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HARSH369
मन कि व्यथा मन ही जाने, ना तुम जान सको न मैं जानू क्या मन करवाये क्यू करवाये ये मन ना तुम जान सको ना हि मैं जानू.. बेधड़क बोलता हूं,बेखौफ बोलता हूं रिस्तो के बन्धन को कान्टों पर तोलता हूं जिसके पास जितना पैसा, उसी कि सरकार है बाकि बेकारो के लिये बेकार परिवार है,..! बाकि ये सब क्यूं बनाया भगवान ने ना तुम जान सके ना हि मैं जानू..! मन की व्यथा..मन हि जाने..!! ©SHI.V.A 369 #मन की व्यथा..!! #कविता मन की
pooja d
हे भगवंता। ऐक हाक एकदा।। जीव माझा मज। नकोसा झाला।। जन्म पुढला। हवा ऐसा मज।। जे जे चित्तील। ते पूर्ण होईल।। नको भिकरीपण। जगताना जीवन।। थकले मी आता। भीक मागता।।— % & #भगवंत #व्यथा #कविता #yqtaaimarathi
Pragya Amrit
मैं एहसास लिखती हूँ, लोग अल्फाज समझते हैं। प्रीत की गली से गुजरती हूँ, लोग भटकाव समझते हैं। प्रीतम से करती मैं गुजारिश, हो जब मेरे एहसासों की बारिश, भीग कर सुने शब्दों की पैमाइश, बिना पर को जिसने परिंदा सा किया, इस लाश को उसने जिंदा सा किया। एहसास की व्यथा।
J P Lodhi.
व्यथा कोंरोना लेकर आया संकट विकराल है, अर्थ व्यवस्था को बना दिया बदहाल है। शहरों में श्रमिकों पर टूटा जैसे पहाड़ है, तंगहाली ने खड़े कर दिए बड़े सवाल है। गांव आने को उमड़े श्रमिकों के जत्थे है, मीलों का सफर चल रहे पैदल निहत्ते है। रास्तों में झेल रहे असहनीय पीड़ा वेदना, दर्द से तन जख्मी हुए आहत हुई चेतना। चलते चलते पैरो में पड़ गए कई छाले है, कठिन सफर में पड़े निवालों के लाले है। प्राण बचाने को मिलते खास रखवाले है, बुरे वक्त में मानवता ने जीवन संभाले है। कई अभागे पथ में काल के ग्रास हो गए, माता पिता बेटों की वाट जोहते रह गए। बुरे वक़्त में बन रही दुख भरी कहानियां, विकट बक्त में मौत लील रही ज़िंदगियां। ऐसा समय कभी किसीने देखा नही था, वक्त इतना बुरा आ जाएगा सोचा न था। JP lodhi #वक्त की व्यथा
Lakhan Singh Chouhan
#Labour_Day सर से उनके छत उठ गई रोजी छीन गई हाथों की, ना रहा खाने को दाना नींद उड़ गई रातों की। पुलिस ने उनको मारे डंडे और खदेड़ा सड़कों से, सरकारों को क्या करना है गांव के ऐसे कड़को से। उनकी गलती ,जो थे आए भरने पेट वो शहरों में, सिर पे ढोते बोझा देखो जेठ की भरी दोपहरों में। जूते चप्पल नहीं मिले तो बांध ली बोतल पाओं में, लक्ष्य एक है, कैसे भी वो पहुंचे अपने गाँवो में। तुमने भेजे उड़न खटोले उन्हें बुलाया देशों में, जो स्वार्थ के कारण भागे भारत छोड़ विदेशों में। मजदूरों का दर्द ना समझा जाने क्यों सरकारों ने, जमा रुपए भी लूट लिए बीच में कुछ गद्दारों ने। धन्य जिन्होंने पानी पूछा, और दी रोटी खाने को, पैदल ही थे निकल पड़े जो अपने घर जाने को। ठा. लाखन सिंह चौहान मजदूरों की व्यथा।