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Ravish
ये असमानता के बीज बोकर,क्या हम पाएंगे। दिनकर के जमीं पर बैठकर,कब हमसब ऊंचा सोच पाएंगे। कितने दिनों के बाद कैंपस में, किलकारियां गूंजी हैं। क्या इसे भी हमसब लड़ते झगड़ते बिताएंगे। ज़रा से वर्चस्व के लिए, हमसब आक्रोश के अग्नि में जल रहे है। क्या इस आक्रोश में, हमसब इंसानियत को भूल जायेंगे। बड़े नारीवादी बनते फिरते हो तुम, और लिंग भेद के समर्थन भी करते हो। क्या इस बात को आपसब तर्क में उतार पायेंगे। ©Ravish #नारीवादी
Priyanka Mazumdar
नारीवाद, क्या आपने कभी सोंचा है " नारीवाद" नामक इस शब्द का जन्म कहाँ से हुआ? दरसल बहुत कम ही ऐसे लोग हैं जो नारीवाद शब्द के अंतः स्थल को समझ पाये हैं। कोई भी स्त्री जब अपने हितों के बारे में बात करे उसे नारीवादी कहा जाता है। स्त्री जब अपने अधिकारों कि माँग करे , जब अपने उपर अत्याचार सहने बंद कर दे, जब अपने विचार बेपरवाह होकर दूनिया को बताने लगे , वो नारीवादी हो जाती है। आखिर क्यों पुरुष वर्ग के लिए पुरूष वादी शब्द का प्रयोग बार - बार नहीं किया जाता? क्यूँ पुरूष को अपने हक के लिए किसी समाज समुदाय और दूनिया से नहीं लड़ना पड़ता? शायद इसलिए क्यूँ कि इस संसार में एक ही जाति है, पुरूष जाति। और इसलिए पुरूष नें अपनी सहुलियत के अनुसार सारे नियम बनाये। मनुष्यता के सभी अधिकारों पर पहले पुरूष का अधिकार है। फिर अगर वो चाहे तो स्त्री को उसमें साझा बना ले। या फिर कुछ दान करने जैसा सुख अनुभव करने हेतु स्त्री को कुछ अधिकार दान में दे दे। ये ठीक वैसा ही है जैसा कि जातिवाद। ऊँची जाति के एक तबके ने सब अपने अधिकार में कर लिया और फिर दान स्वरूप जीवन काटने के कुछ संसाधन तथाकथित नीची जाति को दे दिया । अब जब तथाकथित नीची जाति के व्यक्ति ने इसका विरोध किया तो पहले उसे समझाया - बुझाया गया। फिर अत्याचार किया गया। जो फिर भी ना माने तो उन्हे आंदोलन कर्ता, जन विरोधी ..... अादी नामों से संबोधित कर समाज से बेदखल कर दिया गया। और फिर जातिवाद शब्द कि उपज हुई। और ये हमारे देश कि एक बड़ी समस्या है। पर इसका कोई हल नहीं, क्यूंकि इसी पर तो राजनीति है। आरक्षण है, और भ्रष्टाचार है। खैर अब आते हैं मुद्दे पर, अब तक आप समझ ही गये होंगे कि नारीवाद में नीची जाति कौन है। अब अगर कोई अपने हक पर लड़ने आये तो वो तब तक लड़ता है जब तक उसकी पूर्ण समस्या का हल ना हो जाये। अब आप उसे नारीवाद कहें या जातिवाद। साभार - प्रियंका मजुमदार। ©Priyanka Mazumdar #नारीवाद
Bijendra Shukla
फर्क नहीं पड़ता मुझपर, सारी दुनिया क्या कहती है, लेकिन मेरी मां मुझको सबसे सुंदर कहती है,प्रथम गुरु है मैया मेरी अंगुली पकड़ चलाती। कभी हंसाती कभी रूलाती, थपकी देकर मुझे सुलाती। ©Bijendra Shukla #विचारधारा
Ashutosh Mishra
किस सोच में बैठे हो तुम, सिर को यू झुकाए। चिंता नहीं ,चिंतन करो,कह गए ज्ञानी ध्यानी। थक हार कर बैठ जाना नहीं कोई बुद्धिमान है। चिंता नहीं, चिंतन करो कह गए ज्ञानी ध्यानी सोचो ,सोचो कहां कमियां रह गई, जिस से हुई हार तुम्हारी मंथन कर आगे बढ़ो, मंथन कर आगे बढ़ो चिंता नहीं, चिंतन करो कह गए ज्ञानी था ध्यानी। अल्फ़ाज़ मेरे ✍️🙏🏻🙏🏻 ©Ashutosh Mishra #“विचारधारा”
Rakesh Kumar Jha
लड़ना हो तो खुद से लड़ो क्योंकि दूसरों से लड़ने पर हमेशा नुकसान ही होता है। ©Rakesh Kumar Jha #विचारधारा
Monu Pal
"कागज के पन्नों में ,कुछ अनकही सी हस्तियों,के जीवन की कहानी ,कुछ अपने पूर्वजों की धुंधली सी दास्ता समेटे , ये बया कर रही है,उनके जीवन की कहानी😔 #विचारधारा
कविता पुराणिक
जीवन हे पाण्याच्या प्रवाहाप्रमाणे असते, शांत नितळ पाण्यात पोहून अपेक्षित किनारी पोहोचणे तशी सहज साध्य गोष्ट. पण सातत्याने संघर्ष करून चढ उतार भेदत प्रवाहाच्या विरुद्ध जाणाऱ्या व्यक्ती कालांतराने प्रचंड कणखर सामर्थ्यशाली बनतात. कारण पैलतीरी मार्गस्थ होताना त्यांचा हा अनोखा-अगम्य प्रवास जणू त्यांच्या आयुष्याला एक नवनिर्मितीचा परिसस्पर्श करून वेगळीच झळाळी प्राप्त करून गेलेला असतो... ©कविता पुराणिक विचारधारा
अनुषी का पिटारा "अंग प्रदेश "
हुई मतल़बी है आज दुनिया, कोई किसी का सग़ा नहीं है... हैं तब तक बहुत भरोसा, जब तक लहू ने लकीरें ना खीचा हुए हैं लोग अपनों से आहत़, है किसका दिल जो फट़ा नहीं है हुई मतल़बी है आज दुनिया, कोई किसी का सग़ा नहीं है... नहीं किसी का है अब भरोसा, कि कर दे कोई कहाँ पे धोखा बड़े वो होकर है पत्नी से पूछा, माँ-पिता की यहाँ जगह नहीं है हुई मतल़बी है आज दुनिया, कोई किसी का सग़ा नहीं है... ©Anushi Ka Pitara #विचारधारा
Nana
आपले असं कोणीच नसतं स्वतः च्याच आत्मविश्वासाचा कस लावून जगायचं असतं ©Nana #विचारधारा