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राजेश कुशवाहा 'राज'
!!मलकिनिया के पापड़!! - भाग-1 आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल। हर बातिनि में दिनभर उ, चलति हां आपन चाल।। बइठ रहन आफिस में अपने,आबा उनखर काॅल। कहिन किराना औ तरकारी, लइ आबा तत्काल। हमहूं आसउं चिप्स बनायब, लइअउब आलू लाल। कलर त बिल्कुल भूलब न, पीला हरा औ लाल।। एतना कहिके काटि दिहिन, फोनबा उ तत्काल। का कही फेर आपन हालत, जाने हर माई के लाल।। फेर हमहूं चलि दिहन बंजारे, फटफटिया लै तत्काल। सगल बजारे खुब ढूंढन पै, आलू मिली न लाल।। फेर त हमहूं फोन लगायन, कहन बजारे के हाल। तब बताइन कि आलू लई लेई, उज्जरि होई या लाल।। एतने तक त ठीक रहा पै, आगे बढ़ी बवाल। जब कहिन की बिल्कुल भूलब न, पीला हरा औ लाल।। आगे कहिन बनाउब पापड़, जीरा सौंफ सब डाल। दाना साबुन वाला लेआउब, नही घर में गली न दाल।। एतना कहिके काटि दिहिन, फेर फोनबा उ तत्काल। तब हमहूं सामान लिहन, औ घर पहुंचन तत्काल।। नाश्ता पानी दिहिन नही, पहिलेन करिन सवाल। लइ आयन की नही बताई, साबुन आलू औ रंग लाल।। हमहूं रहन मनइ मन गुस्सा, चेहरा पड़ा रहा सब लाल। दिहन सामान पटकि मूड़े म, फेर भगन दूर तत्काल।। आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल। आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल।। ----कुशवाहाजी ©राजेश कुशवाहा !!मलकिनिया के पापड़!! आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल। हर बातिनि में दिनभर उ, चलति हां आपन चाल।। बइठ रहन आफिस में अपने,आबा उनखर काॅल।
ashish gupta
नवरात्र के शुभ घड़ी, हम माई के मनाइब हो एक दाई हमहू वष्णो देवी दर्शन कर आइब हो हे माई हमके बुला ल दर्शन के खातिर तोहर एक बुलावा पर हम दौड़ते चल आईब हो ©ashish gupta #navratri नवरात्र के शुभ घड़ी, हम माई के मनाइब हो एक दाई हमहू वष्णो देवी दर्शन कर आइब हो हे माई हमके बुला ल दर्शन के खातिर तोहर एक बुलावा
राजेश कुशवाहा 'राज'
--------- मलकिनिया के पापड़------- -------------भाग-2--------------- ---------बघेली रचना क्रमांक-3------ आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल। हर बातिनि में दिनभर उ, चलति हां आपन चाल।। आगे का सुनि लेई हाल, भगन दूर वहां से तत्काल। सोचन पहिले जान बचाई, नही त मचि जई तुरत बवाल।। पै जब उ सामान दिखिन, तब आबा हमरउ खयाल। नाश्ता पानी सब लइ आईं, फेर मत पूछी हाल।। बड़े प्रेम से उ बोलिन, पूछिन एक ठे सवाल । पहिले पापड़ कि चिप्स बनाई, चलिन उ फेर से चाल।। हमहूं त कम नही रहन, समझि गयन तत्काल। सोचन पुनि कुछ बाति बनाई, नही त मची बवाल।। कहन दुनउ क साथे बनाबा, काहे रखबा झंझट पाल। सुखई न त होई बेकार, मौसम बदलत है तत्काल।। हम काटीथे चिप्स लिआबा,पापड़ बनाबा जीरा डाल। दुनहू जने करीथे काम, काहे रखबा झंझट पाल।। फेर दुनहू जन चिप्स बनायन, पापड़ जीरा डाल। रंग डारि रंग-रोगन किन्हन, पीला हरा औ लाल।। "राज" कहिन की राज न राखा, न राखा कउनौ मलाल। इ पावन रिश्ता है आपन, एका रखा संभाल।। नोक-झोक औ राग विराग, सदा हबै इह काल। हमरन क इ जोड़ी राखा, ऐसई गौरा औ महाकाल।। इ कविता है हसै के खातिर, समझी न कउनौ जाल। बस मलकिन के प्यार छुपा है, समझी न कउनौ चाल।। अपनऊ पंचे रखी बनाइके, आपन प्रेम सम्भाल। जउने एक दूसरे के दिल म, रहइ न कउनौ सवाल।। आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल।। आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल। -------कुशवाहाजी ©राजेश कुशवाहा --------- मलकिनिया के पापड़------- -------------भाग-2--------------- ---------बघेली रचना क्रमांक-3------ आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के
एक इबादत
भोर के अरघ करिहा स्वीकार ए सुरुज देवता पूरा करि छठ की बरातिया ,देहै सबही के खूबई आशीष ए सुरूज देवता...!! छठ कोई त्योहार मात्र नही है छठ एक भावना है जो करोडो़ लोगों के भीतर एक अलग उत्साह से नवचेतना ,उम्मीद को जाग्रत करती है, छठ करै एतनउ आसान ना
✍ अमितेश निषाद
अब हमहू बनब नेता जी भौकाल रही खूब टाइट जी खद्दर पहिर के खूब रोब छाड़ब कुछ लोगवा सहमल कुछ रही डेराइल जी पाँच साल त खूब चांदी काटब कई पुस्त के जिनगी देहब बनाई जी आगे-पीछे नवका लवंडी न के त रेलम रेला हमसे बड़का कुल कहिये नमस्कार भाई जी कुछ काम पड़ जाई अगर केहू के अरे आव सगरो कमवा हमहि कराईब जी एहि में त खूब कमाई होई अरे भाई एतना में कइसे होई जी आई चुनाव फिर त नारा लागी और कहब हम ही क्रप्सन हटाइब जी सबके गोड़ ध के गिर जाइब हम अरे हम नेता ना हई राउर बेटा जी ✍️ अमितेश निषाद ( सुमीत ) ०६/०६/२०१९ #NojotoQuote अब हमहू बनब नेता जी भौकाल रही खूब टाइट जी खद्दर पहिर के खूब रोब छाड़ब कुछ लोगवा सहमल कुछ रही डेराइल जी पाँच साल त खूब चांदी काटब कई पुस्त क
vinay vishwasi
मानऽ ए भईया मानऽ काहाना हामार। नाया जुग में चलऽ अब शहर बाजार। गाँव में होत बाटे देखऽ अब दुर्गतिया। शहर में चमकत बाटे बिजुली के बतिया। होतही साँझ घारवा हो जाता आन्हार। मानऽ ए भईया मानऽ काहाना हामार। नाया जुग में चलऽ अब शहर बाजार। सुनऽ ए बाबू सुनऽ बतिया हामार। बुझऽ ना तूँ अब हमके एतनो गावांर। हमहूँ जानिलाँ बाबू शहरिया के बतिया। डी एम कलेक्टर बाने हमरो संघतिया। गऊँवो में अब लउकत बाटे बिजुली के तार। सुनऽ ए बाबू सुनऽ बतिया हामार। बुझऽ ना तूँ अब हमके एतनो गावांर। शहरे में बाटे भईया सब सुख के साधानावा। खुश होइ जाइ तहरो देखि के मानावा। छोड़ि के सब चलऽ आपन घर- बार। मानऽ ए भईया मानऽ काहाना हामार। नाया जुग में चलऽ अब शहर बाजार। अपनो तऽ बाटे बाबू बड़ी खेती-बरिया। कइसे सब छोड़िके जइबऽ बोलऽ शहरिया। माई बाप होइ जइहें अपनो लाचार। सुनऽ ए बाबू सुनऽ बतिया हामार। बुझऽ ना तूँ अब हमके एतनो गावांर। नाहीं छुटि पइहें भईया बाप महतरिया। भलहीं छुटि जाव ई सपना शहरिया। मिटे नाहीं देइब हम आपन संसकार। मानि हम गइनी अब बतिया तोहार। #भोजपुरी #गाँवशहर #विश्वासी मानऽ ए भईया मानऽ काहाना हामार। नाया जुग में चलऽ अब शहर बाजार। गाँव में होत बाटे देखऽ अब दुर्गतिया। शहर में चमकत
Arsh
बुधुआ गँवई माहौल से आती एक कहानी (वार्तालाप) 7वीं में फेल हो जाने के बाद उसने, किताबों को तिलांजलि दे दी और छोटी सी हीं सही, पर अपनी गृहस्थी की गाड़ी को खींच सकने लायक चाय की एक टपरी खोल
Ghumnam Gautam
दिल पराली-सा जला है इश्क़ में जिस्म दिल्ली हो गया है आजकल घपोचन जी कहिन―७ """"”""”""""""" (घपोचन जी 'ठाकुर जी' के साथ 'इंग्लिश' लेते हुए) 'हे भगवान! हे भगवान! देश का दुश्मन सिर्फ़ किसान।' 'अरे घपोचन