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happy sohal

मनोहर पर्रिकर को भावपूर्ण श्रद्धांजलि शिकवे भी रहेंगे और गिले भी रहेंगे, जाते जाते यादों की बारात छोड़ गए।
ध्यान से देखा सब कुछ यहीं था, जाते जाते एक लोटा राख छोड़ गए।।

तन भी यहीं था, सारा धन भी यहीं था, सारे का सारा अपना आप छोड़ गए।
ध्यान से देखा सब कुछ यहीं था, जाते जाते एक लोटा राख छोड़ गए।। #NojotoQuote मनोहर पर्रिकर जी, श्रद्धांजलि।।

मनोहर पर्रिकर जी, श्रद्धांजलि।।

23 Love

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शिवम ओझा रिनिया

 श्रधांजली मनोहर पर्रिकर 
manohar parikar

श्रधांजली मनोहर पर्रिकर manohar parikar

11 Love

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Nojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)

 मनोहर पर्रिकर को श्रद्धांजलि दें 
#NojotoTopicalHindiQuoteStatic

मनोहर पर्रिकर को श्रद्धांजलि दें TopicalHindiQuoteStatic #NojotoTopicalHindiQuoteStatic

19 Love

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@wr. pallavi

तो प्रियकर असून त्याने

तिला राणी बनवून ठेवलं

 आणि हा नवरा असून त्याने तिला

भिकारी,कामवाली बनवून ठेवले.

©@wr.pallavi
  #प्रियकर
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Rajeev namdeo "Rana lidhori"

 आकांक्षा पत्रिका

आकांक्षा पत्रिका #nojotophoto #विचार

5 Love

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Deepak Kurai

गौतम बुद्ध 

यह एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ।

 इनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय
 क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। 
 उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका
 इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन
 महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। 
29 वर्ष की आयुु में सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम
 नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर
 संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य
 दिव्य
 ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की
 ओर चले गए । 
 वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि
 वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से
 भगवान बुद्ध बन गए।

कई ग्रंथों में यह मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है.

©Deepak Kurai #BuddhaPurnima2021 

गौतम बुद्ध की जीवनी
#जीवन

#BuddhaPurnima2021 गौतम बुद्ध की जीवनी #जीवन #विचार

37 Love

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Ranjeet singh Charan

 राजस्थान पत्रिका में

राजस्थान पत्रिका में #nojotophoto

17 Love

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VINOD VANDEMATRAM

राजस्थान पत्रिका
 में बधाई संदेश, शोक, 
व्यावसायिक सहित सभी 
प्रकार के विज्ञापनों के लिए 
संपर्क करें: विनोद त्रिवेदी
निखार पब्लिसिटी पालोदा। 
मो: 9929794894

©VINOD VANDEMATRAM
  #vTp राजस्थान पत्रिका

#vTp राजस्थान पत्रिका #जानकारी

27 Views

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Aaradhana Anand

चित् तरंगिणी पत्रिका  

दिव्य शब्द संग्रह
खाली है सडक लेकिन ,मोड बहुत है । 
दिखती है साफ सुथरी लेकिन , जोड बहुत है ।। चित् तरंगिणी पत्रिका

चित् तरंगिणी पत्रिका

94 Love

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patu

सुरुवातीला हे दोघे जणू काही वाघ आणि सिंह खूप भांडणारे खूप चिडणारे होते ते दोघे कधी भांडता भांडता प्रेमाचा जिव्हाळा लागून गेला समजलच नाही

रोज सोबत काम करता करता मस्ती करणारे ते दोघे कधी दूर गेले कळलेच नाही दुःखात असताना चेहऱ्यावर स्माईल देऊन जाणारा प्रियकर जणूकाही माझी दुःखाची टॅब्लेटचा होऊन गेली ती स्माईल

आता फक्त चिंता लागून राहिली कुठे असेल तो आणि कसा असेल तो प्रेयसी मात्र प्रियकराच्या विचारात गुंतून राहिले प्रियकर आणि प्रेयसी

प्रियकर आणि प्रेयसी #poem

6 Love

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Aaradhana Anand

“भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा” 
यानी भारत की दो प्रतिष्ठायें हैं
 पहली संस्कृत व दूसरी संस्कृति.....

 “संस्कृताश्रिता संस्कृति:”
 यानि भारत की संस्कृति 
संस्कृतभाषा पर ही आश्रित है। चित् तरंगिणी पत्रिका

चित् तरंगिणी पत्रिका

62 Love

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Aaradhana Anand

करके साधु की हत्या , 
मिला कौन सा मान । 
कुकर्मो से मानव न सुधरे , 
कैसे बसा ये अभिमान ।।

 नमन करो तो ज्ञान मिले , 
मिले धर्म का ध्यान । 
साधु की हत्या करे जो, 
न हो कभी कल्याण ।।

मानव की बुद्धि भ्रष्ट हुई , 
यहां पापी बने महान । 
दुनिया मे हाहाकार मचा , 
ये ही कर्मो का परिणाम  ।। चित् तरंगिणी पत्रिका

चित् तरंगिणी पत्रिका

63 Love

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VINOD VANDEMATRAM

#vTp राजस्थान पत्रिका

#vTp राजस्थान पत्रिका #कविता

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शिव झा

17 जुलाई/जन्म दिवस  
*भारतीयता के सेतुबंध बालेश्वर अग्रवाल*

भारतीय पत्र जगत में नये युग के प्रवर्तक श्री बालेश्वर अग्रवाल का जन्म 17 जुलाई, 1921 को उड़ीसा के बालासोर (बालेश्वर) में जेल अधीक्षक श्री नारायण प्रसाद अग्रवाल एवं श्रीमती प्रभादेवी के घर में हुआ था।  

बिहार में हजारीबाग से इंटर उत्तीर्ण कर उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.एस-सी. (इंजिनियरिंग) की उपाधि ली तथा डालमिया नगर की रोहतास  इंडस्ट्री में काम करने लगे। यद्यपि छात्र जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आकर वे अविवाहित रहकर देशसेवा का व्रत अपना चुके थे।

1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने पर उन्हें गिरफ्तार कर पहले आरा और फिर हजारीबाग जेल में रखा गया। छह महीने बाद रिहा होकर वे काम पर गये ही थे कि सत्याग्रह प्रारम्भ हो गया। अतः वे भूमिगत होकर संघर्ष करने लगे। उन्हें पटना से प्रकाशित ‘प्रवर्तक पत्र’ के सम्पादन का काम दिया गया।

बालेश्वर जी की रुचि पत्रकारिता में थी। स्वाधीनता के बाद भी इस क्षेत्र में अंग्रेजी के हावी होने से वे बहुत दुखी थे। भारतीय भाषाओं के पत्र अंग्रेजी समाचारों का अनुवाद कर उन्हें ही छाप देते थे। ऐसे में संघ के प्रयास से 1951 में भारतीय भाषाओं में समाचार देने वाली ‘हिन्दुस्थान समाचार’ नामक संवाद संस्था का जन्म हुआ। दादा साहब आप्टे और नारायण राव तर्टे जैसे वरिष्ठ प्रचारकों के साथ बालेश्वर जी भी प्रारम्भ से ही उससे जुड़ गये।

इससे भारतीय पत्रों में केवल अनुवाद कार्य तक सीमित संवाददाता अब मौलिक लेखन, सम्पादन तथा समाचार संकलन में समय लगाने लगे। इस प्रकार हर भाषा में काम करने वाली पत्रकारों की नयी पीढ़ी तैयार हुई। ‘हिन्दुस्थान समाचार’ को व्यापारिक संस्था की बजाय ‘सहकारी संस्था’ बनाया गया, जिससे यह देशी या विदेशी पूंजी के दबाव से मुक्त होकर काम कर सके। 

उन दिनों सभी पत्रों के कार्यालयों में अंग्रेजी के ही दूरमुद्रक (टेलीप्रिंटर) होते थे। बालेश्वर जी के प्रयास से नागरी लिपि के दूरमुद्रक का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। तत्कालीन संचार मंत्री श्री जगजीवन राम ने दिल्ली में तथा राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने पटना में इसका एक साथ उद्घाटन किया। भारतीय समाचार जगत में यह एक क्रांतिकारी कदम था, जिसके दूरगामी परिणाम हुए। 

आपातकाल में इंदिरा गांधी ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ पर ताले डलवा दिये; पर बालेश्वर जी शान्त नहीं बैठे। भारत-नेपाल मैत्री संघ, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा अन्तरराष्ट्रीय सहयोग न्यास आदि के माध्यम से वे विदेशस्थ भारतीयों से सम्पर्क में लग गये। कालान्तर में बालेश्वर जी तथा ये सभी संस्थाएं प्रवासी भारतीयों और भारत के बीच एक मजबूत सेतु बन गयी।

वर्ष 1998 में उन्होंने विदेशों में बसे भारतवंशी सांसदों का तथा 2000 में ‘प्रवासी भारतीय सम्मेलन’ किया। प्रतिवर्ष नौ जनवरी को मनाये जाने वाले ‘प्रवासी दिवस’ की कल्पना भी उनकी ही ही थी। प्रवासियों की सुविधा के लिए उन्होंने दिल्ली में ‘प्रवासी भवन’ बनवाया। वे विदेशस्थ भारतवंशियों के संगठन और कल्याण में सक्रिय लोगों को सम्मानित भी करते थे। जिन देशों में भारतीय मूल के लोगों की बहुलता है, वहां उन्हें भारतीय राजदूत से भी अधिक सम्मान मिलता था। कई राज्याध्यक्ष उन्हें अपने परिवार का ही सदस्य मानते थे। 

‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के प्रतिरूप बालेश्वर जी का न निजी परिवार था और न घर। अनुशासन और समयपालन के प्रति वे सदा सजग रहते थे। देश और विदेश की अनेक संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया था। जीवन का अधिकांश समय प्रवास में बिताने के बाद वृद्धावस्था में वे ‘प्रवासी भवन’ में ही रहते हुए विदेशस्थ भारतीयों के हितचिंतन में लगे रहे। 23 मई, 2013 को 92 वर्ष की आयु में भारतीयता के सेतुबंध का यह महत्वपूर्ण स्तम्भ टूट गया। 

(संदर्भ : हिन्दू चेतना 16.8.10/प्रलयंकर 24.5.13/पांचजन्य 2.6.13) #जीवन #जीवनी #साहित्य #भारतीय #इतिहास #राष्ट्रीय #राष्ट्रीय_स्वयंसेवक_संघ 

#IndiaLoveNojoto
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Aaradhana Anand

"कीमती है सिक्के, ईमान सस्ता है..
यहां रिश्तों का मतलब ही 
मतलब का रिश्ता है...!!! चित् तरंगिणी पत्रिका

चित् तरंगिणी पत्रिका

102 Love

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Ranjeet singh Charan

 हमारी मैट्रों पत्रिका में

हमारी मैट्रों पत्रिका में #nojotophoto

17 Love

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शिव झा

7 अगस्त/जन्म-दिवस
पुरातत्ववेत्ता  : डा. वासुदेवशरण अग्रवाल

ऐतिहासिक मान्यताओं को पुष्ट एवं प्रमाणित करने में पुरातत्व का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। सात अगस्त, 1904 को ग्राम खेड़ा (जिला हापुड़, उ.प्र) में जन्मे डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ऐसे ही एक मनीषी थे,जिन्होंने अपने शोध से भारतीय इतिहास की अनेक मान्यताओं को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया।

वासुदेव शरण जी ने 1925 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से कक्षा 12 की परीक्षा प्रथम श्रेणी में तथा राजकीय विद्यालय से संस्कृत की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी प्रतिभा देखकर उनकी प्रथम श्रेणी की बी.ए की डिग्री पर मालवीय जी ने स्वयं हस्ताक्षर किये। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने प्रथम श्रेणी में एम.ए. तथा कानून की उपाधियाँ प्राप्त कीं। इस काल में उन्हें प्रसिद्ध इतिहासज्ञ डा. राधाकुमुद मुखर्जी का अत्यन्त स्नेह मिला।

कुछ समय उन्होंने वकालत तथा घरेलू व्यापार भी किया; पर अन्ततः डा. मुखर्जी के आग्रह पर वे मथुरा संग्रहालय से जुड़ गये। वासुदेव जी ने रुचि लेकर उसे व्यवस्थित किया। इसके बाद उन्हें लखनऊ प्रान्तीय संग्रहालय भेजा गया, जो अपनी अव्यवस्था के कारण मुर्दा अजायबघर कहलाता था।

1941 में उन्हें लखनऊ विश्वविद्यालय ने पाणिनी पर शोध के लिए पी-एच.डी की उपाधि दी। 1946 में भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख डा0 मार्टिमर व्हीलर ने मध्य एशिया से प्राप्त सामग्री का संग्रहालय दिल्ली में बनाया और उसकी जिम्मेदारी डा0 वासुदेव शरण जी को दी। 1947 के बाद दिल्ली में राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय स्थापित कर इसका काम भी उन्हें ही सौंपा गया। उन्होंने कुछ ही समय बाद दिल्ली में एक सफल प्रदर्शिनी का आयोजन किया। इससे उनकी प्रसिद्धि देश ही नहीं, तो विदेशों तक फैल गयी।

पर दिल्ली में डा. व्हीलर तथा उनके उत्तराधिकारी डा. चक्रवर्ती से उनके मतभेद हो गये और 1951 में वे राजकीय सेवा छोड़कर काशी विश्वविद्यालय के नवस्थापित पुरातत्व विभाग में आ गये। यहाँ उन्होंने‘कालिज ऑफ़ इंडोलोजी’ स्थापित किया। यहीं रहते हुए उन्होंने हिन्दी तथा अंग्रेजी में लगभग 50 ग्रन्थों की रचना की। 

इनमें भारतीय कला, हर्षचरित: एक सांस्कृतिक अध्ययन, मेघदूत: एक सांस्कृतिक अध्ययन, कादम्बरी: एक सांस्कृतिक अध्ययन, जायसी पद्मावत संजीवनी व्याख्या, कीर्तिलता संजीवनी व्याख्या, गीता नवनीत,उपनिषद नवनीत तथा अंग्रेजी में शिव महादेव: दि ग्रेट ग१ड, स्टडीज इन इंडियन आर्ट.. आदि प्रमुख हैं।

डा. वासुदेवशरण अग्रवाल की मान्यता थी कि भारतीय संस्कृति ग्राम्य जीवन में रची-बसी लोक संस्कृति है। अतः उन्होंने जनपदीय संस्कृति, लोकभाषा, मुहावरे आदि पर शोध के लिए छात्रों को प्रेरित किया। इससे हजारों लोकोक्तियाँ तथा गाँवों में प्रचलित अर्थ गम्भीर वाक्यों का संरक्षण तथा पुनरुद्धार हुआ। उनके काशी आने से रायकृष्ण दास के ‘भारत कला भवन’ का भी विकास हुआ।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के वंशज डा. मोतीचन्द्र तथा डा. वासुदेव शरण के संयुक्त प्रयास से इतिहास, कला तथा संस्कृति सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हुए। उनकी प्रेरणा से ही डा. मोतीचन्द्र ने ‘काशी का इतिहास’जैसा महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा। वासुदेव जी मधुमेह से पीड़ित होने के बावजूद अध्ययन, अध्यापन, शोध और निर्देशन में लगे रहते थे। इसी रोग के कारण 27 जुलाई 1966 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अस्पताल में उनका निधन हुआ। #जीवनी #जन्मदिन #इतिहास #जीवनअनुभव #जीवन #भारतीय #History #BirthDay 

#InspireThroughWriting
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Ranjeet singh Charan

 चर्चा आजकी पत्रिका में

चर्चा आजकी पत्रिका में #nojotophoto

23 Love

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Yashveer Singh

ताउम्र उसने मुझे यू रिसालों में रख्खा
जैसे वक्त ने सदियों को सालो में रख्खा

अपनी खूबी की ओर देता कितनी तहरीरें मैं
उसने क्यू जुगनुओं को उजालो में रख्खा

राज़दार था जो बच गया उसके फरेब से
वरना पूरे शहर को उसने चालो में रख्खा

उम्मीदे तोड़ लाई कुछ गुलाब जिंदगी के
फिर मेरे ख्वाबो ने सजाकर बालो में रख्खा

ओर क्या सबूत दु अपनी हालते बेबसी के
हम मुफ़लिसों ने प्यास को भी प्यालो में रख्खा

पतंगों की मानिद ख़ाक हो जाएगा तू भी यश
क्या मिलन भला क्या विसालो में रख्खा।।।। रिसाले ...पत्रिका
विसाल... मिलन

रिसाले ...पत्रिका विसाल... मिलन

5 Love

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Dr. Bhagwan Sahay Meena

#राजस्थान_पत्रिका 15/03/2023

परिवार पृष्ठ पर मेरे विचारों को स्थान दिया गया।
हृदय से संपादक मंडल को धन्यवाद आभार 🙏🙏

©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani
  मेरे विचार पत्रिका में

मेरे विचार पत्रिका में #राजस्थान_पत्रिका

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Ranjeet singh Charan

 मरूधरा पत्रिका में न्युज

मरूधरा पत्रिका में न्युज #nojotophoto

27 Love

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Hinduism sanatan dharma

 धन्यवाद पत्रिका समाचार पत्र

धन्यवाद पत्रिका समाचार पत्र #कविता

18 Love

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Manoj Potadar

लग्न पत्रिका व्हिडिओ स्टेटस

लग्न पत्रिका व्हिडिओ स्टेटस #शिक्षण

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शिव झा

8 अगस्त/राज्याभिषेक-दिवस
*प्रतापी राजा कृष्णदेव राय*

एक के बाद एक लगातार हमले कर विदेशी मुस्लिमों ने भारत के उत्तर में अपनी जड़ंे जमा ली थीं। अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक काफूर को एक बड़ी सेना देकर दक्षिण भारत जीतने के लिए भेजा। 1306 से 1315 ई. तक इसने दक्षिण में भारी विनाश किया। ऐसी विकट परिस्थिति में हरिहर और बुक्का राय नामक दो वीर भाइयों ने 1336 में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। 

इन दोनों को बलात् मुसलमान बना लिया गया था; पर माधवाचार्य ने इन्हें वापस हिन्दू धर्म में लाकर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना करायी। लगातार युद्धरत रहने के बाद भी यह राज्य विश्व के सर्वाधिक धनी और शक्तिशाली राज्यों में गिना जाता था। इस राज्य के सबसे प्रतापी राजा हुए कृष्णदेव राय। उनका राज्याभिषेक 8 अगस्त, 1509 को हुआ था।

महाराजा कृष्णदेव राय हिन्दू परम्परा का पोषण करने वाले लोकप्रिय सम्राट थे। उन्होंने अपने राज्य में हिन्दू एकता को बढ़ावा दिया। वे स्वयं वैष्णव पन्थ को मानते थे; पर उनके राज्य में सब पन्थों के विद्वानों का आदर होता था। सबको अपने मत के अनुसार पूजा करने की छूट थी। उनके काल में भ्रमण करने आये विदेशी यात्रियों ने अपने वृत्तान्तों में विजयनगर साम्राज्य की भरपूर प्रशंसा की है। इनमें पुर्तगाली यात्री डोमिंगेज पेइज प्रमुख है।

महाराजा कृष्णदेव राय ने अपने राज्य में आन्तरिक सुधारों को बढ़ावा दिया। शासन व्यवस्था को सुदृढ़ बनाकर तथा राजस्व व्यवस्था में सुधार कर उन्होंने राज्य को आर्थिक दृष्टि से सबल और समर्थ बनाया। विदेशी और विधर्मी हमलावरों का संकट राज्य पर सदा बना रहता था, अतः उन्होंने एक विशाल और तीव्रगामी सेना का निर्माण किया। इसमें सात लाख पैदल, 22,000 घुड़सवार और 651 हाथी थे।

महाराजा कृष्णदेव राय को अपने शासनकाल में सबसे पहले बहमनी सुल्तान महमूद शाह के आक्रमण का सामना करना पड़ा। महमूद शाह ने इस युद्ध को ‘जेहाद’ कह कर सैनिकों में मजहबी उन्माद भर दिया; पर कृष्णदेव राय ने ऐसा भीषण हमला किया कि महमूद शाह और उसकी सेना सिर पर पाँव रखकर भागी। इसके बाद उन्होंने कृष्णा और तुंगभद्रा नदी के मध्य भाग पर अधिकार कर लिया। महाराजा की एक विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने जीवन में लड़े गये हर युद्ध में विजय प्राप्त की।

महमूद शाह की ओर से निश्चिन्त होकर राजा कृष्णदेव राय ने उड़ीसा राज्य को अपने प्रभाव क्षेत्र में लिया और वहाँ के शासक को अपना मित्र बना लिया। 1520 में उन्होंने बीजापुर पर आक्रमण कर सुल्तान यूसुफ आदिलशाह को बुरी तरह पराजित किया। उन्होंने गुलबर्गा के मजबूत किले को भी ध्वस्त कर आदिलशाह की कमर तोड़ दी। इन विजयों से सम्पूर्ण दक्षिण भारत में कृष्णदेव राय और हिन्दू धर्म के शौर्य की धाक जम गयी।

महाराजा के राज्य की सीमाएँ पूर्व में विशाखापट्टनम, पश्चिम में कोंकण और दक्षिण में भारतीय प्रायद्वीप के अन्तिम छोर तक पहुँच गयी थीं। हिन्द महासागर में स्थित कुछ द्वीप भी उनका आधिपत्य स्वीकार करते थे। राजा द्वारा लिखित ‘आमुक्त माल्यदा’ नामक तेलुगू ग्रन्थ प्रसिद्ध है। राज्य में सर्वत्र शान्ति एवं सुव्यवस्था के कारण व्यापार और कलाओं का वहाँ खूब विकास हुआ।

उन्होंने विजयनगर में भव्य राम मन्दिर तथा हजार मन्दिर (हजार खम्भों वाले मन्दिर) का निर्माण कराया। ऐसे वीर एवं न्यायप्रिय शासक को हम प्रतिदिन एकात्मता स्तोत्र में श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। #जीवनी #राजा #अभिषेक #राज्यभिषेक #इतिहास #साहित्य #भारत #जीवन #राज #स्मरण
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BQ TV

 जब भी होगी सादगी की बात, देश करेगा मनोहर पर्रिकर को याद. गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का 63 साल की उम्र में निधन हो गया. #RIPManoharPar

जब भी होगी सादगी की बात, देश करेगा मनोहर पर्रिकर को याद. गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का 63 साल की उम्र में निधन हो गया. RIPManoharPar #Goa #RIPManoharParikar

3 Love

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Adv.Trivendra bhore

अमर प्रेम आणि प्रियकर

#Geetkaar

अमर प्रेम आणि प्रियकर #Geetkaar #मराठीकविता

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Ranjeet singh Charan

 सार - समाचार पत्रिका में न्यूज ।

सार - समाचार पत्रिका में न्यूज । #nojotophoto

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