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कृष्णा आज़मगढी़

सामयिक

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दिल पे जख्मों का सिलसिला देखो।
क्या वफ़ा से हमें, मिला देखो ।।

फिर भी करता हूं ,वफ़ा की बातें ।
ऐ जहां मेरा ,हौसला देखो ।।

तप रहा जिस्म मेरा ,बारिश में ।
दिल कोई आज ,फिर जला देखो ।।

उनके कांटों पे, भी नज़र रखना ।
फुल को जब ,खिला खिला देखो ।।

यूं ही मर मर के, जिंदा हूं मैं ।
मौत से मेरा, फासला देखो ।।

ईमान गिरवी है ,यहां जिसके "मनीष" ।
सर उठाए घर से, निकला देखो  ।।

कुमार मनीष
माटीगोड़ा (जादूगोड़ा) सामयिक

Pravesh Khare Akash

सामयिक..

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सामयिक

अब इतना भी न रोना
कि सैलाब आ जाये
ई.वी.एम.है बैलेट पेपर नहीं
जो आँसुओं से भीग जाये।।
अब हुआ सो हुआ
ये वोटर है गर्लफ्रैंड नहीं
 जा के जो लौट आये
दिए तोहफे जो भूल में भूल जायें।।
पब्लिक हुयी चतुर सयानी है,
देख तमाशा मंद मंद मुस्काये,
अब हुआ सो हुआ
बोलो हे खद्दरधारी क्यों मन घबराये!!
 सामयिक..

Madhusudan Shrivastava

दोहे-सामयिक

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विपदा हुई विशाल यह,
दिखे नहीं  अब  अंत।
दो गज की दूरी  रखें,
रहें   घरों   में   बन्द ।। (1)

अंध-बहिर सरकार यह,
है    किसान    मजबूर।
सर पर गठरी लादकर,
राह   चले   मजदूर ।। (2)

सुनके लाख करोड़ की,
उलझे   सभी  गरीब।
मर-मर कर हैं जी रहे,
डॉक्टर, नर्स, मरीज़।। (3)

कहते बस करते नहीं,
ऊंची    रहे   उड़ाय।
राजनीति के राम ने,
दिए  'राम' विसराय ।। (4)

हो साधन-सम्पन्न  तो,
तेरी     है    सरकार।
मृग,बकरी,खग,मेमना,
होते  रोज  शिकार।। (5)

नारों की सरकार को,
नारे   ही   स्वीकार।
अहंकार बस ना सुने,
जनता रही पुकार।। (6)

'मधु' दोहे-सामयिक

"preet"

देश की सामयिक स्थिति बयां करती कविता

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Shiv Narayan Saxena

सामयिक चर्चा. Mukesh Poonia R.K.Sah So ek O Aanand santoshray ✔️ Rajesh Kumar Karmpathi उर्फ Samraat Shaida sultanpuri Subhash yadav #Society

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गौरव दीक्षित(लव)

*कड़कड़ाती ठण्ड के दृष्टिगत सम सामयिक रचना* वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो चाय का मजा रहे, प्लेट पकौड़ी से सजा रहे #कविता

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*कड़कड़ाती ठण्ड के दृष्टिगत सम सामयिक रचना* 
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो
चाय का मजा रहे, प्लेट पकौड़ी से सजा रहे
मुंह कभी रुके नहीं, रजाई कभी उठे नहीं
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो
मां की लताड़ हो या बाप की दहाड़ हो
तुम निडर डटो वहीं, रजाई से उठो नहीं
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो
मुंह भले गरजते रहे, डंडे भी बरसते रहे
दीदी भी भड़क उठे, चप्पल भी खड़क उठे
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो
प्रात हो कि रात हो, संग कोई न साथ हो
रजाई में घुसे रहो,  तुम वही डटे रहो
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो
एक रजाई लिए हुए एक प्रण किए हुए
अपने आराम के लिए, सिर्फ आराम के लिए
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो
कमरा ठंड से भरा, कान गालीयों से भरे
यत्न कर निकाल लो,ये समय तुम निकाल लो
ठंड है यह ठंड है, यह बड़ी प्रचंड है
हवा भी चला रही, धूप को डरा रही
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो।।
रजाई धारी सिंह दिनकर😂😂😂😂
G@ur@v ✍️😁😜😂 *कड़कड़ाती ठण्ड के दृष्टिगत सम सामयिक रचना* 
वीर तुम अड़े रहो, रजाई में पड़े रहो
चाय का मजा रहे, प्लेट पकौड़ी से सजा रहे

Ansh Rajora

सामयिक परिस्थितियों और बदलते परिवेशों को देखते हुए एक नज़्म आप सबके सामने प्रस्तुत है जो भाव जुड़ें तो सूचित हो🙏 दोज़ख - जहन्नुम , नरक fakeer #HUmanity #yqbaba #yqdidi #yqbhaijan #fakeera_series

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कभी साधू कभी शैतान नज़र आता है
वो महज़ शक्ल से इंसान नज़र आता है

एक चेहरा छुपाकर उस चेहरे के पीछे
खुद ज़मीर का श्मशान नज़र आता है

ग़ज़ब इस क़ातिल की फितरत भी देखो
क़त्ल कर अरमाँ परेशान नज़र आता है

एहसास कब करे ये किसी के दुख का
दर्द का अपने निगेहबान नज़र आता है

कुछ अजीज़ खोया है इसने यहां शायद
हरकत से अपनी यूँ हैरान नज़र आता है

नफरत की आग में दहकता दोज़ख है
हसीं गुलिस्तां मेरा वीरान नज़र आता है

जन्नत से जहन्नुम सफर इतना ही "अंश"
कागज़ के टूक में भगवान नज़र आता है सामयिक परिस्थितियों और बदलते परिवेशों को देखते हुए एक नज़्म आप सबके सामने प्रस्तुत है जो भाव जुड़ें तो सूचित हो🙏
दोज़ख - जहन्नुम , नरक

#fakeer

Psychic Priya

OPEN FOR COLLAB✨ #ATकोईकिताबयहनहींसिखाती कितना और क्या आत्मासात करना उचित है, सार्वदेशिक सार्वकालिक कुरीतियों,रूढ़िवादी की ढाह दी गयी डोल के #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #yqhindi #aestheticthoughts #yqaestheticthoughts #बदलतापाठ्यक्रम

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कितना और क्या आत्मासात करना उचित है,
सार्वदेशिक सार्वकालिक कुरीतियों,रूढ़िवादी की ढाह दी गयी डोल के पीछे अब भी एक अदृश्य दीवार है,जो इंगित करती है एक तानाशाही हवा में स्वास लेते उन उज्जवल भविष्य की ओर,क्या ही कामना कर सकते है उनके भविष्य की, जिनको अपना इतिहास ही तोड़ मरोड़ कर बताया गया हो और वर्तमान को काली पट्टी बांध कर उजरे भविष्य के वादे के पुल पर चलाया जाता हो,यह पुल जाता है ऐसी फरेब की नदी के ऊपर जहाँ पानी कभी नही निकलेगा!
अध्यापक भी चकित हैं जिस प्रकार उनके समक्ष मिथ्य को वास्तविकता बना बेहद सुन्दर तरीके से पेश किया गया है,बस देर है तो उसे आत्मासात कर लेने की,पहले अध्यापकों को फिर छात्रों को ...
जिसकी सत्ता उसका पाठ,ऐसा तय करने वाले कुर्सी की चाह में उन सामयिक चक्र को नकारते हुए भावी भविष्य को पायदान बना अपना मंच सँभालने को तैयार हैं,कब समझ पाए हैं पाठ्यक्रम को, वो तो बस तय कर पाए हैं नीरा,सर्वथा संवेदनहीन व स्वार्थी बन उस झूठी शिक्षा को!
Rest in caption// ~
 OPEN FOR COLLAB✨ #ATकोईकिताबयहनहींसिखाती
कितना और क्या आत्मासात करना उचित है,
सार्वदेशिक सार्वकालिक कुरीतियों,रूढ़िवादी की ढाह दी गयी डोल के

Anuj Jain

वो मुलाकात माफ़ कीजियेगा हम बोले जैसे ही टक्कर पड़ी उस महिला से। उसने पलट कर देखा और चेहरे पर से क्रोध के भाव बदल कर विसमय के हो गए। अनुज हो #Challenge #yqbaba #yqdidi #वोमुलाकात #yostowrimo

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वो मुलाकात

In Caption वो मुलाकात

माफ़ कीजियेगा हम बोले जैसे ही टक्कर पड़ी उस महिला से।
उसने पलट कर देखा और चेहरे पर से क्रोध के भाव बदल कर विसमय के हो गए।
अनुज हो

Nitin Trivedi

प्रगति के पथ पर हर इंसान की लालसा होती है कि वह कुछ नए मुकाम हासिल करें लेकिन इस हसरत में इंसान के पास अपना जो कुछ है वह उसे छोड़ना चाहता है

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वैचारिक अतीत में क्यो जीने को मजबूर है  औरत......  
आधुनिकता का तो सिर्फ आवरण धरती ...
क्या नए इतिहास को  जन्म दे पाएगी? 
प्रश्न सामयिक नही 
एक निरंतर प्रवाह 
से ओतप्रोत है। प्रगति के पथ पर हर इंसान की लालसा होती है कि वह कुछ नए मुकाम हासिल करें लेकिन इस हसरत में इंसान के पास अपना जो कुछ है वह उसे छोड़ना चाहता है
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