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Divyanshu Pathak
रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा है- धर्म ते विरति जोग ते ज्ञाना। ज्ञान मोच्छप्रद वेद बखाना।। आत्मा के उपर्युक्त पांचों आवरण हटाना ही आत्म साक्षात्कार है। तब इसमें धर्म कहां है? संकीर्णता कहां है? क्या व्यक्ति अविद्या, अस्मिता, राग-द्वेष, अभिनिवेश से मुक्त होकर शान्ति में स्थिति नहीं चाहता? हमारे संविधान के शुरू में जो चार अनिवार्य लक्ष्य तय किए गए हैं न्याय, स्वतन्त्रता, समानता और विश्व-बन्धुत्व, वे देश-काल के अनुरूप योग का व्यावहारिक स्वरूप ही हैं। :💕👨 ओशो ने लिखा है- “जैसा मनुष्य है, वह सत्य के साथ नहीं जी सकता। इस बात को बहुत गहरे में समझने की जरूरत है क्योंकि इसे समझे बिना उस अन्वेष
Saatyaki S/o Seshendra Sharma
षोडशी : रामायण के रहस्य सर्वकला संभूषण गुंटुर शेषेन्द्र शर्मा द्वारा विरचित ‘षोडशी’ भारत के विमर्शात्मक साहित्य को वैश्विक वाङमय में स्थापि
अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'
प्रेमी उवाच- गुप चुप गुप चुप बैठे हो क्यों,बोलो आखिर बात है क्या? हम नैन बिछाए बैठे प्रतिपल, मत पूछों दिन-रात है क्या? इतने दिन के बाद हमारा मिलन हुआ है मुश्किल से, पहले तुम ही बोल दो प्रियतम,इसमें शह या मात है क्या? प्रेमिका उवाच- अब तो तुमने बोल दिया प्रिय, उत्तर देना बाकी है। तुम चतुराई से बात कह दिया, मर्यादा भी ढाकी है। इतनी बात समझ लो साजन मैं तेरी थी तेरी हूँ, ये छोटे-मोटे झगड़े भी तो, गहरे प्यार की झांकी है। अरुण शुक्ल अर्जुन प्रयागराज (पूर्णत:मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित) उपर्युक्त पंक्तियों से संबंधित एक लघु कथा डिस्क्रिप्शन में पढ़ें! मित्रों! इश्क़ प्यार मोहब्ब़त जैसे शब्द कानों में पड़ते ही एक जिज्ञासा रूपी तरंग मन में दौड़ जाती है। हम सोचते हैं कि आखिर यह प्रेम है क्या?
Sarita Shreyasi
Longstanding resentment, deep hurt, fear, anger .. & menifestation of all these is.. Cancer .. Sharing the stories of three simple lives.. strong smiling women.. I just peeped into their happy lives to find out the pain.. they themselves didn't know.. Read in caption.. छोटकी ईया छोटकी ईया इसी नाम से सब पुकारते थे उसे गाँव मोहल्ले में । सब के सुख-दुःख की साझेदार, समस्या में सलाहकार और विवाद के लिए सरपंच। पड़ोस का तीन
Sarita Shreyasi
कैंसर ने रिटायरमेंट तक की मोहलत नहीं दी । वह सोचते रहे और मौसी पूरी औरत ना हो पाने का दु:ख मन में लिए चुपचाप ही चली गयी। खुद उसे भी कहाँ मालूम था कि उसकी अपनी ही सोच ने उसकी जान ले ली। (Read in caption) और वो गाँव वाली मौसी। मौसी की छाती में बचपन से ही धीमा दर्द रहता था जल्दी थक जाती,दौड़ती तो हाँफने लगती। सबको लगा कुछ खांसी जैसी समस्या होग