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RAJ RAAJ
ईश्वर कैसा है ? ये जान लिया इंसान ने सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, , अनश्वर पर ईश्वर नही जान पाया इंसान कैसा है ! पंकज राज ©RAJ RAAJ #मीमांसा
Alam Aftab
मीमांसा वो मुझे सदैव गुलाब के समक्ष मिला जबकि उसे माली के समक्ष होना चाहिए था ©Alam Aftab #Drown मीमांसा
Sudhanshu
इस दुनिया के होने पे मुझे बिलकुल भी अचरज नहीं होता , और नाही इसके " ऐसे " होने पे ताज़ूब का ख्याल ही पैदा होता । कि किसी के भी हिस्से में भी जो ये जिम्मा होता , ना इस से बेहतर कुछ पश्माने ए शमा होता । कि मंजर भी यही होता , उसका बायां भी यूंही होता , हां माटी के ही बुत होते , रंग भी चहुं ओर यही पुता होता , जज़्बात इसी सरीखे भरा होता , हालात भी कुछ यूंही होता । द्वंद परस्पर हर ख्याल में , असमंजस का हाल भी यूंही होता , सवाल यही , भ्रमों का मायाजाल यही होता । सारा ताना बाना और फ़साना भी यूंही सजा होता , जाल बिछे इस मार्ग में धाराओं का प्रवाह यही, बह चलने का द्वार यही होता । राह में ठहराव भी ऐसे बने होते , लगाव भी यही होता अलगाव भी यूंही होता, भोग और वियोग के जड़ों का जोड़ ऐसे ही एक होता , भय और लोभ का गठजोड़ का सोज भी यूंही बुना होता । हां! होते ऐसे ही मौजूद साधन भी प्रसाधन भी , भरमाने को ललचाने को , कृपार्थ भी कृतार्थ भी , अर्थ और स्वार्थ यही , पदार्थ यही होता , दृष्टा समक्ष खुद से खुदी छले जाने का विहंगम दृश्य भी यही हो होता। बेबस हालातों से लड़ती भूख भी होता , आंखे बंद खुदाई ढूंढती भीड़ की दौड़ यही सम्मलित होता , और इन दृश्यों के दर्शक भी सभी , मंजर ये सारे सुलझाने में लगे पथप्रदर्शक भी, यही होता। # मोक्ष मीमांसा
Rahul Shastri worldcitizens2121
Safar July 10,2019 सत्संग का अर्थ होता है गुरु की मौजूदगी! गुरु कुछ करता नहीं हैं, मौजूदगी ही पर्याप्त है। ओशो सत्संग का अर्थ
Aman Baranwal
मिट्टी का जिस्म और आग सी ख्वाहिशें, खाक होना लाजमी है, क्योंकि आदमी आखिर आदमी है! जीवन का अर्थ
divya...
इश्क़ आज भी है मगर राधा- कृष्ण जैसा नहीं ... होगे एक - आध भी उनके जैसे अगर... तो उनको चैन का जीवन नहीं... लोगो को प्रेम का हर दस्तूर झुटा लगता है... क्योंकि उन्होंने कभी किसी से .... सच्चा प्रेम किया ही नहीं... प्रेम का अर्थ...