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Sunil Maheshwari
जिदंगी भी सड़क की तरह होती है, सड़क कभी सीधी नहीं होती, कुछ दूर चलने के बाद मोड़ अवश्य आता है, इसलिये धैर्य और साहस के साथ चलते रहिए, कुछ दूर तलक एक सुख़द मोड़ आपका इंतजार कर रहा है। यारो,लोग तो तुम्हारी राह में हमेशा पत्थर ही फेंकेगें, अब ये तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है, कि तुम उन पत्थरों से क्या बनाते हो, मुश्किलों की दीवार...? या कामयाबी का पुल..? दीवार बनाओगे तो रास्ता दुश्वार होगा, पुल बनाओगे तो रास्ता आसान बनेगा। किसी को बहस से जीतने के बजाय, अपने मौन से पराजित करो, क्योंकि, जो आपके साथ सदा बहस करने के लिए, हमेशा तत्पर रहता है, वो आपके मौन को कभी भी सहन नही कर सकेगा। दोस्तों लाइफ एक स्टोरी है, अब ये आपके ऊपर है कि, किसी और की पढ़नी है या खुद की लिखनी है। ©Sunil Maheshwari कामयाबी का पुल #creativeminds
Ajay Bishwas
गर दुनिया गुलशन है तो माँ सबसे खूबसूरत गुल है माँ तो रिश्ते का सबसे मज़बूत पुल है # माँ~~~~~रिश्ते का पुल
कुन्दन सिंह चौहान
इस पार जिन्दगी, और उस पार नसीब.. मध्यस्ता करती बीच में, वक्त नाम की एक नदी। जिसका प्रवाह इतना तीव्र, कि बहा ले जाता है, हर पल अपने साथ। कभी ताकती है जिन्दगी, उस पार नसीब को, कभी तरस खाती है नसीब, जिंदगी की नाकाम कोशिशों पर। फिर असफलताओं , अनुभवों, सब्र और कोशिशों की नीव पर, बनता है उम्मीदों का ऐसा पुल, जो वक्त के उफान को शांत कर, पाटने की कोशिश करता है, जिंदगी और नसीब की, गहरी खाई को। #kc उम्मीदों का पुल... #kc
Shashi Bhushan Mishra
मोहब्बत को नजर लग जाये ना ज़ालिम ज़माने का, लगा रखी है कुंडी हमने दिल के कैदखाने का, गुजरना,घूरना,तकना सदा ही एक खिड़की को , दिखा सकता है तुमको रास्ता भी जेलखाने का, बड़े मायूस होगे टूटा दिल जब साथ लाओगे, जन्म भर की तड़प,बेचैनियां ज्युँ पागलखाने का, न दौड़ो तेज संकरा रास्ता है ये बहुत नाजुक, सँभलना भी बहुत मुश्क़िल है ख़तरा जान जाने का, जो डूबे हैं निकलने का तरीक़ा भी उन्हें आता, ये पुल है दो दिलों के बीच केवल आने जाने का, है जिनका शौक हरदम खेलना ख़तरों से है "गुंजन", उन्हें मालूम है दरिया के भी उस पार जाने का, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई,तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #ये पुल है आने जाने का#
somnath gawade
हिरवळीच्या बाबतीत नशिबाने आम्ही तसे दुष्काळी ऐन काढणीच्या वेळी पाऊस पडला तो ही अवकाळी #अवकाळी
Dileep Bhope
तोडली झाडे झुडपे किती वाढवली शहरे विकासाचे हे असे स्वप्न भयानक नको रे पाहूस डोंगर उजाड, नष्टप्राय केले जीव असंख्यात म्हणतो पुन्हा पावसा, अवकाळी नको रे येवूस! ©Dileep Bhope #अवकाळी