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BANDHETIYA OFFICIAL
सरई का फूल,सरहूल रे, पुजा जाए श्रद्धा से कबूल रे । आदिवासी - आदरणीय जंगल, फूल पुछा जाये,पुछे जो फल, फूल से पुजा जाये फूल रे । पर्व बड़ा , मनोयोग भारी, जहां, जहां सुगंध -पुजारी , हवा बहे त्योहार उसूल रे । ©BANDHETIYA OFFICIAL #झारखंड का सरहूल
sudhir pinki
RAUSHAN SHARMA JI
gudiya
रौन्ध दिया है रूह सरकारों ने उन लड़कियों का एक वक़्त में जिसे कहा गया था देखने को ख्वाब उड़ने का देखो ख्वाब ,तुम्हें हम देंगे उड़ान मर्दों के इस ज़माने में तुम्हारा भी हो सकता है अपना मकां गरीबी है आज तो क्या, शिक्षा से होगा सपना साकार आज उच्च है हासिल भी, पर मिलता महज़ तिरस्कार घर, परिवार, समाज़, सरकार सब ही कारता है नजरों से बहिस्कार सड़क पर भटक-भटक कर हाल भी हुवा बद्दहाल चरित्र पर अब भी अब तो उठने लगे हैं सौ सवाल किसको करूँ सवाल, अब कौन देगा हमको जवाब गरीब घर से लड़की होना, सपने देखना, की चलना ज़माने के साथ क्या इतना बुरा लगता है सबको गरीबों से मिलाना हांथ। (अब कुछ लोग कहेंगे तुमको सरकारी नौकरी ही क्यूँ चाहिये तो हाँ चाहिये सबका अपना सपना होता है, किसी को कुछ तो किसी को कुछ हमनें लिखा है जो शिक्षक अभ्यर्थिय पटना में लम्बे समय से धरने पर बैठे हैं, सारी परीक्षाएँ पास कर के, सरकार नोटिफीकेशन , बोल बोल कर भी नही दे रही हर बार टाल रही है, महिने साल में बदल जा रहे हैं, और इंतजार में लोगो के ज़िन्दगी पर बहुत बुरा असर हुवा है। ये लोग गरीब और मधय्म वर्ग से ही आते हैं अगर पूंजीपति होते तो कुछ बेच रहे होते, लेकिन ये जीवन अलग नज़र से देखते है, वैचारिक रुप उच्च दृस्टी रखते हैं, समाज़ को सही दिशा दे सकते हैं, सही गलत का भेद बता सकते हैं, ताकी क्या बेचना है, क्या नही बेचा जाना चाहिये फ़र्क सीख सके लोग, शिक्षक भी समाज़ की ज़रुरत है, सिर्फ व्यापारी से देश नही चलता, राजनिती से देश नही चल सकता, और पेट चलाने से भी देश नही चल सकता, सबको वैचारिक रुप भी परिपूर्णता की ज़रुरत होती है, ताकी, समाज़ और देश मे लोग खुश हाल जीवन व्यतीत कर सके। आज शिक्षको की कमी सारे देश में है और सरकारी स्कूल की स्थिति खराब, ऐसा क्युं? क्या देश के गरीब नागरिक के बच्चे सिर्फ मजदूर बन के रहेंगे?? या उनको भी मुख्य धारा की ज़िन्दगी नसीब होगी?? आज कुच लोग मुख्य धारा में जुड़ने को पात्रता प्राप्त कर तैयार बैठे है और सद्को पर ठोकर खा रहे हैं, सरकार जेल मे बंद कर दे रही आखिर कयु? अगर उनकी न्युक्ती हो जाती तो वे सड़क पर बैठते ही क्युं? ये किस तरह का समाजिक न्याय हो रहा हमे समझ नही आता। तो गरीब सिर्फ मजदूर बन कर रहेगा? क्या कोई गरीब घर की लड़की ख्वाब नही देख पायेगी? ऐसी तस्वीर से तो सपने मर ही जायेंगे न?? दिल्ली जैसा अपना बिहार, झारखंड का स्कूल कयु नही हो सकता? और पात्रता प्राप्त शिक्षक कब तक सड़कों की ठोकर खायेंगे? क्या इनका मानसिक स्थिति ठीक रह पायेगा अगर लब्मे समय तक ऐसा और रहा तो?पूरे 3 साल हो गये इंतज़र कर्ते हुये ) ©gudiya रौन्ध दिया है रूह सरकारों ने उन लड़कियों का एक वक़्त में जिसे कहा गया था देखने को ख्वाब उड़ने का देखो ख्वाब ,तुम्हें हम देंगे उड़ान मर्दों के
Dr.Minhaj Zafar
इस सादगी पे कौन ना लुट जाए ऐ ख़ुदा मुख्यमंत्री होंगे पर अहंकार भी नहीं #झारखंड