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रजनीश "स्वच्छंद"
बांट ना पाया।। मुहब्बत तो चुरा लाया मगर मैं बांट ना पाया, कदमों में पड़ी खुशियां मगर मैं छांट ना पाया। कभी सच मे उलझता था कभी झूठा बना फिरत
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
भाँति-भाँति के पुष्प से , महक रहा है बाग । फ़ागुन के दिन आ गये , कोयल गाये राग ।। मन्द-मन्द चलने लगी , शीतल आज बयार । सबके मन को मोह ले , देखो यही बहार ।। करें प्रकृति से हम सभी , अब अपनी पहचान । खट्टे मीठे बैर से , सब लगते इंसान ।। भाँति-भाँति के पुष्प हैं , भाँति-भाँति के नाम । बिना स्वार्थ सब कार्य हों , देव शरण हो धाम ।। फ़ागुन के फल देख लो , खट्टे मीठे बैर । कहते हैं मिलकर रहो , मत कर अपने गैर ।। मन आनंदित हो रहा , अब पीपल की छाँव । फ़ागुन का आनंद भी , मिलता जाकर गाँव ।। भाभी साली पर लिखे , सब फ़ागुन के गीत । लाल गुलाबी रंग में , भूल गये मनमीत ।। जीजा जी जब हो खड़े , कुर्ता धोती साट । चुपके से फिर रंग को , रख देना तुम खाट ।। २२/०२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR भाँति-भाँति के पुष्प से , महक रहा है बाग । फ़ागुन के दिन आ गये , कोयल गाये राग ।। मन्द-मन्द चलने लगी , शीतल आज बयार । सबके मन को मोह ले , द
Shivank Shyamal
मैं दुआ पढूं तो तेरा ज़िक्र हो। मेरे इश्क़ में भी तेरी फिक्र हो। मैं तुम्हें याद करूं तो आंह भरूं। गर तुमसे मिलूं तो भांह भरूं। तेरी उंगलियों में मेरी उंगलियां हो। तेरे गालों पर, बस मेरी झलकियां हो। तेरी नज़र झुके, तो मैं चूम लूं। नज़र मिले, तो बस झूम लूं। एक हाथ तेरी कमर पे रख। ख़ुद की ओर मैं खींच लूं। सच है या फिर झूठ ये, इक बार मैं आंखें मींच लूं। जुल्फों को मैं, तेरी छेड़ कर। कान पर बस, साट दूं। गर चूमते वक्त तंग करे, तो, प्यार से, मैं उन्हें डांट दूं। मैं मेरे कांपते होंठ को बस, तेरे होंठ का, स्पर्श दे दूं। फ़िर जो आंख बंद, तेरी हुई तो, इस इश्क़ को तेरा नाम दे दूं। कुछ वक्त तक तेरे होंठ पर मैं, जिंदगी का सार ले लूं। छोड़ कर बरसों की चिंता, मैं सारा तेरा प्यार ले लूं। मेरे कांपते होंठों को बस, मैं पता तेरे होंठों का दे दूं। और तेरी उलझनों का बोझ मैं, चुटकियों में तुझसे ले लूं।। ये चंद पल, न कभी भार हो। मेरा इश्क़ ही, तेरा हार हो।। और जब कभी तू सोचे मुझे, बस मेरा इश्क़ ही, स्वीकार हो। तेरी तिश्नगी शबनम सी हो, और तलब मेरी इक खुमार हो। मेरी बंदगी पर तुझे नाज़ हो, तेरे इश्क़ का, मुझे खुमार हो। मेरी नज़्म का तू उनवान हो, मेरी रूह पर तेरा नाम हो। तेरी मांग गर देखे कोई, बस वो ही मेरी पहचान हो।। ©Shivank Shyamal मैं दुआ पढूं तो तेरा ज़िक्र हो। मेरे इश्क़ में भी तेरी फिक्र हो। मैं तुम्हें याद करूं तो आंह भरूं। गर तुमसे मिलूं तो भांह भरूं। तेरी उंगलिय
Shivank Shyamal
मैं दुआ पढूं तो तेरा ज़िक्र हो। मेरे इश्क़ में भी तेरी फिक्र हो। मैं तुम्हें याद करूं तो आंह भरूं। गर तुमसे मिलूं तो भांह भरूं। तेरी उंगलियों में मेरी उंगलियां हो। तेरे गालों पर, बस मेरी झलकियां हो। तेरी नज़र झुके, तो मैं चूम लूं। नज़र मिले, तो बस झूम लूं। एक हाथ तेरी कमर पे रख। ख़ुद की ओर मैं खींच लूं। सच है या फिर झूठ ये, इक बार मैं आंखें मींच लूं। जुल्फों को मैं, तेरी छेड़ कर। कान पर बस, साट दूं। गर चूमते वक्त तंग करे, तो, प्यार से, मैं उन्हें डांट दूं। मैं मेरे कांपते होंठ को बस, तेरे होंठ का, स्पर्श दे दूं। फ़िर जो आंख बंद, तेरी हुई तो, इस इश्क़ को तेरा नाम दे दूं। कुछ वक्त तक तेरे होंठ पर मैं, जिंदगी का सार ले लूं। छोड़ कर बरसों की चिंता, मैं सारा तेरा प्यार ले लूं। मेरे कांपते होंठों को बस, मैं पता तेरे होंठों का दे दूं। और तेरी उलझनों का बोझ मैं, चुटकियों में तुझसे ले लूं।। ये चंद पल, न कभी भार हो। मेरा इश्क़ ही, तेरा हार हो।। और जब कभी तू सोचे मुझे, बस मेरा इश्क़ ही, स्वीकार हो। तेरी तिश्नगी शबनम सी हो, और तलब मेरी इक खुमार हो। मेरी बंदगी पर तुझे नाज़ हो, तेरे इश्क़ का, मुझे खुमार हो। मेरी नज़्म का तू उनवान हो, मेरी रूह पर तेरा नाम हो। तेरी मांग गर देखे कोई, बस वो ही मेरी पहचान हो।। ©Shivank Shyamal मैं दुआ पढूं तो तेरा ज़िक्र हो। मेरे इश्क़ में भी तेरी फिक्र हो। मैं तुम्हें याद करूं तो आंह भरूं। गर तुमसे मिलूं तो भांह भरूं। तेरी उंगलिय
Shivank Shyamal
नज़्म- ‘इस नज़्म का तू उनवान है’ मैं दुआ पढूं तो तेरा ज़िक्र हो। मेरे इश्क़ में भी तेरी फ़िक्र हो। मैं तुम्हें याद करूं तो आंह भरूं। गर तुमसे मिलूं तो भांह भरूं। तेरी उंगलियों में मेरी उंगलियां हो। तेरे गालों पर, बस मेरी झलकियां हो। तेरी नज़र झुके, तो मैं चूम लूं। नज़र मिले, तो बस झूम लूं। एक हाथ तेरी कमर पे रख। ख़ुद की ओर मैं खींच लूं। सच है या फिर झूठ ये, इक बार मैं आंखें मींच लूं। जुल्फ़ों को मैं, तेरी छेड़ कर। कान पर बस, साट दूं। गर चूमते वक्त तंग करें, तो, प्यार से, मैं उन्हें डांट दूं। मैं मिरे कांपते होंठों को बस, तेरे होंठ का, स्पर्श दे दूं। फ़िर जो आंख, बंद तेरी हुई तो, इस इश्क़ को तेरा नाम दे दूं। कुछ वक्त तक तिरे होंठ पर, मैं ज़िंदगी का सार ले लूं। छोड़ कर बरसों की चिंता, मैं सारा तेरा प्यार ले लूं। तेरे कांपते अधरों को बस, मैं पता मेरे होंठों का दे दूं। और तेरी उलझनों का बोझ मैं, चुटकियों में तुझसे ले लूं।। ये चंद पल, न कभी भार हो। मेरा इश्क़ ही, तेरा हार हो।। और जब कभी तू सोचे मुझे, बस मिरा इश्क़ ही, स्वीकार हो। तेरी तिश्नगी शबनम सी हो, और तलब मिरी इक ख़ुमार हो। मेरी बंदगी पर तुझे नाज़ हो, तेरे इश्क़ का, मुझे ख़ुमार हो। इस नज़्म का तू उनवान है, मिरी रूह पर तिरा नाम है। तेरी मांग गर देखे कोई, बस वही मिरी पहचान है।। ©Shivank Shyamal नज़्म- ‘इस नज़्म का तू उनवान है’ मैं दुआ पढूं तो तेरा ज़िक्र हो। मेरे इश्क़ में भी तेरी फ़िक्र हो। मैं तुम्हें याद करूं तो आंह भरूं। गर तु