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Prabhakar Prajapati
लेखक: प्रभाकर प्रजापति वो MSc की आस थी, बगल की कलास थी, नम्बर था छः जिसका, जो सीढ़ी के पास थी!! कॉलेज में आते ही जिसे मैं याद करता था इधर से जाऊँ की उधर से जाऊँ... मैं ये बात करता था!!! कुछ तो था...जो येबात इतनी ख़ास थी.. कोई और वजह नही थी...बस! ये आप लोगों की क्लास थी। (क्लास में आने के बाद) (1) #आकाश भाई को देख ख़ुशी, मेरे होठों से जो छलक जाती, दिल की, दरिया की, गहराई में...वो तो दूर तलक जाती..!!! जैसे-जैसे वक्त मुझे इन सबसे दूर ले जायेगा.. सच कहता हूँ यारों मुझको...वो दिन बड़ा सताएगा। (2) वो हार-जीत की हालातों में, ढ़लना याद आएगा, तान के सीना #नेता जी का, चलना याद आएगा। याद आएंगे वो लम्हें, जो लम्हे संग गुजारे हैं.. जो #शुभम_अमित_आशीष_DVD_आवेस जैसे प्यारे हैं... वो नमकीन मिलाकर लायी में, संग खाना याद आएगा... #अखिलेश भाई के रूम पे आना...जाना याद आएगा..!!! (3) अजनबी से थे जो कभी....आज मेरे नबी बन गए, पहले बने दोस्त...अब ज़िन्दगी बन गए!!! वज़ूद इनका जब-जब मेरे एहसासों को जगायेगा... सच्ची कह रहा हूँ....ये लम्हा बहुत याद आएगा..!! (4) दोसती का ऐसा तराना याद आएगा... #पूजा_नित्या और #करिश्मा का दोसताना याद आएगा। याद आएगा #सोनम का हर पल गम्भीर ही रहना, और innocent सी #ज़ेहरा का मुस्कुराना याद आएगा। (5) क्लासरूम में जिनके रहने से ही रौनक आई है... #हमज़ा के संग में #ज़िसान और... अपने #अकरम भाई हैं।।। जो आप सभी लोगों में से, कोई अपना दूर जायेगा... सच कहता हूँ यारों मुझको...वो दिन बड़ा सताएगा!!! (आखिरी चार लाईन) "आज मैं हूँ...कल चला जाऊँगा... आप जैसे दोस्तों को मैं कहाँ पाऊँगा? यूँ ही अपने दिल में ज़िंदा मेरा ऐहसास रखना... चाहे सबको भूल जाना.... पर मुझे याद रखना!! -आपका #प्रभाकर_प्रजापति [Msc. finale year Maths ©Prabhakar Prajapati वो MSc की आस थी, बगल की कलास थी, नम्बर था छः जिसका, जो सीढ़ी के पास थी!! कॉलेज में आते ही जिसे मैं याद करता था इधर से जाऊँ की उधर से जाऊँ..
Prabhakar Prajapati
लेखक: प्रभाकर प्रजापति वो MSc की आस थी, बगल की कलास थी, नम्बर था छः जिसका, जो सीढ़ी के पास थी!! कॉलेज में आते ही जिसे मैं याद करता था इधर से जाऊँ की उधर से जाऊँ... मैं ये बात करता था!!! कुछ तो था...जो येबात इतनी ख़ास थी.. कोई और वजह नही थी...बस! ये आप लोगों की क्लास थी। (क्लास में आने के बाद) (1) आकाश भाई को देख ख़ुशी, मेरे होठों से जो छलक जाती, दिल की, दरिया की, गहराई में...वो तो दूर तलक जाती..!!! जैसे-जैसे वक्त मुझे इन सबसे दूर ले जायेगा.. सच कहता हूँ यारों मुझको...वो दिन बड़ा सताएगा। (2) वो हार-जीत की हालातों में, ढ़लना याद आएगा, तान के सीना नेता जी का, चलना याद आएगा। याद आएंगे वो लम्हें, जो लम्हे संग गुजारे हैं.. जो शुभम,अमित,आशीष, DVD, आवेस जैसे प्यारे हैं... वो नमकीन मिलाकर लायी में, संग खाना याद आएगा... अखिलेश भाई के रूम पे आना...जाना याद आएगा..!!! (3) अजनबी से थे जो कभी....आज मेरे नबी बन गए, पहले बने दोस्त...अब ज़िन्दगी बन गए!!! वज़ूद इनका जब-जब मेरे एहसासों को जगायेगा... सच्ची कह रहा हूँ....ये लम्हा बहुत याद आएगा..!! (4) दोसती का ऐसा तराना याद आएगा... पूजा, नित्या और करिश्मा का दोसताना याद आएगा। याद आएगा सोनम का हर पल गम्भीर ही रहना, और innocent सी ज़ेहरा का मुस्कुराना याद आएगा। (5) क्लासरूम में जिनके रहने से ही रौनक आई है... हमज़ा के संग में ज़िसान और... अपने अकरम भाई हैं।।। जो आप सभी लोगों में से, कोई अपना दूर जायेगा... सच कहता हूँ यारों मुझको...वो दिन बड़ा सताएगा!!! (आखिरी चार लाईन) "आज मैं हूँ...कल चला जाऊँगा... आप जैसे दोस्तों को मैं कहाँ पाऊँगा? यूँ ही अपने दिल में ज़िंदा मेरा ऐहसास रखना... चाहे सबको भूल जाना.... पर मुझे याद रखना!! -आपका प्रभाकर प्रजापति [Msc. finale year Maths] ©प्रभाकर प्रजापति लेखक: प्रभाकर प्रजापति वो MSc की आस थी, बगल की कलास थी, नम्बर था छः जिसका, जो सीढ़ी के पास थी!! कॉलेज में आते ही जिसे मैं याद करता था इधर
vishnu thore
जगण्याचा हुरूप टिकून राहतो... -विष्णू थोरे,चांदवड. ९३२५१९७७८१ रिकाम्या हातांना काम हवं. हात कल
Raghvinder Saini
प्यार फौजी का भाग 1 लेखक: राघवेंद्र सैनी मैं नहीं जानता कि यह मन की प्रवंचना थी. पर राजी इसे प्रवंचना ही कहती है. प्रवंचना का दूस