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A.s (आवाज दिल की )
हुस्न वालों के पीछे दीवाने चले आते है शमा के पीछे परवाने चले आते है तुम भी चली आना मेरे जनाजे के पीछे उसमे अपने तो क्या बेगाने भी चले आते है परवानों की महफ़िल
mksmahi
कुछ लोग लगन लेकर निकले, सीने में जलती अग्न लेकर निकले, आज़ादी उनकी बदौलत मिली हैं साथियों, जो सर पर कफ़न लेकर निकले। आजादी के परवानो को सलाम। #azadi #krantikari #mksmahi
Sunil Pande Writer Content Creator
Ali Alvi "Alfaaz"
#Jitendra777
इश्क़ का अंजाम बख़ूबी जानते हैं। परवानों कि फ़ितरत , कहाँ बदलती है। इश्क़ के बिना भी, क्या जीना यारो। जिंदगी उजड़े चमन, सी लगती है। #ishq इश्क़ का अंजाम, बख़ूबी जानते हैं। परवानों कि फ़ितरत , कहाँ बदलती है। इश्क़ के बिना भी, क्या जीना यारो।
Ravi Kumar Panchwal
अल्लाह करे की दुआएँ देते देते दुआएँ ज़ख़्मी हो गई, दुआएँ लेनेवाली दुनियाँ न बदली. दुआ को ज़ख़्मी देख बदल गई बद्ददुआ, पर बद्ददुआ देनेवालों की ज़ुबां न बदली. कहती कुछ करती कुछ है ये दुनिया, बुराई बदल गई, उसकी अदा न बदली. क़समें खाई वादे किए वफ़ादारी ने, आख़री साँस तक बेवफ़ाई की निगाह न बदली. मोहब्बत निभाने को जलते रहे उम्र भर, परवानों को जलाकर भी शमा न बदली. काँटे ही देते हैं ज़िंदगी फूलों को, काँटों बिना फूलों की दास्ताँ न बदली. रविकुमार... ©Ravi Kumar Panchwal दुआएँ देते देते दुआएँ ज़ख़्मी हो गई, दुआएँ लेनेवाली दुनियाँ न बदली. दुआ को ज़ख़्मी देख बदल गई बद्ददुआ, पर बद्ददुआ देनेवालों की ज़ुबां न बदली
Piyush Shukla
आतंकित थे लोग सभी अंग्रेजों वाले बंधन से धरती बेहद विचलित थी चीख पुकार और कृन्दन से उठे वीर तब लाज बचाने भारत माँ के आँचल की आज़ादी की आग जलाई अपने खूँ के ईंधन से मतवालों परवानों के आगे चली नही अंग्रेज़ो की बेबस दिखते थे जैसे जकड़ गया विषधर गर्दन से छटा अंधेरा खुशबू फैली थी कली कली मुस्काई रोम रोम तब सिहर उठा भारत माता के वंदन से भारत माता की जय ।। ©Piyush Shukla स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं 🇮🇳🇮🇳🇮🇳 आतंकित थे लोग सभी अंग्रेजों वाले बंधन से धरती बेहद विचलित थी चीख पुकार और कृन्दन से उठे वीर तब लाज बच
Parvindar Projwal
दिन मेरी मुशीबत के गुजर क्यों नही जाते, सिमटे हुए बैठे हो बिखर क्यों नही जाते।। डर जाते है हम अपने ही साए से हमेशा, हम दुसरो के साए से डर क्यों नही जाते।। मालूम है तुम्हे भी कि दुनिया में कोई किसी का नहीं, फिर क्यों पूछते हो कि घर क्यों नहीं जाते।। दरिया का यह तूफान घड़ी दो घड़ी का है, कुछ देर किनारे पर ठहर क्यों नहीं जाते।। परवानो के जज्बात भी वेसे नही रहे अब, वरना जिधर शमाँ है उधर क्यों नही जाते।। अरे क्यों आप चढ़े है सभी की निगाहों में, सबके दिलों में आप उतर क्यों नही जाते।। दिन मेरी मुशीबत के गुजर क्यों नही जाते, सिमटे हुए बैठे हो बिखर क्यों नही जाते।। डर जाते है हम अपने ही साए से हमेशा, हम दुसरो के साए से डर क्