जाते-जाते अगर यू न मुझको आज़माता
तो गनीमत थी आसुओ का शैलाब न आता
वो बेवक्त पटल कर देखना तेरा
न जाने क्या क्या तोड़ गया अन्दर मेरा
सपने न थे थी कोई टूटी ईमारत कॉच कि
अगर कॉच चुभने का डर न होता
तो बुलाता तुझे तेरा वो महल था कभी
और अब मेरा खंडहर है.. दिखाता जाते-जीते