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Manmohan Dheer
क़ैद में न रखो तुम इल्म की रवानी को जो टूट के बह गया वो आलिम हो गया . आलिम
Ash thaughts
के मेरा आलिम था वो शख्स जिसके जाने के बाद हम बीमार रहते है। ©Ash thaughts आलिम
Diwaker Kumar Prashant
हर बार यु ही दस्तक देते हो तुम मेरे दील पर पर ईस बार बाते रहूं की नहीं जिस्म की होंगी प्रशांत #NojotoQuote #रूहानी आसिक
संजय श्रीवास्तव
आदिम युग ********************************************** भीड़ तंत्र अब गुनाह का सजा देने मे देर नही करती, न कोई सुनवाई न कोई जमानत बस अफवाह के बिना पर जान लेने में परहेज नही करती, क्या हुआ वो बेगुनाह है, पर इसके लिये जिम्मेदार हमारी न्याय प्रणाली भी तो तबाह है, हम अपराधी को महिमामंडित कर समाज का इज्जतदार नागरिक बताते हैं, और गाहे बेगाहे उसे भारी मतो से जिताकर संसद में पहुंचाते हैं, आप मत देखिये इन टेसुए बहाने वालों को, ये तो बस टेलीविजन की टी आर पी बढा़ने आते हैं, सब को अपनी बुद्धिमता दिखाने का अवसर मिलता है, तभी तो पुरस्कार वापसी कभी पत्र लिखकर उन्हे चैन मिलता है, हमने आज चांद पर उतरकर अपनी पीठ थपथपायी है, पर किसी अमानवीय मौत पर ये कायनात भी शर्मायी है, भीड़ तंत्र की उत्पत्ति सचमुच डरा देती है, हमें फिर आदिमयुग की सभ्यता में मिला देती है! संजय आदिम युग
Naveen Ojha
मांगे थे दूआऔ मे ये सारे सितारे तुम्हें नजर करने के वास्ते,, हमे क्या पता था चले आएंगे सारे आसीक तुम्हारे हमे फौङने के वास्ते ।।। आसिक तुम्हारे
Ash thaughts
के गए थे दर्दे दिल की दवा लेने। पता लगा यहां तो हमारे आलिम भी बीमार बैठे है। ©Ash thaughts आलिम हमारा #
Vickram
ये दरवाजा अपने बीच का जाने कब खुलेगा मुझे तुम्हे ताकने की बिमारी सी लग गई है तेरी परछाई भी काफी चंचल है तेरी ही तरह,, वो बगीचे के कामों में उलझी तितली सी हो गई है ©Vickram खुल जा सिम सिम,,,
Arun kumar
ख्वाबों को है वो अपनी सुखन में समेटे अपनी दुनिया को अपनी नांव में समेटे साल दर साल वो उसके टूटते घरोंदे कहाः से आते है हिम्मत के पौधें वो होते हैं तैयार एक नई बरसात के बीच वो जो खुद को बचा सपनों डूबा देते है उम्मीदें उनका साथ नहीं नहीं छोड़ती और घर की आश ज़ज्बात नहीं छोड़ती वो अपनी दुनिया को फिर बसायेगा फ़िर से आने वाले साल की बरसात मे जो टूट जाएगा..... #आसाम #बिहार #flood
Parasram Arora
छोटे मकान बड़े हुए है बिमारिया कम हुई हैं उम्र आदमी की बड़ी है सूझ सुविधाये भी जुटी हैँ आदमी ज़मीन से चाँद तक जा पहुंचा है लेकिन भीतर? भीतर हम वही खड़े हैँ जहां आदिम प्रीमिटिव आदमी खड़ा है हम भीतर कही भी नहीं गए हैँ भीतर हम इंच भर भी नहीं हिले भीतर हम वहीं क़े वहीं खड़े है ©Parasram Arora प्रीमिटिव आदिम आदमी.......