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Satish Mapatpuri
मुक्तक जीत गए फिर पलट न देखे कभी न पूछे हाल। पाँच साल में फिर आ करके गला ही लेते दाल। शर्मीली नारी सा श्रीमन घूँघट में ही रहते, वादा करते नहीं निभाते फिर भी गोटी लाल। ….. सतीश मापतपुरी ©Satish Mapatpuri श्रीमन
Radheshyam
श्रीमन नारायण, नारायण हरि, हरि श्रीमन नारायण हीं,, श्रीमन नारायण, नारायण हरि, हरि श्रीमन रहते वहीं,, मन में यहीं आस हैं जी, पूरा विश्वास भी कभी तो आएंगे नारायण भी, मेरे भगवन भी देंगे वो दर्शन अपने पावन, धन्य हो जीवन, धन्य मन भावन प्रेम की भक्ति स्वीकारेंगे, अपने मन की हमको कहेंगे, जीवन विश्वास हैं, मिलन की आस हैं कभी तो आएंगे नारायण भी, मेरे भगवन भी तन, मन, धन सब उनको अर्पित जीवन सुमन उन्हीं को समर्पित, ये जीवन हैं, देन तुम्हारी जैसा चाहो, करवा लो गिरधारी प्रेम की प्यास हैं, दर्शन की आस हैं कभी तो आएंगे नारायण भी, मेरे भगवन भी अपनी शरण में ले लो भगवन, तुम्हारी शरण हीं सबसे सही हैं, मन नहीं लगता मेरा यहाँ पर, हर पल बस तेरी हीं कमी हैं, दुनिया तो सब मतलब की हैं, ये दुनिया तेरी नहीं हैं, तूने बनाया इनसानो को, फिर भी इंसानियत की बड़ी कमी हैं, तुम हीं तो हो प्रेम का सागर, अनंत गिरिधर नागर, हरि की कथा अनंता, जीवन उन संग संता, पथ पर कुसुम बिछे हो सारे, जब आए प्रिय कृष्ण हमारे हर जगह हो चाँद सितारे, जब आए हरि, नारायण हमारे तुमसे हीं आस हैं, पूरा विश्वास हैं कभी तो आएंगे नारायण भी, मेरे भगवन भी ©Divyanshi Triguna "Radhika" #NojotoHindi #श्रीमन नारायण
RK SHUKLA
अब कैं राखि लेहु भगवान | हौं अनाथ बैठ्यौ द्रुम-डरिया, पारधि साधे बान | ताकैं डर मैं भाज्यौ चाहत, ऊपर ढुक्यौ सचान | दुहूँ भाँति दुख भयौ आनि यह, कौन उबारे प्रान ? सुमिरत ही अहि डस्यौ पारधी, कर छूट्यौ संधान | सूरदास सर लग्यौ सचानहिं, जय जय कृपानिधान || सूरदास
RK SHUKLA
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं। जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥ सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं। ह्वै हौं पूत नंद बाबा को , तेरौ सुत न कहैहौं॥ आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं। हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं॥ सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥ सूरदास
shekhar prasoon
काव्य जगत के आदि सूर्य,भुवन मोहन के चुन-२गुन गाये। नेत्रहीन हो,दर्श पर्स पा,मधुसूदन को हिये बसाये।। नन्द लला, जशुदा के छैया के,कौतुक क्रीड़ा को काव्य बनाये। इन्ही सूर की संगीत विरदावली,भक्तवत्सल ब्रजकुँवर को भाये।। हिन्दी काव्य के सूर्य आदि ब्रज कवि सूरदास जी के जयन्ती पर सादर दण्डवत! सूरदास जयन्ती नमन।
Alok tripathi
प्रभु जी मोरे अवगुन चित न धरौ। इक लोहा पूजा मे राखत इक घर बधिक परौ। पारस भेदभाव न मानत कंचन करत खरौ। ©Alok tripathi सूरदास का आत्मनिवेदन #NojotoRamleela