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Satya Prakash Upadhyay
भक्ति के रास्ते मे 3 शत्रु या बाधा हैं। पहला:- का रूप बछड़ा जो कि अज्ञान का स्वरूप है। इसका निवारण प्रभु और गुरु की कृपा से सम्भव है। असत्य वस्सासुर बछड़े के रूप में है, सब कर्म करना सीखा लेकिन भजन करना नही सीखा तो यहाँ की जानकारी बस यहीं तक काम आएगी। लोग कहते हैं जैसा आता है वैसे कर लेते हैं, पर भक्ति के अलावा दूसरे काम को नियम और ढंग से करते हैं,घर और व्यापार बड़ी समझदारी से करते हैं, सब्जी में चीनी नही डालते,किसको पैसा देना और किससे कितना लेना है ये बहुत हिसाब-किताब से करते हैं, पर भक्ति की बात आती है तब जैसे तैसे कर लेते हैं,भगवान साफ दिल देखते हैं,भावना देखते हैं, तब आप हीं फैसला कीजिए आपका हृदय भक्ति में कितना निर्मल है। सन्तो के जीवन से सीखना होगा, नही तो कहीं न कहीं अटक जाइएगा,कबीरदास कहते हैं "माया महा ठगिनी मैं जानी"। बिनु सत्संग विवेक न होई ,राम कृपा बिनु सुलभ न सोई। गुरु बिनु भवनिधि तरही न कोई,जो विरंचि शंकर सम होई। गुरु के वचन प्रतीति न जेहि,सपनेहु सुख निधि सुलभ न तेहि। आप अभी से नामजप और भगवान के नाम रूप गुण लीला धाम का स्मरण पठन इत्यादि करते रहिए,भगवान आपको सदगुरू से मिला देंगे। ॥जय श्री हरि॥ (part 1,भाग १) satyprabha💕 भक्ति के रास्ते मे 3 शत्रु या बाधा हैं। 1.पहला का रूप बछड़ा जो कि अज्ञान का स्वरूप है। इसका निवारण प्रभु और गुरु की कृपा से सम्भव है। सत्य और
Satguru ki kripya
सत्संग विचार जिसके घर में भी हर रोज सत्संग विचार होते हैं उन घरों की आदि समस्याएं दूर हो जाती है सत्संग विचार परमात्मा के नाम पर होने चाहिए क्योंकि आप इंसान होने का कोई तो कर्तव्य निभाई है आप कुछ थोड़ा समय निकाल कर श्रीमद्भागवत गीता जी को पढ़िए मेरे गुरु तत्वदर्शी जगत रामपाल जी महाराज के द्वारा लिखित ज्ञान गंगा पुस्तक को पढ़िए मंगाइए फ्री में आर्डर कीजिए अपना नाम पता एड्रेस मैसेज कीजिए किताब आपके घर पर पहुंच जाएगी जीवन का अनमोल ज्ञान का खजाना है जो सूक्ष्म ज्ञान है जिसे प्राप्त करने के लिए लोग बड़े-बड़े संत महात्माओं की खोज करते हैं उनके दर्शन को भटकते हैं इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आपकी 1000 परसेंट प्रॉब्लम ठीक हो जाएगी ©Satguru ki kripya सत्संग विचार सत्संग विचार
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आत्म-निर्माण के कार्य में सत्संग निःसन्देह सहायक होता है किन्तु आज की परिस्थितियों में इस क्षेत्र में जो विडंबना फैली है, उससे लाभ के स्थान पर हानि अधिक है। सड़े-गले, औंधे-सीधे, रूढ़िवादी, भाग्यवादी, पलायनवादी विचार इन सत्संगों में मिलते हैं। फालतू लोग अपना समुदाय बढ़ाने के लिए सस्ते नुस्खे बताते रहते हैं या किसी देवी देवता के कौतूहल भरे चरित्र सुनाकर उनके सुनने मात्र से स्वर्ग, मुक्ति आदि मिलने की आशा बँधाते रहते हैं। ऐसा विडम्बनापूर्ण सत्संग किसी का क्या हित साधेगा? सत्संग