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HARSH369

मन की व्यथा..!! कविता मन की

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Asha Shukla

#कविता दोहा रजनी की व्यथा #krishna_flute

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pooja d

हे भगवंता। ऐक हाक एकदा।।
जीव माझा मज। नकोसा झाला।।
जन्म पुढला। हवा ऐसा मज।।
जे जे चित्तील। ते पूर्ण होईल।।
नको भिकरीपण। जगताना जीवन।।
थकले मी आता। भीक मागता।।— % & #भगवंत  #व्यथा 
#कविता 
#yqtaaimarathi

Tarun Singh

बैल की व्यथा #कविता

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shailja ydv

हिंदी की व्यथा

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 हिंदी की व्यथा

Ankit Mishra

#मन की #व्यथा

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बस इतनी सी इल्तज़ा है, की शब्द मेरी ताक़त और कलम मेरी वफ़ा है,✍️ #मन की #व्यथा

Sandeep Singh Raja

मन की व्यथा... #कविता

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Pragya Amrit

एहसास की व्यथा।

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मैं एहसास लिखती हूँ, 
लोग अल्फाज समझते हैं।
प्रीत की गली से गुजरती हूँ,
लोग भटकाव समझते हैं।
प्रीतम से करती मैं गुजारिश,
हो जब मेरे एहसासों की बारिश,
भीग कर सुने शब्दों की पैमाइश,
बिना पर को जिसने परिंदा सा किया,
इस लाश को उसने जिंदा सा किया। एहसास की व्यथा।

J P Lodhi.

#वक्त की व्यथा

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व्यथा
कोंरोना लेकर आया संकट विकराल है,
अर्थ व्यवस्था को बना दिया बदहाल है।
शहरों में श्रमिकों पर टूटा जैसे पहाड़ है,
तंगहाली ने खड़े कर दिए बड़े सवाल है।
गांव आने को उमड़े श्रमिकों के जत्थे है,
मीलों का सफर चल रहे पैदल निहत्ते है।
रास्तों में झेल रहे असहनीय पीड़ा वेदना,
दर्द से तन जख्मी हुए आहत हुई चेतना।
चलते चलते पैरो में पड़ गए कई छाले है,
कठिन सफर में पड़े निवालों के लाले है।
प्राण बचाने को मिलते खास रखवाले है,
बुरे वक्त में मानवता ने जीवन संभाले है।
कई अभागे पथ में काल के ग्रास हो गए,
माता पिता बेटों की वाट जोहते रह गए।
बुरे वक़्त में बन रही दुख भरी कहानियां,
विकट बक्त में मौत लील रही ज़िंदगियां।
ऐसा समय कभी किसीने देखा नही था,
वक्त इतना बुरा आ जाएगा सोचा न था।
JP lodhi #वक्त की व्यथा

Lakhan Singh Chouhan

मजदूरों की व्यथा। #कविता #Labour_Day

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#Labour_Day सर से उनके छत उठ गई
रोजी छीन गई हाथों की,
ना रहा खाने को दाना
नींद उड़ गई रातों की।

पुलिस ने उनको मारे डंडे
और खदेड़ा सड़कों से,
सरकारों को क्या करना है
गांव के ऐसे कड़को से। 

उनकी गलती ,जो थे आए
भरने पेट वो शहरों में,
सिर पे ढोते बोझा देखो
जेठ की भरी दोपहरों में।

जूते चप्पल नहीं मिले तो
बांध ली बोतल पाओं में,
लक्ष्य एक है, कैसे भी वो
पहुंचे अपने गाँवो में।

तुमने भेजे उड़न खटोले
उन्हें बुलाया देशों में,
जो स्वार्थ के कारण भागे
भारत छोड़ विदेशों में।

मजदूरों का दर्द ना समझा
जाने क्यों सरकारों ने,
जमा रुपए भी लूट लिए
बीच में कुछ गद्दारों ने।

धन्य जिन्होंने पानी पूछा,
और दी रोटी खाने को,
पैदल ही थे निकल पड़े 
जो अपने घर जाने को। 

ठा. लाखन सिंह चौहान मजदूरों की व्यथा।
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