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Parasram Arora
कोई पुरखो को पानी पहुंचा रहा हैँ कोइ गंगाओ मे पाप धो रहा हैँ कोई पथर की प्रतिमाओं के सामने बिना भाव सर झुकाये बैठा हैँ धर्म के नाम पर हज़ार तरह की मूढ़ताएं प्रचलन मे हैँ धर्म से संबंध तो तब होता हैँ जब आदमी जागरण की गुणवत्ता हासिल कर लेता हैँ जहाँ जागरण होगा वहा अशांति कभी हो ही नहीं सकती क्यों कि जाग्रत आदमी विवेकी होता हैँ इर्षा क्रोध की वृतियो से ऊपर उठ चुका होता हैँ औदेखा जाय तो धर्म औऱ शांति पर्यायवाची शब्द हैँ धर्म औऱ शांति...... पर्यायवाची शब्द हैँ
प्रभाकर अजय शिवा सेन
जग की पर्यावाची मघा😁😁😁😂😄😅 ©प्रभाकर अजय शिवा सेन जग का पर्यावाची #Roses
brijesh mehta
................................... .. ©brijesh mehta प्रेम का कोई समानार्थक, प्रायवाची शब्द नहीं है, दुनिया में!
Rakhi Raj
प्यारे मेंढक जितना यह "प्यारे "शब्द प्यारा है तुम उससे भी ज्यादा प्यारे हो, पहले तुम मुझे तुम्हारे नाम के वजह से प्यारे लगते थे पर अब जो जानने लगी हूँ कुछ कुछ तुम्हें तो लगता है के होता कोइ और नाम तुम्हारा तब भी तुम इतने ही प्यारे होते |तुम खुद को खुली किताब बताते हो और लगते भी वैसे ही हो, एक आईने की तरह लगते हो तुम जो पारदर्शी होते हुए भी, खामियाँ और खूबियां दोनों बताता है | मेट्रो में मैंने सफर किया है पर तुम्हारे साथ वो कल्पनाओं का सफर हमेशा याद रहेगा | अपने- अपने शहर में बैठे तुम और मैं घूम आये है काल्पनिक दुनियां बना कर दिल्ली और मथुरा | तुमसे बात करना मुझे बहोत पसंद है,तुम उन लोगों में से हो जो की दूसरों को खास महसूस कराते है, तुम्हारी नजरों से ज़ब देखती हूँ खुद को तो खुद को बहोत खूबसूरत सी लगती हूँ मै,तुम कहते हो मै रहती हूँ सीरियस, पर जबसे दोस्त बने है हम तो थोड़ा ज्यादा हसने लगी हूँ मैं | तुम जो लिखते हो शायराना अंदाज में मेरे लिए कभी कभी उनमे से कुछ को मैं अपनी डायरी मे लिख लिया करतीं हूँ, बाकी जो निशा के लिए लिखते हो उन्हें मैं डिलीट कर दिया करतीं हूँ | निशा को बस तुम और मैं जानते है, वो कभी मिले तुम्हें तो उससे कहना तुम्हें मेंढक न बुलाये इस नाम पर मेरा कॉपीराइट हैं | जीवन में कुछ लोग हमें मिलते है जो बेवजह ही अच्छे लगते है, कोइ निजी स्वार्थ न होते हुए भी तुम मुझे अच्छे लगते हो पर ज़ब वजह सोचती हूँ मैं अब तो नाम भूल जाती हूँ तुम्हारा और जबकि तुम मुझे तुम्हारे नाम के वजह से ही प्यारे लगे थे | तुम ऐसे ही रहना हमेशा पारदर्शी बनकर और बताना सबको थोड़ा ज्यादा मुस्कुराना......... मेंढकी #मेंढक
Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
manoj kumar jha"Manu"
धरती का दुःख क्यों, समझते नहीं तुम। धरा न रही अगर, तो रहोगे नहीं तुम।। सुधा दे रही है वसुधा हमें तो, भू को न बचाया, तो बचोगे नहीं तुम।। "भूमि हमारी माता, हम पृथिवी के पुत्र"* वेदवाणी कह रही, क्या कहोगे नहीं तुम।। (स्वरचित) * माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या: (अथर्ववेद १२/१/१२) धरती का दुःख हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा। इसमें धरती के पर्यायवाची शब्द भी हैं।
तकदीर
[01/02, 1:02 pm] Rishi तपस्या: एक बार मेढकों ने दौड़ प्रतियोगिता करने का फैसला किया। इसमें सभी को एक ऊंची टावर पर चढ़ना था। मेंढको की इस दौड़ को लेकर लोगों में गजब का उत्साह था। इसलिए दौड़ देखने के लिए टावर के चारों ओर भारी भीड़ जमा हो गई थी। तय समय के मुताबिक दौड़ शुरू हुई। भीड़ मे किसी को भी इस बात का भरोसा नहीं हो रहा था कि मेंढक टावर पर चढ़ जाएंगे। कोई कहता, “अरे, यह तो बहुत ही मुश्किल है। ये तो वहां पहुंच ही नहीं सकते। कही से आवाज आई, “अरे टावर कितना ऊंचा है कि ये वहां कभी नहीं पहुंचेंगे।” इसी बीच कई मेंढक चढ़ने में गिरने लगे। कुछ थक गए और दौड़ छोड़कर बाहर आ गए। सिर्फ वही मेंढक ऊपर की ओर बढ़ते नजर आ रहे हैं थे, जिन्होंने इस दौड़ को जीतने की ठान ली थी और किसी की नहीं सुन रहे थे। इसी बीच भीड़ में लोगों का चिल्लाना जारी था। लोगों को लगा रहा था कि कई मेंढक तो गिरकर मर चुके हैं और जो चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, वे भी लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएंगे। लेकिन एक छोटा सा मेंढक बिना किसी परवाह किए टावर की ओर चढ़ता जा रहा था, और आखिरकार वह अपने लक्ष्य तक पहुंच ही गया। [01/02, 1:02 pm] Rishi तपस्या: इसके बाद दूसरे मेंढको में यह उत्सुकता जागी कि आखिर इतना छोटा-सा मेंढक कैसे अपने लक्ष्य तक पहुंच गया। दौड़ में हिस्सा लेनेवाले एक मेढक ने उससे पूछा, “अरे भाई! तुम कैसे वहां तक पहुंच गए?” लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि जीतनेवाला मेंढक सुन नहीं सकता था। वह बहरा था। इसलिए उसने लोगों की बातें नहीं सुनी और अपना काम करता हुआ आगे बढ़ता रहा, और अंत में विजय हुआ। इसीलिए कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि लोग क्या कह रहे हैं। लोगों की नकारात्मक सोच और बात पर कभी भी ध्यान नहीं देना चाहिए। जो लोग ऐसी किसी भी बात को नहीं सुनते है और सकारात्मक रूप से अपने काम में लगे रहते हैं, वे हमेशा अपना लक्ष्य हासिल करने में कामयाब होते हैं। ©Rishi Ruku # कहानी मेंढक की