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Raone

इश्क़ बीएचयू #कविता

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बी एच यू में मुलाक़ात तो

उनसे लंका पे बोलचाल हुआ

अस्सी पर मिलना तो नाँव पर इज़हार हुआ

कभी बी बी सी की थाली तो कभी पहलवान लस्सी

के बहाने मिलना जो सौ सौ बार हुआ

कभी मधुवन तो कभी लंका की काॅफी पर

पैसा खर्च हजारों हजार हुआ

कभी वीटी तो कभी करमनबीर बाबा

तो कभी कालभैरव बाबा का आशीर्वाद हुआ

गोदौलिया हमारा ससुराल तो

दालमंडी से उनको प्यार हुआ

डी एल डब्ल्यू हमारी सुबह

तो घाट की ठंडक हमारा शाम हुआ

चढ़ा जब इश्क़ परवान उनपर हमारा

तो लगा अब पूरा बनारस हीं उनका जहांन हुआ

कभी वो हमसे लड़ते कभी हम उनसे लड़ते

फ़िर तीन साल यूँ पल मे गुज़र गये

और अब उनसे मिलना बस सपनों में साकार हुआ

आज वो भले बनारस से अलग हुए हैं

पर बनारस के रविदास हीं उनके शहर का नाम हुआ

राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी

©मेरी दुनियाँ मेरी कवितायेँ इश्क़ बीएचयू

Rj payal

हम भी निकल पड़े थे कुछ चीज़ो कि ख़ोज मे
फिर याद आया हम रहते ही उस शहर मे है जहा हर दिन कुछ नया ही मिलता है.. बनारसी प्यार...
#बनारस#सुबहएबनारस#बनारसीतड़का

Raone

इश्क़ बीएचयू

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बी एच यू में मुलाक़ात तो

उनसे लंका पे बोलचाल हुआ

अस्सी पर मिलना तो नाँव पर इज़हार हुआ

कभी बी बी सी की थाली तो कभी पहलवान लस्सी

के बहाने मिलना जो सौ सौ बार हुआ

कभी मधुवन तो कभी लंका की काॅफी पर

पैसा खर्च हजारों हजार हुआ

कभी वीटी तो कभी करमनबीर बाबा

तो कभी कालभैरव बाबा का आशीर्वाद हुआ

गोदौलिया हमारा ससुराल तो

दालमंडी से उनको प्यार हुआ

डी एल डब्ल्यू हमारी सुबह

तो घाट की ठंडक हमारा शाम हुआ

चढ़ा जब इश्क़ परवान उनपर हमारा

तो लगा अब पूरा बनारस हीं उनका जहांन हुआ

कभी वो हमसे लड़ते कभी हम उनसे लड़ते

फ़िर तीन साल यूँ पल मे गुज़र गये

और अब उनसे मिलना बस सपनों में साकार हुआ

आज वो भले बनारस से अलग हुए हैं

पर बनारस के रविदास हीं उनके शहर का नाम हुआ

राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी

©मेरी दुनियाँ मेरी कवितायेँ इश्क़ बीएचयू

Raone

इश्क़ बीएचयू

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बी एच यू में मुलाक़ात तो

उनसे लंका पे बोलचाल हुआ

अस्सी पर मिलना तो नाँव पर इज़हार हुआ

कभी बी बी सी की थाली तो कभी पहलवान लस्सी

के बहाने मिलना जो सौ सौ बार हुआ

कभी मधुवन तो कभी लंका की काॅफी पर

पैसा खर्च हजारों हजार हुआ

कभी वीटी तो कभी करमनबीर बाबा

तो कभी कालभैरव बाबा का आशीर्वाद हुआ

गोदौलिया हमारा ससुराल तो

दालमंडी से उनको प्यार हुआ

डी एल डब्ल्यू हमारी सुबह

तो घाट की ठंडक हमारा शाम हुआ

चढ़ा जब इश्क़ परवान उनपर हमारा

तो लगा अब पूरा बनारस हीं उनका जहांन हुआ

कभी वो हमसे लड़ते कभी हम उनसे लड़ते

फ़िर तीन साल यूँ पल मे गुज़र गये

और अब उनसे मिलना बस सपनों में साकार हुआ

आज वो भले बनारस से अलग हुए हैं

पर बनारस के रविदास हीं उनके शहर का नाम हुआ

राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी

©मेरी दुनियाँ मेरी कवितायेँ इश्क़ बीएचयू

kavisi

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