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Anokhi
हिंदी दिवस - 14 सितंबर हिंदी शोभे बिंदी से.....! हिन्दुस्तानी शोभे हिंदी से.....! आभा अनोखी # हिंदी दिवस # हिंदी की बिंदी...
@michaeljohnsmashcrackers
बस अकेले ही हैं सफर यहां हर किसी का जमाने में आना जाना तो लगा ही रहता है हर किसी का बस यूं ना मायूस होकर बैठ मेरे दोस्त यूं ना कर अफसोस हर किसी का ©@michaeljohnsmashcrackers @हिंदी #हिंद , #MereKhayaal
Chintoo Choubey
यूँ तो कई बार लोगों से सुना है वो भी कई ज्ञानी लोगों से,किंतु वहां मै चकरा जाता हूँ,जब मेरा साक्षात्कार होता है,कोई ज्ञानी मेरा साक्षात्कार करता है, हर बार बस यही पूछ्ते है कि अङ्रेज़ि आती है? आती है ?आती है, तो क्या बोल पाते हो? मगर आज तक किसी साक्षात्कार करने वाले ज्ञानियों ने यह नहीं पूछा , हिंदी कितनी अच्छी बोल पाते हो? हिंदी सिर्फ हिंदी दिवस के लिए नहीं होती , यह हमें हर जगह लोगों को बताना पड़ेगा, कि हिंदी है हमवतन् है हिन्दुस्तान हमारा , और सभी ज्ञानियों को यह समझना चाहिए कि, साक्षात्कारियों को हमारी पात्रतानुसार कार्य के लिए चुनें, ना कि भाषा के आधार पर । हिंदी भाषियों को खूब शुभकामनाएं। हिंदी और हिंद
Sejal Pandit
जो स्थान है नारी के माथे पर बिंदी का वही स्थान है भाषाओ मे हिंदी का। हिंद, हिंदी, हिंदुस्तान ।
Raj Shekhar Kumar
हिन्दुस्तान को 'हिंदवी' पर,अब कहाँ नाज़ है अब तो हिंदी और उर्दू में,बँट गया समाज है #हिंदी#उर्दू#हिंदवी#raaz
Narayan kharad
सत्य वो नहीं होता है, जो बोला जाता है, सत्य वो होता है, जो बोला नहीं जाता है। ©Narayan kharad #हिंदी #हिंदी_कविता #हिंदी_शायरी #हिंद
Narayan kharad
पत्थर भी मिलकर रहें तो उसकी दीवार बनती हैं। ©Narayan kharad #हिंदी #हिंदी_कविता #हिंद #हिंदी_कोट्स_शायरी
Bambhu Kumar (बम्भू)
नेता और उनके पालतू बेटो ने आपके दिमाग के साथ खेलने का काम शुरू कर रखा है। डिजिटल युग में यह भी एक दौर है जब आपके दिमाग में डिजिटल माध्यमों से कूड़ा भरा जा रहा है। अपने दिमाग को कूड़ेदान होने से बचाएं किताबें पढ़ें सही जानकारीे लें सतर्क रहें जागरूक रहें जय हिंद जय हिंदी हिंद का मतलब हिंदुस्तान हिंदी का मतलब हिंदुस्तानी #जय #हिंदी #जय #हिंद
पूर्वार्थ
लाइब्रेरी के प्रांगण में प्रवेश करते ही.. मानों वो असँख्य किताबें,अपनी पलकें बिछाएं.. आपका बेसब्री से इन्तजार कर रही हो। वही पुराने मेज ..वही पुरानी कुर्सियां..वही पुरानी अलमारियां, और उन अलमारियों में पड़ी ..वही पुरानी किताबें...! जिनमे से कइयों को तो.सालों से छुआ तक नही गया है। आज भी अपने पाठक का इंतजार कर रही है। लाइब्रेरी के बीच प्रांगण में..चारदीवारी पर चारो तरफ लगी.. उन महापुरुषों की वो पुरानी तस्वीरेँ.. जो इस लाइब्रेरी के इतिहास को बताने के लिए काफी हैं। हाँ इसमे लगी वो बड़ी टीवी नई तो है.. लेकिन वो कहते है न ,की संगति का असर होता है.. तो वो भी अब पुरानी सी लगती है।तीन खम्बों पर लगे वो तीन पंखे.. जिसे शायद ही किसी ने चलते देखा हो! यहां लगे टेबुल फैन..जिनमे से कुछ नए है तो... कुक आज भी डुग-डुग करके..चलते है..! खैर जो भी हो ..प्राचीनता को थामे.अपनी ये लाइब्रेरी आज भी निरन्तरता और आधुकनिकता..का बोध कराती है। ये कोई प्राचीन बिल्डिंग नही,न ही ये कोई संग्रहालय है! ये तो खुद में एक जीता-जागता संसार है। जिसने भी एक बार इसे महसूस कर लिया, यहां कुछ समय बिता लिया,वो बार बार यहां आना चाहेगा.. शांत, एकांत और एक भीनी सी.खुशबू के साथ. यहाँ का परिवेश आपको सदैव याद आएगा। ©पूर्वार्थ #किताबेंऔरहम #पुस्तकालय