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SHAILESH TIWARI
आलम कुछ ऐसा है की रहमते चाहता हूं हर दिल में है दहशत कुछ सुकून चाहता हूं लाशों का मौसम हर तरफ देखता हूं इस मौसम का अब मैं अंत चाहता हूं.... ©SHAILESH TIWARI लाशों का मौसम #covidindia
Vivek Kumawat
मसला यह नहीं है कि वह रूठी है मसला यह है कि वह झूठी है मुझे मोहब्बत के महल दिखा कर कहती है इस महल में रहने की तेरी औकात नहीं है to be continue... प्यार का महल
Nirma Dhudiya
कहते है कि जब जुड़ा है नया (जीवनसाथी) कोई आपसे तो पुराने ने जगह खोयी घर छोड़ा, रिश्ता छोड़ा, यहाँ तक अपना अंश छोड़ा --------------- ओ रब्बा मेरे मुझे ऐसा वक्त न दिखलाना मैं बन न जाऊ किसी की बदुआ का महल 8-sister #बदुआ का #महल
Mohan Sardarshahari
जीना उम्मीदों का संग्रह यादों का साथ दुआओं का हाथ अपनों का यही है महल सपनों का।। ©Mohan Sardarshahari महल सपनों का
Parasram Arora
यह दर्पण का महल कि इसमें सब प्रतिबिम्ब तुम्हारे है भ्रम क़े इस परदे.. मे तुमने न जाने कितने रहस्य सँवारे है ©Parasram Arora दर्पण का महल......
Parveen Kalyan
उसके साथ तो लाखों सपनो का महल था ये घर बस अब तो उसकी यादों के साथ रह रहा हु इस वीराने में ©Parveen Kalyan सपनों का महल
DR. LAVKESH GANDHI
सत्ता का शीशमहल कब आम से खास बन गए जनता के वोटों से चुनाव जीत कर आए थे अब तो खुद के सम्राट बन गए खुद के लिए बना ली द्वारिकाधीश-सा महल तोड़ रहे जनता की झुग्गी-झोपड़ी रिनोवेशन के नाम पर लूट लिए जनता के 45 करोड़ फिर भी बने हुए हैं आम आदमी के सिपहसालार ©DR. LAVKESH GANDHI # शीश महल# # आम आदमी का शीश महल #
pramod malakar
लाशों का अभी तो झांकी है +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ तूफान उठना अभी बांकी है , लाशों का अभी तो झांकी है । धधक रही है धरती सारी , मानवता का जलता राखी है ।। पहाड़ खड़ा है अधर्म का आगे , धर्म का बुझ रहा बाती है । इतिहास पुराना देखो तुम , हर एक का अपना साथी है ।। दुख के दरिया में डूब रहे हो , बवंडर उठना अभी बाकी है । मौज में धरा पर उछल रहे हो , मंद बयार का अभी बेला है । कश्मीर से कन्याकुमारी तक , जिहादी जमात का रेला है । हर तरफ है धुआं धुआं , हर इंसान अभी अकेला है ।। खौफनाक वक्त है आने वाला , हो रहा अंधेरा है । दिक्कत नहीं हमें खून के दरिया से , मौत के आगोश में हिंदुओं का मेला है । ख्वाहिशें हजार है अंतिम वक्त में , जल रहा है उमंग भी और वेदना अकेला है । मूर्खों का शिकार अभी बाकी है , दर्द जो मिल रहा जलवा शायद नहीं काफी है । तूफान उठना अभी बाकी है , लाशों का अभी तो झांकी है ।। ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ प्रमोद मालाकार की कलम से ©pramod malakar #लाशों का अभी तो झांकी है।