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Arora PR
ईसा अपनी सलीब अपने कंधो पर लाद कर " महवीर के "केवल्य क्षेत्र "से होते हुए गौतम बुद्ध की "निर्वाणस्थली" तक पहुंच गए हैँ दूर की झाड़ियों से नांनक का "शब्द कीर्तन." गूंज रहा हैँ..... और उ"सके निकट ही. अकबर सम्राट का "दिने इलाही" वाला मंत्र भी धीमे स्वरो मे गुनगुनाया ....जा रहा हैँ..... वहा से चंद कदमो की दुरी पर भगवान श्री राम अपनी "मर्यादा "की टोर्च से अभी भी सीता की खोज मे भटकते हुए दिख रहे हैँ .. जबकि कृष्ण कुरुक्षेत्र मे अपनी बांसुरी की सहायता से महाभारत के युद्ध मे मारे गए वीरों की लाशें गिनते हुए दिख रहे हैँ.... प्रभु ईसा ये सारे दृश्य देख आश्चर्य चकित् हो रहे हैँ ©Arora PR ईसा का आश्चर्य
Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
Jogendra Singh writer
आपके अनुसार Nojoto का पर्यायवाची क्या है Answer in comment section ©Jogendra Singh Rathore 6578 nojoto ka पर्यायवाची #Light
डाॅ राजेश हालुवासिया
हम हारे 'उसे' जिताने के लिए। वो मासूम।। सिमट गई मेरी बाहों मे। अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए ।। आश्चर्य
Parasram Arora
आश्चर्य मखमल जैसा कोमल गुलाब न जाने कैसे खिल गया हैँ थार के मारुस्थल मे रेत के टीले.. ठिठके और एक अभिनव सुगंध गुज़र गई हैँ उन्हे छू कर ©Parasram Arora आश्चर्य
Ashwani Dixit
राहुल अब मंदिर मिलें, मस्जिद राष्ट्र प्रधान। गिरगिट की घिग्घी बंधी, मुंह को आये प्राण।। मुंह आये प्राण, उसका कॉपीराइट चुराया। रंग बदलना आखिर, इंसानों को कैसे आया? कभी तिलक टोपी कभी, जन्मों का नाता। इतना रंग प्रदर्शन तो, हमको भी न आता।। गिरगिट का आश्चर्य #dixitg #IndianPolitics #FakePoliticians 😜🤓
Ganesh Din Pal
😯🤔 कुल्हाड़ी ने लकड़ी से पूछा - तू मेरे अंदर घुसकर अपनों को ही क्यों काटती है ? लकड़ी ने कहा - यही तो विस्मय है यहां अपने लोगों को अपने ही लोग काटते हैं। 🤔😯 जी डी पाल 🌹🙏🌹 ©Ganesh Din Pal आश्चर्य #walkingalone
Parasram Arora
आशचर्य होता है ये देख कर ज़ब ईश्वर की प्रतिमा धूल में भी बन जाती है ज़ब चाँद किसी की ज़ेबा में पड़ा मिलता है ज़ब मछली सागर से उछल कर किसी पेड़ पर जा बैठती है जब उसी पेड़ पर रेंगती हुई गिलहरी सूरज को चबा जाती है या ज़ब एक नाविक अपनी किश्ती की पतवार तूफानों की ओर घुमा देता है ..... जहाँ लहरों का उफनता यौवन ज्वार भाटो को ललचाता है ©Parasram Arora काल्पनिक आश्चर्य.....