Find the Latest Status about देवव्रत from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, देवव्रत.
super star
देवव्रत मोगा जो एक नाम है जिसके कई उपलबधिया नाम है कहते है वो शात है पर हम जानते है वो खुद मे मशाल है लोगो से सुनते है उनकी बुराईया पर सरवगुण तो ईशवर भी नही दोसत कहते है क्याकर लेगा ये मोगा पर करता नही कर के दिखाता है मोगा सब पुछते है ऐसा क्या है उसमे जो आपने उसे जीताया पर उनहे क्या मालुम दुनिया मे फैन नाम किसी ने यु ही नही बनाया बस इतना चाहते है कि वो भी कुछ करके दिखाये लोगो के उठे सवालो को गलत साबित करके दिखाये #देवव्रत मोगा😂😂☺😊
Manju (Queen)
**आत्मविश्वास ** तीर से न तलवार से लड़ाई तो जीती जाती है आत्मविश्वास से मन में लगन , आँखों में सपने साहस की डोर थामे चल दे कंटीली राह में होंसलों के ले तू पंख पसार असीमित है आसमां धीर बन वीर बन अपने बाहुबल से समन्दर से भी राह निकल आती है आत्मविश्वास से अर्जुन सा लक्ष्य साध भरत सा बन वीर गंगा के वेग रोक दे देवव्रत सा बन दृढ़ प्रतिग्य तप एकलव्य सा बन दानवीर कर्ण सा कृष्ण विवेक मन सारथी से संसार के कुरुक्षेत्र में धर्म पताका लहराती है आत्मविश्वास से **आत्मविश्वास ** तीर से न तलवार से लड़ाई तो जीती जाती है आत्मविश्वास से मन में लगन , आँखों में सपने साहस की डोर थामे
DR. SANJU TRIPATHI
कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें। 👇👇👇👇 राजा प्रतीक कुरु वंश में हुए थे शांतनु उनके दूसरे पुत्र थे जब पुत्र की कामना से राजा प्रतीक गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप सौंद
नेहा उदय भान गुप्ता
नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।। अनुशीर्षक में पढ़े...👇👇 नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।।1 चन्द्रवंशी शासक ये, प
नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।। अनुशीर्षक में पढ़े...👇👇 नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।।1 चन्द्रवंशी शासक ये, प
WORDS OF VIVEK KUMAR SHUKLA
कब थी आपत्ति शिव को, परशुराम की ख्याति से। कब थी क्षति परशुराम को, देवव्रत की वृद्धि से। कब थी इर्ष्या द्रोण को, अर्जुन की प्रसिद्धि से
Ravendra
Vikas Sharma Shivaaya'
महाभारत का एक सार्थक प्रसंग🙏 महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था. युद्धभूमि में यत्र-तत्र योद्धाओं के फटे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों के चक्के, छज्जे आदि बिखरे हुए थे और वायुमण्डल में पसरी हुई थी घोर उदासी .... ! गिद्ध , कुत्ते , सियारों की उदास और डरावनी आवाजों के बीच उस निर्जन हो चुकी उस भूमि में *द्वापर का सबसे महान योद्धा* *"देवव्रत" (भीष्म पितामह)* शरशय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था -- अकेला .... ! तभी उनके कानों में एक परिचित ध्वनि शहद घोलती हुई पहुँची , "प्रणाम पितामह" .... !! भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक मरी हुई मुस्कुराहट तैर उठी , बोले , " आओ देवकीनंदन .... ! स्वागत है तुम्हारा .... !! मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था" .... !! कृष्ण बोले , "क्या कहूँ पितामह ! अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप" .... ! भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले," पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव ... ? उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है" .... ! कृष्ण चुप रहे .... ! भीष्म ने पुनः कहा , "कुछ पूछूँ केशव .... ? बड़े अच्छे समय से आये हो .... ! सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !! कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....! एक बात बताओ प्रभु ! तुम तो ईश्वर हो न .... ? कृष्ण ने बीच में ही टोका , "नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं ... मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ... ईश्वर नहीं ...." भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े .... ! बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .... !! " कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले .... " कहिये पितामह .... !" भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया ! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या .... ?" "किसकी ओर से पितामह .... ? पांडवों की ओर से .... ?" " कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया ! पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था .... ? आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या .... ? यह सब उचित था क्या .... ?" इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह .... ! इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ..... !! उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन .... !! मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह .... !! "अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण .... ? अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है .... ! मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण .... !" "तो सुनिए पितामह .... ! कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ .... ! वही हुआ जो हो होना चाहिए .... !" "यह तुम कह रहे हो केशव .... ? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ....? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया ..... ? " *"इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह , पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है .... !* हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है .... !! राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था .... ! हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह .... !!" " नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो .... !" " राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह .... ! राम के युग में खलनायक भी ' रावण ' जैसा शिवभक्त होता था .... !! तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण जैसे सन्त हुआ करते थे ..... ! तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे .... ! उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था .... !! इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया .... ! किंतु मेरे युग के भाग में में कंस , जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं .... !! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह .... ! पाप का अंत आवश्यक है पितामह , वह चाहे जिस विधि से हो .... !!" "तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव .... ? क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा .... ? और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा ..... ??" *" भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह .... !* *कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा .... !* *वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा .... नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा .... !* *जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह* .... ! तब महत्वपूर्ण होती है विजय , केवल विजय .... ! *भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह* ..... !!" "क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव .... ? और यदि धर्म का नाश होना ही है , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ..... ?" *"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह .... !* *ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता ..... !*केवल मार्ग दर्शन करता है* *सब मनुष्य को ही स्वयं करना पड़ता है .... !* आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न .... ! तो बताइए न पितामह , मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ..... ? सब पांडवों को ही करना पड़ा न .... ? यही प्रकृति का संविधान है .... ! युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से .... ! यही परम सत्य है ..... !!" भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे .... ! उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी .... ! उन्होंने कहा - चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है .... कल सम्भवतः चले जाना हो ... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण .... !" *कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले , पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था* .... ! *जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है ....।।* *धर्मों रक्षति रक्षितः* 🚩🚩 विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 706 से 717 नाम 706 सन्निवासः विद्वानों के आश्रय है 707 सुयामुनः जिनके यामुन अर्थात यमुना सम्बन्धी सुन्दर हैं 708 भूतावासः जिनमे सर्व भूत मुख्य रूप से निवास करते हैं 709 वासुदेवः जगत को माया से आच्छादित करते हैं और देव भी हैं 710 सर्वासुनिलयः सम्पूर्ण प्राण जिस जीवरूप आश्रय में लीन हो जाते हैं 711 अनलः जिनकी शक्ति और संपत्ति की समाप्ति नहीं है 712 दर्पहा धर्मविरुद्ध मार्ग में रहने वालों का दर्प नष्ट करते हैं 713 दर्पदः धर्म मार्ग में रहने वालों को दर्प(गर्व) देते हैं 714 दृप्तः अपने आत्मारूप अमृत का आखादन करने के कारण नित्य प्रमुदित रहते हैं 715 दुर्धरः जिन्हे बड़ी कठिनता से धारण किया जा सकता है 716 अथापराजितः जो किसी से पराजित नहीं होते 717 विश्वमूर्तिः विश्व जिनकी मूर्ति है 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' महाभारत का एक सार्थक प्रसंग🙏 महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था. युद्धभूमि में यत्र-तत्र योद्धाओं के फटे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों
N S Yadav GoldMine
परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। पढ़िए महाभारत !! 📒📒महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 19-37 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 इन गंगानन्दन भीष्म ने रूई भरा हुआ तकिया नहीं लिया है। इन्होंने तो गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है। माधव। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए महा यश स्वी नेष्ठिक ब्रम्हचारी ये शांतनुनन्दन भीष्म जिनकी युद्ध में कहीं तुलना नहीं है, यहां सो रहे हैं। 📜 तात। ये धर्मात्मा और सर्वज्ञ हैं परलोक और यह लोक सम्बन्धी ज्ञान द्वारा सभी आध्यामिक प्रष्नों का निर्णय करने में समर्थ हैं तथा मनुष्य होने पर भी देवता के तुल्य हैं; इन्होंने अभी तक अपने प्राण धारण कर रखे हैं। 📜 जब ये शान्तनुनन्दन भीष्म भी आज शत्रुओं के बाणों से मारे जाकर सो रहे हैं तो यही कहना पड़ता है कि युद्ध में न कोई कुषल है, न कोई विद्वान् है और न पराक्रमी ही है। पाण्डवों के पूछने पर इन धर्मज्ञ एवं सत्यवादी शूरवीर ने स्वयं ही अपनी मृत्यु का उपाय बता दिया था। 📜 जिन्होंने नष्ट हुए कुरूवंष का पुनः उद्धार किया था, वे ही परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। इन देवतुल्य नरश्रेष्ठ देवव्रत के स्वर्गलोक में चले जाने पर अब कौरव किसके पास जाकर धर्मविषयक प्रष्न करेंगे। जो अर्जुन के षिक्षक, सात्यकि के आचार्य तथा कौरवों के श्रेष्ठ गुरू थे, वे द्रोणाचार्य रणभूमि में गिरे हुए हैं, उन्हें भी देख लो। 📜 माधव। जैसे देवराज इन्द्र अथवा महापराक्रमी परषुराम जी चार प्रकार की अस्त्रविद्या को जानते हैं उसी प्रकार द्रोणाचार्य भी जानते थे। जिनके के प्रसाद से पाण्डुनन्दन अर्जुन ने दुष्कर कर्म किया है, वे ही आचार्य यहां मरे पड़े हैं। उन अस्त्रों ने इनकी रक्षा नहीं की। 📜 जिनको आगे रखकर कौरव पाण्डवों को ललकारा करते थे, वे ही शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य शस्त्रों क्षत-विक्षत हो गये हैं। शत्रुओं की सेना को दग्ध करते समय जिनकी गति अग्नि के समान होती थी, वे ही वुझी हुई लपटों वाली आग के समान मरकर पृथ्वी पर पड़े हैं। 📜 माधव। युद्ध में मारे जाने पर भी द्राणाचार्य के धनुष के साथ जुड़ी हुई मुट्ठी ढीली नहीं हुई है। दस्ताना भी ज्यों का त्यों दिखाई देता है, मानो वह जीवित पुरुष के हाथों हो। केशव। जैसे पूर्व काल से ही प्रजापति ब्रम्ह से वेद कभी अलग नहीं हुए, उसी प्रकार जिन शूरवीर द्रोर्ण से चारों वेद और सम्पूर्ण अस्त्र-षस्त्र कभी दूर नहीं हुए, 📜 उन्हीं के बन्दीजनों के द्वारा वन्दित इन दोनों सुन्दर एवं वन्दनीय चरणारविन्दों को जिनकी सैकड़ों षिष्य पूजा कर चुके हैं, गीदड़ घसीट रहे हैं। मधुसूदन। द्रुपदपुत्र के द्वारा मारे गये द्रोणाचार्य के पास उनकी पत्नी कृपी बड़े दीनभाव से बैठी है। 📜 दु:ख से उसकी चेतना लुप्त सी हो गयी है। देखो, कृपी केष खोले नीचे मूंह किये राती हुई अपने मारे गये पति शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य की उपासना पर रही है। केशव। ध्रष्टद्युम्न ने अपने बाणों से जिन आचार्य द्रोर्ण का कवच छिन्न-भिन्न कर दिया है, उन्हीं के पास युद्धस्थल में वह जटाधारिणी ब्रम्हचारिणी कृपी वैठी हुई है। 📜 शोक से दीन और आतुर हुई यश स्वनी सुकुमारी कृपी समर में मारे गये पति देव का प्रेत कर्म करने की चेष्टा कर रही है। ©N S Yadav GoldMine #SunSet परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। पढ़िए महाभारत !! 📒📒महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 19-37 {