Nojoto: Largest Storytelling Platform

New कविता इयत्ता 3री Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about कविता इयत्ता 3री from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos.

    PopularLatestVideo
e80f9be01aa69180a76cde03489ae439

Brajesh Kumar Bebak

बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे
सत्ता से सवाल कौन रहे
राष्ट्र द्रोही का तमगा कौन ले
जिन्हें इतिहास कुछ पता नही
उन्हें इतिहास का गुरु बनने से
कौन रोके
बस सहन करने की आदत डाल लो
गुलामी की भी एक न एक दिन 
आदत हो ही जाएगी ।।
                            --- बृजेश कुमार

©Brajesh Kumar Bebak #कविता #विचार #सत्ता 

#flowers

कविता विचार सत्ता flowers

15 Love

1428403fd04c8ea335a9c8352b2cc7a7

SHIVANI

#प्यार भरी कविता#

#प्यार भरी कविता# #लव

915 Views

4104095d3fefb1a7493639b2271f958d

Tanendra Singh Khirjan

 संघर्ष भरी कविता

संघर्ष भरी कविता #nojotophoto

7 Love

fe2750f78a92ffdfc6f5214f84729132

HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

10 Love

fe2750f78a92ffdfc6f5214f84729132

HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है।

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

fe2750f78a92ffdfc6f5214f84729132

HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है।

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

fe2750f78a92ffdfc6f5214f84729132

HP

जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

7 Love

fe2750f78a92ffdfc6f5214f84729132

HP

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

10 Love

fe2750f78a92ffdfc6f5214f84729132

HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

9 Love

fe2750f78a92ffdfc6f5214f84729132

HP

जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

fe2750f78a92ffdfc6f5214f84729132

HP

छान्दोग्योपनिषद के सातवें अध्याय के 26वें खण्ड में बताया गया है
‘आत्मा से प्राण, आत्मा से आशा, आत्मा से स्मृति, आत्मा से आकाश, आत्मा से तेज, आत्मा से जल, आत्मा से आविर्भाव और तिरोभाव, आत्मा से अन्न, आत्मा से बल, आत्मा से विज्ञान, आत्मा से ध्यान, आत्मा से चित्त; आत्मा से संकल्प, आत्मा से मन, आत्मा से वाक्, आत्मा से नाम, आत्मा से मन्त्र, आत्मा से कर्म और यह सम्पूर्ण चेतन जगत ही आत्मा से आच्छादित है। इस आत्म-तत्व का ज्ञान प्राप्त कर लेने वाले मनुष्य जीवन-मरण के बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं।’ आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

6 Love

fe2750f78a92ffdfc6f5214f84729132

HP

कुछ दिन पूर्व इस बात को लेकर वैज्ञानिकों में काफी लम्बी चर्चा चली थी और आत्मा के अस्तित्व सम्बन्धी उनके मत लिए गए थे जिन्हें सामूहिक रूप से ‘दो ग्रेट डिजाइन’ नामक पुस्तक में प्रकाशित किया गया है। पुस्तक में उपसंहार करते हुए लिखा गया है—

‘यह संसार कोई आकस्मिक घटना नहीं लगता है। इसके पीछे कोई सुनियोजित विधान चल रहा है। एक मस्तिष्क, एक चेतन-शक्ति काम कर रही है। अपनी-अपनी भाषा में उसका नाम चाहे कुछ रख लिया जाय पर वह मनुष्य की आत्मा ही है।’

इसके अतिरिक्त जे. एन. थामसन, जे. बी. एम. हेल्डन, पी. गोइडेस, आर्थर एच. काम्पटन, सर जेम्स जोन्स आदि वैज्ञानिकों ने भी आत्मा के अस्तित्व में सहमति प्रकट की है। उसके प्रत्यक्ष ज्ञान के साधनों का पाश्चात्य देशों में भले ही अभाव हो, पर विचार और बुद्धिशील मनुष्य के लिए यह अनुभव करना कठिन नहीं है कि यह जगत केवल वैज्ञानिक तथ्यों तक सीमित नहीं वरन् उन्हें नियन्त्रित करने वाली कोई चेतना भी अवश्य काम कर रही है और उसे जानना मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है।

शास्त्रीय कथानकों के माध्यम से आत्मा के अस्तित्व, गुणों और क्रियाओं के सम्बन्ध में बड़ी ही ज्ञानपूर्ण चर्चायें की गई हैं। ऐसे कथानकों में नारद, ध्रुव आदि के वार्तालाप के साथ राजा चित्रकेतु की कथा भी बड़ी शिक्षाप्रद और वास्तविक तथ्यों से ओत प्रोत है।

चित्रकेतु एक राजा था जिसे महर्षि अंगिरा की कृपा से एक सन्तान प्राप्त हुई थी। बच्चा अभी किशोर ही था कि उसकी मृत्यु हो गई। राजा पुत्र-वियोग से बड़ा व्याकुल हुआ। अन्त में ऋषिदेव उपस्थित हुए और उन्होंने दिवंगत आत्मा को बुलाकर शोकातुर राजा से वार्तालाप कराया। पिता ने पुत्र से लौटने के लिए कहा तो उसने जवाब दिया, ‘ए जीव! मैं न तेरा पुत्र हूँ और न तू मेरा पिता है। हम सब जीव कर्मानुसार भ्रमण कर रहे हैं। तू अपनी आत्मा को पहचान। हे राजन् ! इसी से तू साँसारिक संतापों से छुटकारा पा सकता है।’ अपने पुत्र के इस उपदेश से राजा आश्वस्त हुआ और शेष जीवन उसने आत्म-कल्याण की साधना में लगाया। राजा चित्रकेतु अन्त में आत्म-ज्ञान प्राप्त कर जीवन-मुक्त हो गया।

यह आत्मा अनेक योनियों में भ्रमण करती हुई मनुष्य जीवन में आती है। ऐसा संयोग उसे सदैव नहीं मिलता। शास्त्रीय अथवा विचार की भाषा में इतना तो निश्चय ही कहा जा सकता है कि जीवों की अपेक्षा मनुष्य को जो श्रेष्ठताएँ उपलब्ध है वे किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही हैं जो आत्मज्ञान या अपने आपको जानना ही हो सकता है, आत्मज्ञान ही मनुष्य-जीवन का लक्ष्य है जिससे वह जीवभाव से मुक्त होकर ईश्वरीय भाव में लीन हो जाता है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

9 Love

a3c96a2ce70278aaedf80242ba2bd3d9

Vickram

,,,,,मेंरी कविता,,,,

में अपने हाथों से तुम्हें तैयार करना चाहता हूं ।
और चाहता हूं कि कोई कसर बांकी ना रहे ।
कयी बार हर शब्द बदल के भी में देख चुका ।
में मेरी कल्पना तुम मे डूब जाना चाहता हूं ।
और सोचता हूं कि जब भी कोई तुम से मिले।
लगे उसे युं कि मैं खुद मिल चुका हूं उसे ।
कयी बार लुत्फ ले चुका खुद पड़ के तुम्हें ।
अब तुम्हें किसी और के होंठों से सुनना चाहता
 हूं।

जिसे मिलाना अभी बाकी है ज़माने से
,,,,,वो खूबसूरत रचना हो तुम,,,,

©Vickram
  मरी *कविता* हो *तुम,,######@@@@@@@

मरी *कविता* हो *तुम,,######@@@@@@@

206 Views

8751a6a3fe09123f41bf90366f25dde9

Kausar Khan

प्यार भरी रसीली कविता

प्यार भरी रसीली कविता

66 Views

40a2bc61297807914d6976c52528fa84

#Seema.k*_-sailent_*write@

 हरी भरी हरियाली

हरी भरी हरियाली #कविता #nojotophoto

19 Love

56b9d1c3d9fd1551678397f04d8884a3

maher singaniya

हरी-भरी दुनिया हो गयी है बेरंगी,
हर राह पर मिल जाते है फिरंगी.

©maher singaniya हरी-भरी दुनिया....

हरी-भरी दुनिया....

23 Love

285d87d9c949b60d9c160ec551870cee

Hitesh Pandey

सत्ता में सभी हैं नागराज,
बने फिर रहे हैं धर्मराज,
वादे किए थे की लायेंगे रामराज,
अभी 'मन की बात' करने में व्यस्त हैं देश के महाराज,
चुनाव के समय याद आते हैं इन्हें याद काशी, प्रयागराज,
सत्ता में सभी हैं नागराज।

©Hitesh Pandey सत्ता में सभी हैं नागराज। 
#कविता

सत्ता में सभी हैं नागराज। #कविता

2 Love

8349db8c6f4b24b9ed91c2a061fe412e

sunny pal

हरी भरी जवानी में
सूखे पत्तों की तरह झड़ रहे हैं
ज़माने से हमें कोई शिक़ायत नहीं
बस तेरे दिए जख्मों से लड़ रहे हैं

©sunny pal हरी भरी जवानी

#leaf

हरी भरी जवानी #leaf #शायरी

26 Love

16c4a4dce354ffe7298e4656409fd1a9

govind bundelkhandi

महाराष्ट्र 

वाह री सत्ता 
क्या क्या खेल दिखाती सत्ता
 
अपनों से बैर कराती सत्ता 
बैरी से मेल कराती सत्ता

सिध्दांतों की बलि चढ़वाती सत्ता 
अपनों को वनवास कराती सत्ता 

जनता के हित भुलवाती सत्ता 
दुशमन की डेहरी लंघवाती सत्ता वाह री सत्ता

वाह री सत्ता

6 Love

80a6fd252f3652868706cef7eb16dc7d

river_of_thoughts

Life is too short.. चल पड़ूं यूं ही
या दिल-वो-कदम रहूं थाम 
कि होगी बहुत जल्दबाजी अभी
या दम-ए-बाद-ए-सबा 
है बाक़ी अब भी ... ?

साया-ए-जिस्म ही जानता है
साया-ए-जिस्म को ही है खबर
जेहन-वो-जिगर में मेरे
बसा तू किस कदर।
@manas_pratyay #Life@shadow #कविताई #कविता #कवितांश

Life@shadow कविताई कविता कवितांश

6 Love

e640eb34e4a04d6c417dced6f2e65760

Neelima Thakur

एक शाम थी ढली,  रोशन थी गली... बचपन के वो दिन,मुस्कुराती वो कली,
अब बिसरे है, सब क्यूंकि वो परी अब नही इस आँगन,
वो चली गयी किसी ओर की गली,बस सुनी पड़ी है ये गली वो परी#neelima#हिंदी लेखक#कविता#

वो परीneelimaहिंदी लेखककविता#

6 Love

9cc3ffc1ba976ae20847894393cd99c2

kaleshwar prasad

बहुत ही प्यार भरी कविता,

#krishna_flute

बहुत ही प्यार भरी कविता, #krishna_flute

27 Views

018669f4c387a885589cd40bf7699cf5

Mukesh Anand

शगुनों से भरी कविता
~ शिवम

#merekanha

शगुनों से भरी कविता ~ शिवम #merekanha

65 Views

c1169441702f06b4e68ae41e8ecc0681

N K

#IndiaFightsCorona जो दर्द की वजह है,
वही मरहम क्यूँ है,
खामोशी, बेचैनी और ये पागलपन,
दिल मे यूँ दफन क्यूँ है !

कमी सी है तेरे ना होने से,
ज़ेहन को तेरी फिक्र सी क्यूँ है,
कहते हो तुम धडकनों में बसते हो,
फिर ज़िंदगी इतनी सुनी-सुनी क्यूँ है॥

©N K दर्द भरी कविता 💔💔

#IndiaFightsCorona

दर्द भरी कविता 💔💔 #IndiaFightsCorona

6 Love

2695c48b30069df54bca7c3293b71aa7

SANDIP GARKAR

पाठ 1 इयत्ता चौथी

पाठ 1 इयत्ता चौथी

30 Views

16c4a4dce354ffe7298e4656409fd1a9

govind bundelkhandi

महाराष्ट्र 

वाह री सत्ता 
क्या क्या खेल दिखाती सत्ता 
अपनों से बैर कराती सत्ता 
बैरी से मेल कराती सत्ता

सिध्दांतों की बलि चढ़वाती सत्ता 
अपनों को वनवास कराती सत्ता 

जनता के हित भुलवाती सत्ता 
दुशमन की डेहरी लंघवाती सत्ता 
वाह री सत्ता वाह री सत्ता 2

वाह री सत्ता 2

5 Love

32a79b16cb3b934338d6b24c0a18a0e0

BANDHETIYA OFFICIAL

परी होने को परे होना सबसे,
जरूरी तो नहीं खुद खोना सबसे,
सबसे मिलके रहो,न सबसे मुमकिन,
इक तो हो वो इक तुझसा ही वो गिन,
वो इक मुझको ही तुम मान लो,
मिल लो, मेरा ही अरमान लो,
लाल परी,हरी झंडी है,
पीली भी खरी झंडी है,
धीरे - धीरे आन मिलो,
लाल-पीला होना न,लो।

©BANDHETIYA OFFICIAL #लाल परी हरी झंडी है।

#लाल परी हरी झंडी है। #लव

9 Love

ea0a811ec4243fcd5d2e0a061836fe48

Ganesh Shewale

इयत्ता3

इयत्ता3

70 Views

loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile