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Shree
मन की हसरत से मन के उर अंकित मन की फितरत... पूछ तबियत-ए-ज़माना बिफर रहा है! मन से मन तक, कल से कल तक, तिनके से त्रिलोक.. मन ही तो एक सहज विचर रहा है! इंसा इंसा को मारे, हिंसा अहिंसा नकारे, सत्ता के मन की मनौती आम जन-गण रोज़ाना भुगत रहा है! धुंआ है, धुंआ-धुंआ ही, दौलत.. काग़ज़ और लोहा, हर कोई अपने आंगन बैठा अपनी छत से टपकता मन टोह रहा है! मन *********** मन की हसरत से मन के उर अंकित मन की फितरत... पूछ तबियत-ए-ज़माना बिफर रहा है! मन से मन तक,
Gopal Lal Bunker
सूरत और सीरत ~~~~~~~~~~ ( चौपाई ) *** जन्म दिया जब मात-पिता ने। सूरत पाई सुंदर सबने।। पुत्र सुता की सूरत पाकर। भरी खुशी से माँ जी भरकर।। ( कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें ) @ गोपाल 'सौम्य सरल' मुख देख सलौना कुल हरसा। यश वैभव का आशिष बरसा।। परिजन सारे गोद झुलाएं। बाल रूप से खेल हँसाएं।। फर्ज निभाया मात-पिता ने। करके सब कुछ बस का अपने।। बड़ा किया फिर पोषण कर कर। वार मनौती सब देवों पर।। कर दूर सभी संकट छाया। पढ़ा लिखा कर योग्य बनाया।। बहा पसीना सीरत डाली। गेह खेत की कर रखवाली।। दूर रखे गुण सारे काले। राम किशन के सदगुण डाले।। कुल दीपक का सार बताया। सद सीरत का मान बढ़ाया।। क्या होती मर्यादा घर की। आन रखे बेटी चौखट की।। पाल सुता सीता सी सूरत। दे डाली गौरव की मूरत।। हो सूरत हम सबकी प्यारी। जैसे हो सद सीरत क्यारी।। बिन सद सीरत सबकी सूरत। होती है शैतानी मूरत।। कहना है अब मात-पिता का। रखना सूरत को कर 'मनका'।। सीरत बिगड़े सूरत बिगड़े। खूब सहोगे सब फिर झगड़े।। @ गोपाल 'सौम्य सरल' [ चौपाई: २४/०५/२०२२ ]~ ~~~~~~~~~~~~~~ सूरत और सीरत ~~~~~~~~~ जन्म दिया जब मात-पिता ने। सूरत पाई सुंदर सबने।।
Preeti Sharma
R.S. Meena
नर और नारी बदलने की रुत है या बदला हुआ जमाना है। नजर जिस तरफ गई, वहीं पर एक फसाना है ।। हो किसी भी जाति का, पहनावे का ढंग अनोखा है, एक जाति 'नर' है तो 'नारी' को मिला अवसर दूजा है। प्रकृति के बनाये नियमों को देने लगे चुनौती, 'नर' बन गया 'नारी' और 'नारी' भी माँगे मनौती। आजाद हवा से निकले, हर पल एक बहाना है । बदलने की रुत है या बदला हुआ जमाना है। घटने की जब बात चली तो, नारी ने अपने कदम बढ़ायें, 'नर' को पहनने दो पुरे वस्त्र, वे तो न्यून से ही काम चलायें। सौन्दर्य तो सौन्दर्य है, नहीं चाहिए इसे कम वस्त्र का दिखावा, मर्यादा में हो जब 'नारी' कभी पार ना पाएँ 'नर' का छलावा। नजरों में गिरने से, खुद ही खुद को बचाना है। बदलने की रुत है या बदला हुआ जमाना है। पाप करे 'नर' और भुगते उसका फल 'नारी' यहाँ, 'नर' की 'साधक' बने तो बने कभी 'बाधक' भारी वहाँ। पुर्ण धवल नहीं दोनों में कोई, है बराबर की भागीदारी, कुपथ पर चलने से रोके, है ये दोनों की निरा जिम्मेदारी। 'नर' और 'नारी' को ही, पथ से कांटो को हटाना है । बदलने की रुत है या बदला हुआ जमाना है। नर और नारी बदलने की रुत है या बदला हुआ जमाना है। नजर जिस तरफ गई, वहीं पर एक फसाना है ।। हो किसी भी जाति का, पहनावे का ढंग अनोखा है, एक जाति
kavi manish mann
इकलौता वारिस कृपया अनुशीर्षक में ज़रूर पढ़े।✍️ 🙏😊 बात उन दिनों की है। जब मैं महज 7 साल का था। माघ का महीना था। पूरे 12 साल बाद ये महाकुंभ आया था। पिताजी मेरे बहुत धर्मपरायण व्यक्ति थे। डुबकी
Arunima Thakur
"किसान की बेटी (सोने की चूडि़याँ)" ( कहानी अनुशीर्षक में पढ़े) किसान की बेटी माँ मेरे जन्मदिन पर नया . . . खाना खाते-खाते मेरे नौ वर्षीय बेटे ने ना जाने कितने सामानों की सूची मुझे पकड