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sweta kumari

#One session व्यंग्य प्रधान कविता

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माँ शारदे की चिठ्ठी
                             
अचानक किसी ने दरवाजा खटखटाई,
मैंने पूछा-कौन हो भाई?
डाकिये ने आवाज लगाई,
आपके नाम की चिठ्ठी है आई।
चिठ्ठी को उलट-पलट कर देखा,मेरे समझ ना आई
मैंने पूछा ये चिठ्ठी कहाँ से आई, किसने भिजवाई।
खैर, खोलकर देखा तो उसमें संदेश था भाई,
अज्ञान के अंधेरे में सृष्टि है समाई।
हाय!अब मनुष्यता भी हो गई पराई,
भ्रष्टाचार के हलों से हो गई इसकी जुताई।
गरीबों के बीच आज है भूखमरी छाई,
ज्ञान की देवी बनकर मैं इस संसार में आई।
विद्या से भी तूने कर ली ठगाई,
हाय!मनुष्य तुझे जरा भी लज्जा ना आई।
पापकर्म से तूने कर ली सगाई,
ये पढ़कर मेरी आँखें भर आई।
सच्चे ज्ञान के प्रकाश से,
मानव मस्तिष्क की करनी होगी सफाई।
पूरी चिठ्ठी पढी़ तो तब समझ मैं पाई,
अरे,यह तो माँ शारदे की चिठ्ठी है आई।
 
✍️श्वेता कुमारी

©sweta kumari #one session
व्यंग्य प्रधान कविता

कमलेश

हास्य व्यंग्य #shyari #व्यंग्य #Love

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आसान मंज़िल पहले दोस्तों के साथ घूमने जाने के लिए घर में झूठ बोलते थे
अब गर्लफ्रेंड के साथ घूमने जाने के लिए झूठ बोलते हैं

©expresslove हास्य व्यंग्य
#shyari #व्यंग्य #Love

Rãjpøôt BãÑä Ãkâsh

हमें क्या फर्क पड़ता है, हमें क्या फर्क पड़ता है,
अगर आज कोई ठोकर खाता हैं,
कोई गड्डे में गिर जाता हैं,
अरे भाई इसी से तो ही वोट बैंक बनता हैंI
हमें क्या फर्क पड़ता है,
अगर दो माले की बिल्डिंग 20 माले का होता हैं, 
चाहे उस बिल्डिंग में दबकर लोग मरता हैं, 
पर भाई पैसा तो उधर से ही मिलता हैंI
हमें क्या फर्क पड़ता हैं, 
कोई भूखा मरता हैं, 
या कचरा प्लास्टिक खाता हैं, 
यार नेता है हमारा पेट तो भर जाता हैंI

Writer Akash✍️ #व्यंग्य

Rakesh Kumar Dogra

व्यंग्य

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"व्यंग्य"
शब्द की व्यंजना शक्ति द्वारा निकला एक गूढ़ार्थ होता है। 
इतना आसान नहीं है तुमने मज़ाक बना रखा है।
वो जहाँ होता है तुम्हे वहां तक घूमकर पहुंचना भी होता है।
वो सीधे सीधे नहीं होता लच्छेदार  होता है।
अपने साथ एक खूबसूरत मोड़ लिए होता है।
उसकी खिड़की से सारा दृश्य अभिसरित* होता है।
*एक ओर केन्द्रित होता है। व्यंग्य

Mr. Singh Hindi Classes

व्यंग्य

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ये तो माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम,तुमको खबर होने तक। व्यंग्य

रामकुमार पटेल 'यार'

व्यंग्य #कॉमेडी

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✍️ # ASHISH GUPTA

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jdhdhhdhdhdjdjddjdjjddjj #व्यंग्य

दीपक मेहता

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Arun Thapliyal

व्यंग्य... #poem

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मैं कहाँ डरता हूँ ?बिल्कुल भी नहीं।
चाहे छिन लो मेरे जीने का हक।
या दिखाओ सत्ता का डर।
मैं कहाँ डरता हूँ?बिल्कुल भी नही।
हाँ तुम्हारी बातों पर यकी कर लेता हूँ।
बात राष्ट्र की करते हो न, इसलिए।
और हां, इसलिये भी यकी हैं कि,सेना का बड़ा ध्यान रखते हो।
वैसे मैं डरता नही हूँ, बिल्कुल भी नही।
और जो सत्ता में होते हैं,उनसे तो बिल्कुल भी नही।
अरे गरीब अगर गरीब हुआ तो क्या?
ये तो नियति है उसकी।
अरे युवा अगर सड़कों पर टहलते हैं रोजगार को, तो क्या?
ये सब तो आम बात है ना।
फिर मैं क्यों परेशां हौऊँ।
वैसे मैं डरता नही हूँ, बिल्कुल भी नहीं।
और जो सत्ता में हैं,उनसे तो बिल्कुल भी नहीं।
अरे किसी भी चीज के दाम बढ़े तो क्या?
पहली बार थोड़ी बढ़े हैं, चिल्लाते क्यों हो, चुप रहो।
और खाने को नही मिल रहा क्या ?
राष्ट्रवाद है, वो घोटा पी लो।
क्यों खामखां तिल को ताड़ किये हो ?
वैसे में डरता नही हूँ ?
और जो सत्ता में हैं, उनसे तो बिल्कुल भी नही।
अब कुछ बोलना मत ? जेल तो देखी होगी न ?
सब कुछ बढ़िया है,तुम्हे न जाने किस बात का डर है ?
इतना क्यों डरते हो,इस देश मे रहकर भक्त का भावार्थ नही जानते ?
वैसे में डरता नही हूँ ,बिल्कुल भी नही।
और जो सत्ता में हैं,उनसे तो बिल्कुल भी नही।

                                    अरुण'निमित्त'

©Arun Thapliyal व्यंग्य...
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