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Deepak bisht
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा अब चैन से नीद कहा आती है साहब , अब तो बस कैसे तैसे सो जाते है । सोजाते है कैसे तैसे
Surendra Singh Puniya
सरीफ था तो सबने बदनाम किया, बुरा जब बना तो दुश्मन ने भी सलाम किया......!! मेरी ख्वाहिशो के किसे खत्म अब जैसे लोग वैसे हम
shayari_________9
*जिंदगी जैसे जलानी थी वैसे जला दी हमने गालिब....!* *अब धुएँ पर बहस कैसी और राख पर ऐतराज कैसा.....!!* *जिंदगी जैसे जलानी थी वैसे जला दी हमने गालिब....!* *अब धुएँ पर बहस कैसी और राख पर ऐतराज कैसा.....!!*
Vikas Sharma Shivaaya'
#FourLinePoetry ✒️📇जीवन की पाठशाला 📖🖋️ जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की जिंदगी में एक दौर ऐसा भी आता है जब ना हम प्रेम /इश्क़ /प्यार में होते हैं- ना हीं नफरत /घृणा /ईर्ष्या में ,होता है तो एकाकी होने का अहसास -पूर्ण खालीपन -भीड़ में भी तन्हा जहाँ फिर ना इश्क़ सुकून दे पाता है और ना ही कोई नफरत जन्म लेती है ..., जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की जिंदगी में एक समय ऐसा भी आता है जब हमें हर बात पर झूटी मुस्कराहट के साथ कहना आ जाता है All is Well ,वहीँ दूसरी तरफ आदत पड़ जाती है सब कुछ सहने -दर्द दबाने और आंसू छिपाने की ..., जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की हीरे को परखने वाले व्यक्ति मिल जाते हैं पर दर्द को परखने वाला हमदर्द नहीं मिलता ,जो आपको अपने कहते -मानते हैं -प्रेम करते हैं आपसे लेकिन अगर वो भी आपके दर्द का आंकलन ना कर पाएं ,आपके बाहर छलकने को बेताब आंसुओं को ना समझ पाएं और आपके होटों पर अटके हुए शब्दों को ना पढ़ पाएं तो फिर ये कैसे अपने और कैसा प्रेम ...? आखिर में एक ही बात समझ आई की अगर बुरे वक़्त के दौर में आप तन्हा रह जाओ तो परेशां -हैरान नहीं होना चाहिए क्यूंकि यहाँ हर कोई डूबती हुई कश्ती या चलती हुई बंद पड़ गई गाडी से उतर जाता है ... बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा 🙏सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरुरी ...! 🌹सुप्रभात🙏 स्वरचित एवं स्वमौलिक "🔱विकास शर्मा'शिवाया '"🔱 जयपुर-राजस्थान ©Vikas Sharma Shivaaya' कैसे अपने और कैसा प्रेम
Di Pi Ka
उसने' गलती'से मेरे सपनों पर हाथ क्या रखे थे, मेरे सपने बिन पंखों के उड़ने लगे थे, उसने 'गलती' से मेरे हाथों पर जब हाथ फेरे थे, मेरे हाथों ने हिम्मत से काल को पकड़ने लगे थे, उसने 'गलती'से मेरे माथे पर हाथ फहराया क्या फहराया, हम गर्व से सिर उठा कर उसके संग चलने लगे थे, 'मैने' कहा ना उसने 'गलती से '! डाली सूखी, हरियाली रूठी, बंजर मरु भूमि, नीर बहाए लाए कैसे, पिय है नहीं, पिय को भुलाए कैसे #DryTree