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Purnima Kaushik

विचारों का अनुलोम अनुलोम विलोम कीजिए

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Aman Singh Pal

असमंजस का वक्त #Dreams

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कुछ सहमे सहमे नज़र आ रहे हो , कोई बात हुई है क्या
झूठी हशी से कुछ छुपा रहे ही कोई राज है क्या
किसी के चरित्र से वाकिफ न हो पा रहे हो,
किसी से प्यार हुआ है क्या😊😊 असमंजस का वक्त

#Dreams

Sneh Prem Chand

अनुलोम विलोम #Hope

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काश कोई योग गुरु ऐसा भी होता जो हमें ऐसा
अनुलोम विलोम करना सिखा देता, जिसमें अंदर सांस
लेते हुए संग प्रेम,सौहार्द,अपनत्व और स्नेह ले जाएं,
और बाहर सांस छोड़ते हुए अपने भीतर के ईर्ष्या,द्वेष,
अहंकार,क्रोध,लोभ,काम सब छोड़ देवें।।

दिल की कलम से

©Sneh Prem Chand अनुलोम विलोम

#Hope

Parasram Arora

असमंजस #कविता

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Aaditya

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Prashant Mishra

"असमंजस"

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मेरा दिल 'तोड़' भी नहीं रहा,बस 'निभाये' जा रहा है
'माज़रा' कुछ न कुछ तो है, मग़र 'छिपाए' जा रहा है
जबसे मुझको पता चला किसी और से है ताल्लुक उसका
'उम्मीद' रखूँ या 'मातम' कर लूँ,यही सवाल खाए जा रहा है

--प्रशान्त मिश्रा "असमंजस"

Harvinder Ahuja

मैं बाल्यकाल और यौवन में बंटती,
और देह-काया की मारी युवती,
समझ नहीं पा रही क्या है मेरी अभिलाषा,
पल दो पल कोई साथ बैठा ले या मिटा दे पिपासा,
मुझे कोई समझ नहीं पाया,कैसे सब को समझाती,
आज जो भंवरे मुझ पे डोल रहे उनको दूं कैसे निराशा,
यौवन की इस सीढ़ी पर पांव मेरे डोल रहे हैं,
ना जाने मेरे अपने भला बुरा क्यों बोल रहे हैं।

©Harvinder Ahuja #असमंजस

Tr. Kajal Parmar

 #असमंजस

S ANSHUL'यायावर'

असमंजस

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समझ नहीं आता किस जहां हूं,
यहां का हूं या वहां का हूं।

वहशत नोचती है रूह को,
एक जख्मी परिंदा आसमां का हूं।

इनायत - ए - नज़र हो एक बार उसकी,
मैं तलबगार उसकी निगाह का हूं।
दलदल में डूब जाती है किश्तियां जो,
मै नाविक ऐसी नाव का हूं।

जिस पर पैर रख लोग है बढ़ते,
मैं ईट उस पायदान का हूं।
है जिसे समझ ना पाते लोग,
सुखन फहम उस दास्तां का हूं।

ठुकराया जाता हूं हर बार ही,
मै शायर बड़ा बदनाम सा हूं।

सुखन फहम -रचनाकार असमंजस

Prabhu Kishore Sharma ( शर्मा जी)

कल एक शख्स ने हमे "बाबा" कह दिया ,
इसी बात पर हमने कुछ यूं ही लिख दिया।

 बाबा बन गए हो क्या,
 कैसा-कैसा लिख रहे हो क्या ।

 हमने कहा- बाबा बनना अब कहां आसान होता है , 
जीते जी जिंदगी में पोता या पोती देखना होता है।

 कमाने के चक्कर में इंसान फना रहता है ,
बेटे के साथ अब बाप कहाॅ रहता है।

 इसी जद्दोजहद में इंसान फंसा रहता है,
 बाप बेटे को, बेटा बाप को भला- बुरा कहता है।

 तीनो पीढ़ियों का संगम,अब साथ कहाॅ रहता है,
मेरी बीवी, मेरे बच्चे तक ही रोना रहता है।

 आधुनिकता की दौड़ में ,पता नही अभी क्या क्या खोना है,
भागते रहो दिन भर ,न रात को चैन से सोना है ।

- प्रभु किशोर शर्मा (शर्मा जी) #असमंजस
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