखने की प्रवृत्ति भगवान द्वारा प्रदत्त है,,,अब मेरे अलग अलग भावनाओ का ज्वार भाटा आने लगा था ,मेरा बालमन ने इसपर बारीकियों से सोचना शुरू किया तोह पाया शायद ये मेरी आत्मीय आवाज़ है,,अब क्या था रचनाएं लिखी जाने लगी,,
दिल इशारा किया करता था , मन हामी भरा करता था ,दिमाग की कार्यकुशलता मेरे हाथो में कलम थमने पर मजबूर करता था,फिर हाथो की उंगलियों तक बात पहुंचती थी,तोह कलम चल पड़ते थे,अपनी टूटी फूटी भावनाओ को जोड़कर एक खूबसूरत सी रचनाओं का प्रार्दूभाव हुआ था,,,फिर मेरी कलम से दोस्ती और गहरी होती गई ,धीरे धीरे मेरा दोस्त मेरी छोटी सी डायरी पर अपना छाप छोड़ते हुए आगे बढ़ता चला जाने लगा,दोस्ती ऐसी थी कि जब से वो मेरे हाथ को गले लगाया तब से मेरी रचनाओं को अधूरा रहने नहीं दिया ,,ना थका ना कभी रुका,हमेशा मेरी रचनाओं को बरी सिद्दत से मुकाम तक पहुंचाया,,मेरी दोस्ती कलम से कुछ इस प्रकार की है।,,मै उम्मीद करता हूं कि मेरा विश्वशनीय दोस्त कलम मेरा साथ ऐसे ही उम्र के हर पड़ाव में देता रहे।।।।
    ✍️✍️कुमार प्रिंस/कवि सिंह #wod #मेरी_कलम_से_दोस्ती

मेरी  कलम से दोस्ती शायद तृतीय वर्ग में हुई थी।काफी खुश था मन उल्लास से झूम रहा था,की अब पेंसिल से जान छुट्टी, अब

Anamika jalwanshi

बसंती सुबह ! दूसरा पृष्ठ! #समाज

read more
*** बसंती सुबह ***

कभी इतने सुबह उठिए कि खुद को खुद की आवाज सुनाई दे सके। पता है जब आप खुद की आवाज सुनने लगेंगे न तब आपको उस सुबह में आपसे पहले जगे हर उस नन्हें जीव की आवाज सुनाई देने लगेगी जिसको आप देख भी नहीं पाते हैं।

बेली ,चमेली की मनमोहक खुश्बूएं आपको मदहोश करने लगेंगी जिसको आप महंगी महंगी इत्र की बोतलों से भी हासिल न कर पाएंगे।

उठिए और उन फूलों के अधजगे पत्तों से मिलिए।उसकी टहनियों से बाते करिए। उनसे हाल चाल पूछिए जो अभी अभी अंगड़ाई लेकर जगी हैं और
फूलों,पत्तियों,टहनियों के मिले जुले महक को अपने हृदय के कोने कोने में घुलने दीजिए।फिर थोड़ा ध्यान कीजिए।आत्म को परमात्म से जोड़िए।भले आप जुड़ पाएं या न जुड़ पाएं लेकिन आपको प्रयास करना चाहिए। इसमे कुछ हानि भी तो नहीं है। परमात्म मिले न मिले आत्म तो जागृत हो ही जाएगा।

फिर क्या? फिर निकल पड़िए एक लम्बी सफर पर। नाप आइए रात के बारिश में भीगी उन सड़कों को जो आपको सुकून से भरने के लिए आपके कदमों की आहट के इंतजार में है। फिर गिनिए रास्ते के उन  पेड़ों को जिन्होंने रात की आंधी में हवा की थपेड़े सहें और एक दूसरे को सहारा देते देते इतना उलझ गए कि अभी तक सुलझने की कोशिश में उस माली की राह तक रहे हैं जो रात की केलि के बाद बिस्तर से चिपटा खर्राटे मार पड़ोसियों की नींद हराम कर रहा है।

जाइए और उन उलझी पेड़ों की टहनियों को सुलझाइए और उनके प्रकृतिस्थ निश्छल प्रेम के सुपात्र बनिए। फिर कुछ आगे बढ़िए। तेज कदमों से चलिए। हवा की सरसराहट को अपने बदन पर महसूस करिए। तन मन को ताजगी से भरिए। फिर कुछ मुंडी इधर उधर घुमाइए।कुछ चेहरों को कनखियों से ताड़िए।कुछ को देखकर मुँह बिचकाइए और जी में आए तो कुछ को देखकर अगली मोड़ से मुड़ ही जाइए।

फिर उस सड़क के किनारे बने ऊँचे  नीचे  बिल्डिंगों, घरों, दफ्तरों और उन पर चिपके उन पोस्टरों की शिनाख्त कीजिए जिसके मालिक ने अपने नौकर को धमकाकर उन दीवारों पर लगवाया है।यह और बात है कि हर दीवार पर लिखा है " यहां पोस्टर लगाना सख्त मना है।" पर क्या कीजै जैसे उस नौकर ने मालिक के धौंस से उस लिखे को अनदेखा किया है वैसे ही आप भी कर गुजरिए।

फिर उन बिल्डिंगों की ऊंचाई को अपने  दस बारह में पढ़े गणित के फॉर्मूलों से नाप जाइए और अपने भावी घर की कल्पना कर लीजिए। अब उनकी नाक नक्श और साज सज्जा पर आइए। एक एक को अपनी भोरहरी उनीदी अखियों से पतिया लीजिए ।कुछ कमी वमी हो तो वह भी निकाल लीजिए किसे फर्क पड़ता है।हां,लेकिन उसे अपनी दिमागी डायरी के पिछले पन्ने पर एक घेरा बनाकर लिख लीजिए ताकि समय पर बेमेहनत मिल जाए भले उस दिन आपको यह बेमतलब ही क्यों न लगे।

फिर सड़कों का पूँछ पकड़े बढ़ते जाइए। किनारे पर बने गोल घेरे में लगे नन्हें नन्हें पौधों की फुनगियों की कान मरोड़ते जाइए। किसे खबर आप वैज्ञानिक हैं या साहित्यकार ।आप उसकी नब्ज देख रहे हैं या प्यार के भावावेश में उसकी सुंदरता और कोमलता पर मुग्ध हो उसे चूटी काट रहे हैं।

फिर करिए तलाश किसी ऐसे उद्यान की जिसकी जमीन रात की आंधी में झड़े,सूखे ,मुरझाए ,पीले और हरीलेपीले (पीले हरे ) पत्तों से सजी हो और पत्ते बारिश की पानी से सने हो।जमीन थोड़ी भीगी हो थोड़ी सुखी हो और जमीनी महक से गमक रही हो। फिर निकालिए अपना हथेली भर का फोटो खीचन यंत्र और धड़ाधड़ कैद कर लीजिए उन लम्हों को अपने यंत्र की गैलीरियाई दिमाग़ में।

अब नजरें थोड़ा उपर उठाइए और नहाए पेड़ों की पत्तियों पर रुके नन्हें नन्हें बारिश की बूंदों को अपने जिस्मानी गरम होठों से लगाइए और उन पत्तों की तरह हरियरा जाइए। 

फिर वहां की झाड़ियों से थोड़ा बतियाइए ।उनका कुशल मंगल जानिए।फिर उनकी मुंडी पर अपनी गरम हथेली को रगड़ते वहां से खिसक लीजिए।

अब वहां की चबूतरों पर आइए।उनके धूल से सने और बारिश से भींगे बदन को देख मुँह बनाइए।फिर उसे पोछने के लिए इधर उधर ताका  झांकी करिए। कुछ न मिले तो दो चार सूखे पत्ते उठाइए और उन्हीं से अपने बैठने भर की जगह रगड़ मारिए । फिर बैठिए और थोड़ा गीला महसूस कीजिए और थोड़ा किरकिरा भी और खुद को कहिए "इतना तो चलता है कौन सा फैशन शो करने आए हैं जो कोई मेरा पिछवाड़ा निहारेगा।"

अब वहां की चिड़ियों की चहचहाहट को सुनिए और मन में नए विचारों को गुनिए।कुछ अपना धुन जोड़िए और कुछ पत्तों की झरझराहट को लीजिए। फिर नजरों को दौड़ाइए। वहां आते जाते इक्के दुक्के बदनों को निरखिए। एक अधेड़ उम्र की सभ्य महिला को किसी सतसंगी बाबा के गानों को लौडस्पीकर मोड़ पर डाल अपने कमर से कमरा बने कमर को फिर से कमरा से कमर बनाने की नाकाम कोशिशों पर मुश्कि मारिए।

अरे थहरिए ! अभी उठिए मत क्योंकि अब आएंगे शहर के मानित सम्मानित जानित पहचानित पचासा पार सीनियर सिटीजेन्स। आपका क्या है !आप बस वहीं बैठे रहिए सिर झुकाए तिरछी नजरों से उनके योगाभ्यास की आड़ी  टेड़ी आकृतियों को देखते रहिए और सुनते रहिए उनके दूरभाष यंत्र से निकलने वाले गानों की तान को " बेशरम रंग कहां देखा दुनिया वालो ने"

नहीं नहीं अभी भी नहीं उठना है! थोड़ी देर और धैर्य के साथ अपनी जगह पर जमे रहिए क्योंकि अब नंबर है राष्ट्र के नव निर्माताओं की जिन्हें उद्यान में अकेले जाना पाप सा लगता है। अगर गलती से आपकी और उनकी नजरें मिल गई तो वे आपको बेपहचानी नजरों से घूरेंगे और आप उन्हें फिर दोनो इधर उधर नजरें घुमा लेंगे और मन में कहेंगे "होगा कोई अपने को क्या" फिर वे लोग किसी पेड़ की छहियां तरे बैठकर थोड़ी गुफ़्तगू करेंगे । खाएंगे खिलाएंगे।पिएंगे पिलायेंगे।सबकी नजरें बचा चिपका चिपकी करेंगे हालांकि यह उनका भ्रम है क्योंकि यह जनता है सब जानती है।फिर आपको क्या तब तक तो आप वहां से निकल चुके होंगे और निकलते समय आप विद्यार्थियों के उस झुण्ड से तकराएंगे जिनके चेहरों पर शिकन।दिमाग़ में उलझन।मन में भविष्य की चिंता।पीठ पर किताबी बोझ और जुबान से  निकलती हिंगलिशिया गाली होगी।

         *** जलवंशी***

©Anamika jalwanshi बसंती सुबह ! दूसरा पृष्ठ!
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile