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Beimaan shayer

आज से tag बंद जिसको पसंद आये LIKE COMMENT करो जिसको नहीं IGNORE करो ME HURTED AGAIN

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कुछ अच्छे लोग समय से भी ज्यादा कीमती 
होते हैं आज से tag बंद जिसको पसंद आये LIKE COMMENT करो जिसको नहीं IGNORE करो ME HURTED AGAIN

Chandan Singh Jatav

“वो पसंद ही क्या? जिसको पसंद आने के लिए खुद को बदलना पड़े…” #सस्पेंस

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Momin Patel

अरे_पगले वो पसंद 😍 ही क्या? जिसको पसंद_आने के लिए खुद को बदलना_पडे । #शायरी #nojotophoto

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 अरे_पगले  वो पसंद 😍 ही क्या? जिसको  पसंद_आने  के लिए खुद  को बदलना_पडे ।

Sonuraigar Sonuraigar

वो पसंद ही क्या साहब, जिसको पसंद आने के लिये खुद को बदलना पड़े !!

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वो पसंद ही क्या साहब, 
जिसको पसंद आने के लिये ...............
खुद को बदलना पड़े !!🙄🙄 वो पसंद ही क्या साहब, 
जिसको पसंद आने के लिये 
खुद को बदलना पड़े !!

Ajay maurya

वो पसंद ही क्या ?? जिसको पसंद आने के लिए खुद ? को बदलना ? पडे… Pakhi Gupta Saloni Singh Deepa Rajput Aahna Verma Vivek Maurya

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 वो पसंद ही क्या ?? जिसको पसंद आने के लिए खुद ? को बदलना ? पडे…  Pakhi Gupta Saloni Singh Deepa Rajput Aahna Verma Vivek Maurya

Vineet Shukla

raaste kabhi khatam nahi hote, log aksar himmat haar jaate hain. रास्ते कभी खत्म नहीं होते, लोग अक्सर हिम्मत हार जाते हैं, मुसीबतों को जब #Quotes

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raaste kabhi khatam nahi hote,
log aksar himmat haar jaate hain.

रास्ते कभी खत्म नहीं होते,
लोग अक्सर हिम्मत हार जाते हैं,
मुसीबतों को जब

Yashpal singh gusain badal'

#Butterfly सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो  अपने अपने सूरज ले लो , एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब , इस नफरत के साथ । #कविता

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इंसानियत
सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो 
अपने अपने सूरज ले लो ,
एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब ,
इस नफरत के साथ ।
चांद को भी काट डालो ,
चौदह टुकड़ों में ,
जिसको पसंद आये जो टुकड़ा,
उसे भी साथ ले लो ।
हवा भी रोक लेना सब,
दीवारें बनाकर ऊंची,
समंदर के भी हिस्से कर दो
बना लो नदियों  की भी सूची ।
करलो खुद को बंद दीवारों के घेरे में,
अपने अपने उजालों में,
अपने अपने अंधेरों में ,
बैठना फिर बंद करके अपने- अपने दरवाजे ! 
मत सुनना किसी के गीत, किसी की आवाजें !
झांकना भी मत कभी  झिर्रियों के कोरों से,
होना भी मत बेचैन कभी पड़ोस के शोरों से !
जाओ जियो अकेले जी सको तो !
जाओ पी लो अपनी नफरत पी सको तो !
और अगर ये असंभव लगे तो बताना !
फिर से मिलकर बैठेंगे साथ !
मगर मजहब घर छोड़ कर आना,
बस एक इंसान बन कर आना,
तब हम फिर से साथ-साथ जिएंगे,
एक सूरज-चाँद के साथ !
एक जमीन,एक हवा के साथ !
क्योंकि रब भी भेद नहीं करता है हम सबमें ! 
सबकी सांसें घुलती हैं इसी हवा में!
उसने तो नहीं बनाई तेरे और मेरे लिए अलग दुनियां,
इसलिए तुम कुछ बनो या न बनो ,
मगर इंसान जरूर बनना,
तुम्हारे पास चाहे कुछ हो या न हो,
मगर इंसानियत अपने पास रखना,
थोड़ी दया,थोड़ा प्यार,
थोड़ा अपनापन,थोड़ा व्यवहार,
बस इसी धरती से उपजे हैं,
और इसी में मिल जाना है,
यही एक हकीकत है, 
यही अंतिम ठिकाना है ।


यशपाल सिंह बादल

©Yashpal singh gusain badal' #Butterfly सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो 

अपने अपने सूरज ले लो ,

एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब ,

इस नफरत के साथ ।

Yashpal singh gusain badal'

#Walk सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो  अपने अपने सूरज ले लो , एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब , इस नफरत के साथ । #कविता

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"इंसानियत"
सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो 
अपने अपने सूरज ले लो ,
एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब ,
इस नफरत के साथ ।
चांद को भी काट डालो ,
चौदह टुकड़ों में ,
जिसको पसंद आये जो टुकड़ा,
उसे भी साथ ले लो ।
हवा भी रोक लेना सब,
दीवारें बनाकर ऊंची,
समंदर के भी हिस्से कर दो
बना लो नदियों  की भी सूची ।
करलो खुद को बंद दीवारों के घेरे में,
अपने अपने उजालों में,
अपने अपने अंधेरों में ,
बैठना फिर बंद करके अपने- अपने दरवाजे ! 
मत सुनना किसी के गीत, किसी की आवाजें !
झांकना भी मत कभी  झिर्रियों के कोरों से,
होना भी मत बेचैन कभी पड़ोस के शोरों से !
जाओ जियो अकेले जी सको तो !
जाओ पी लो अपनी नफरत पी सको तो !
और अगर ये असंभव लगे तो बताना !
फिर से मिलकर बैठेंगे साथ !
मगर मजहब घर छोड़ कर आना,
बस एक इंसान बन कर आना,
तब हम फिर से साथ-साथ जिएंगे,
एक सूरज-चाँद के साथ !
एक जमीन,एक हवा के साथ !
क्योंकि रब भी भेद नहीं करता है हम सबमें ! 
सबकी सांसें घुलती हैं इसी हवा में!
उसने तो नहीं बनाई तेरे और मेरे लिए अलग दुनियां,
इसलिए तुम कुछ बनो या न बनो ,
मगर इंसान जरूर बनना,
तुम्हारे पास चाहे कुछ हो या न हो,
मगर इंसानियत अपने पास रखना,
थोड़ी दया,थोड़ा प्यार,
थोड़ा अपनापन,थोड़ा व्यवहार,
बस इसी धरती से उपजे हैं,
और इसी में मिल जाना है,
यही एक हकीकत है, 
यही अंतिम ठिकाना है ।


यशपाल सिंह बादल

©Yashpal singh gusain badal' #Walk सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो 

अपने अपने सूरज ले लो ,

एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब ,

इस नफरत के साथ ।

Yashpal singh gusain badal'

इंसान सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो अपने अपने सूरज ले लो , एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब , इस नफरत के साथ । चांद को भी काट डालो , चौदह टुकड़ों म #कविता #lunar

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इंसान
सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो 
अपने अपने सूरज ले लो ,
एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब ,
इस नफरत के साथ ।
चांद को भी काट डालो ,
चौदह टुकड़ों में ,
जिसको पसंद आये जो टुकड़ा,
उसे भी साथ ले लो ।
हवा भी रोक लेना सब,
दीवारें बनाकर ऊंची,
समंदर के भी हिस्से कर दो
बना लो नदियों  की भी सूची ।
करलो खुद को बंद दीवारों के घेरे में,
अपने अपने उजालों में,
अपने अपने अंधेरों में ,
बैठना फिर बंद करके अपने- अपने दरवाजे ! 
मत सुनना किसी के गीत, किसी की आवाजें !
झांकना भी मत कभी  झिर्रियों के कोरों से,
होना भी मत बेचैन कभी पड़ोस के शोरों से !
जाओ जियो अकेले जी सको तो !
जाओ पी लो अपनी नफरत पी सको तो !
और अगर ये असंभव लगे तो बताना !
फिर से मिलकर बैठेंगे साथ !
मगर मजहब घर छोड़ कर आना,
बस एक इंसान बन कर आना,
तब हम फिर से साथ-साथ जिएंगे,
एक सूरज-चाँद के साथ !
एक जमीन,एक हवा के साथ !
क्योंकि रब भी भेद नहीं करता है हम सबमें ! 
सबकी सांसें घुलती हैं इसी हवा में!
उसने तो नहीं बनाई तेरे और मेरे लिए अलग दुनियां,
इसलिए तुम कुछ बनो या न बनो ,
मगर इंसान जरूर बनना,
तुम्हारे पास चाहे कुछ हो या न हो,
मगर इंसानियत अपने पास रखना,
थोड़ी दया,थोड़ा प्यार,
थोड़ा अपनापन,थोड़ा व्यवहार,
बस इसी धरती से उपजे हैं,
और इसी में मिल जाना है,
यही एक हकीकत है, 
यही अंतिम ठिकाना है ।

©Yashpal singh gusain badal' इंसान
सूरज को टुकड़ा -टुकड़ा बांट लो 
अपने अपने सूरज ले लो ,
एक साथ रहना मुमकिन नहीं अब ,
इस नफरत के साथ ।
चांद को भी काट डालो ,
चौदह टुकड़ों म

Ritesh Rawat

कोई ऐसा पसंद करो जिसको तुम्हारे अलावा कोई पसंद न हो | ..... 🥰 #Shayari

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