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Parm the Life explorer
कुदरत ने जीवन दिया सबको आजादी से जीने के लिए, इंसान ने गुलाम कर लिया सबको अपनी जरूरतों को मिटाने के लिए, कुदरत ने करबट ली गुलामो को आजादी दिलाने के लिए, आजाद इंसान को घरों में कैद कर दिया अपनी बात मनवाने के लिए।। कुदरत बनाम इंसान
नि:शब्द अमित शर्मा
India quotes वो लोग और थे जो मर मिटे वतन पे, आज तो देश प्रेम 26 और 15 तारीख़ का मोहताज़ है जिनके नाती दम भरते है ना देशभक्ति का आजकल ये सीमा विवाद उनके नाना की ही पुरानी ख़ाज है देश के हबीब बनो रक़ीब बहुत बने बैठें है तुम्हारी गंदी राजनीति के कारण जवान शहीद हुए बैठें है निःशब्द अमित शर्मा✍️ #राष्ट्र बनाम राजनिति
Parasram Arora
क्या कहा जाये उस आदमी को .. जिसमे अच्छाई और बुराई दोनों का वजूद मौजूद है ...अच्छाई उसके सपनो को जागरूकता में बदलती है .... जबकि बुराई उसकी जागरूकता को सपनो में तब्दील करने के लिए सदैव तैयार खड़ी रहती है ....... अच्छाई. बनाम . बुराई
Vishal chaubey Agyat
मेरे अंदर का बच्चा " सुबह माँ की थपकी से होती शाम में ही अपनी रात हो लेती माँ का आँचल छांव देता पिता का हाथ सहारा देता दिन और रात सब बेमतलब होते सबका प्यारा दुलारा होता न बेमतलब की चिंता होती न ही कोई जिम्मेदारी होती दादा जी की साइकिल ही अपने लिए बड़ी सवारी होती हालाँकि की अभी बच्चा ही हूँ सिर्फ माँ और पिता के नज़र में लेकिन हमको खबर भी है गुज़र गया बचपन बीते कल में सही भी है समय की सीमा उम्र में आगे बढ़ता जाऊँ जैसा बचपन मैंने जिया वैसा बचपन किसी और को दे पाऊँ " -विशाल चौबे अज्ञात जौनपुर उत्तर प्रदेश बचपन बनाम युवा
Parasram Arora
चिंता फ़िक्र क़ो कितना ही धुँए में उड़ाने की चेष्टा कर ले कोई..... अवसाद...और तनाव से मुक्ति मिल जाना इतना आसान नही सुख के लिये धन् कमाओ तो उस कमाए हुए धन क़ो सुरक्षा देनी पड़ती है.. उसकी फ़िक्र करनी पड़ती है प्रतिभा और अहं पर जरा सी चोट पड़ते ही हमारी जिंदगी तिलमिलाहट से भर जाती है..क्योंकि.हम अपने अनुरागो आसक्तियों के तादातमो में खुद क़ो बुरी तरह जकड़ा हुआ पाते है तनाव क़ो भगाने के लिये हंसने की कितनी भी कोशिश कर ले. तनाव कमहोने का नाम ही नही लेता ©Parasram Arora तनाव बनाम अवसाद
Parasram Arora
best out of the waste...... संसार के समुचित waste (लोभ.. मोह घृणा हिंसा क्रोध ) क़ो जलाकर "सन्यासी " best(प्रेम करुंणा अहिंसा प्रमुदिता ) बनाने में सफल हो जाता है जबकि "सांसारिक " वर्ततियों के लोग ताउम्र वासनाओं और व्रतियों के गुलाम बने रहते है ©Parasram Arora सांसारिक बनाम सन्यासी
Parasram Arora
अनंत यात्रा है ये इसकी कोई मंजिल नही यात्रा ही मंजिल है यात्रा का हर कदम मंजिल हैअगर हम यात्रा के हर कदम कों उसकी परिपूर्णिन्ता में जीये तो फिर कही और मंजिल नही यही है अभी है वर्तमान में है भविष्य में नही वो हमारे बोध में है हमारे बोध की समग्रता में है ©Parasram Arora यात्रा बनाम मंजिल
Parasram Arora
मानव और मानवता को कच्चा चबा जाने वाला अगर शुद्ध शाकाहारी भोजन की आदत वाला प्राणी है तो उसे भी मांसाहारीयो मे क्यों नहीं गिनना चाहिए और अगर एक मांसाहारी व्यक्ति जिसका आचरण और व्यवहार स्नेहसिक्त है ... और जो हर वक़्त दूसरों की भलाई क़े लिए समर्पित है ऐसे व्यक्ति को शुद्ध शाकाहारियों की अग्रिम पंक्ति मे.. बैठने क़े लिए अधिकृत कर दिया जाय तो इसमें क्या बुराई है ©Parasram Arora # शाकाहरी बनाम मांसाहारी